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ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से-महेश भट्ट

संबंधों में मिले विश्वासघात का जख्म बडा गहरा होता है और वह शायद कभी नहीं भरता। अपनी आत्मकथा पर आधारित फिल्म वो लमहे के दौरान अपने अस्तव्यस्त अतीत के भंवर में फिर से डूबने-उतराने और टाइम मैगजीन के कवर पर छपी परवीन बॉबी के साथ अपने खत्म हो चुके संबंधों को याद करते हुए मैंने उन जख्मों को फिर से एक बार देखा। खतरनाक तरीके से जीने के उन दिनों में हम लोग जोनाथन लिविंग स्टोन सीगल को पढते थे, जॉन लेनन को सुनते थे और मुक्त प्रेम की बातें करते थे। मैं परवीन बॉबी के साथ रहता था और रजनीश का शिष्य भी था, उनके संप्रदाय का संन्यासी। स्वच्छंद प्रेम में ईष्या के बीज हम मर्जी से उनके संप्रदाय में शामिल हुए थे। हमें बताया गया था कि स्वच्छंद जीवन जीने से ही प्रबोधन होता है। हम इस भ्रम में जीते थे कि नशे की आड लेकर और उन्मुक्त संबंध निभाकर निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है, समाधि की स्थिति प्राप्त की जा सकती है। हर बंधन से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी ही कई बातें हम सोचा करते थे..। एक शाम मैं साधना में लीन था, तभी एक ब्लैंक कॉल आया। दूसरी तरफ की चुप्पी ने सब कुछ कह दिया। मैं समझ गया कि फोन पर वही मशहूर फिल्म स्टार