खोया खोया चांद और सुधीर भाई - 4
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सुधीर भाई की फिल्मों में पीरियड रहता है, लेकिन भावनाएं और प्रतिक्रियाएं समकालीन रहती हैं. सबसे अधिक उल्लेखनीय है उनकी फिल्मों का पॉलिटिकल अंडरटोन ... उनकी हर फिल्म में राजनीतिक विचार रहते हैं. हां, जरूरी नहीं कि उनकी व्याख्या या परसेप्शन से अ।प सहमत हों. उनकी 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' रियलिज्म और संवेदना के स्तर पर काफी सराही गयी है और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अधिकांश लोग बगैर फिल्म के मर्म को समझे ही उसकी तारीफ में लगे रहते हैं. होता यों है कि सफल, चर्चित और कल्ट फिल्मों के प्रति सर्वमान्य धारणाओं के खिलाफ कोई नहीं जाना चाहता. दूसरी तरफ इस तथ्य का दूसरा सच है कि अधिकांश लोग उन धारणाओं को ही ओढ़ लेते हैं. एक बार चवन्नी की मुलाकात किसी सिनेप्रेमी से हो गयी. जोश और उत्साह से लबालब वह महत्वाकांक्षी युवक फिल्मों में घुसने की कोशिश में है. वह गुरुदत्त, राजकपूर और बिमल राय का नाम लेते नहीं थ कता. चवन्नी ने उस से गुरुदत्त की फिल्मों के बारे में पूछा तो उसने 'कागज के फूल' का नाम लिया. 'कागज के फूल' का उल्लेख हर कोई करता है. चवन्नी ने सहज जिज्ञासा रखी, 'क्या अ।पने '