सिनेमालोक : कामकाजी प्रेमिकाएं
सिनेमालोक कामकाजी प्रेमिकाएं -अजय ब्रह्मात्मज फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने इश्क और काम के बारे में लिखा था : वो लोग बड़े खुशकिस्मत थे जो इश्क को काम समझते थे या काम से आशिकी करते थे हम जीते जी मशरूफ रहे कुछ इश्क किया कुछ काम किया काम इश्क के आड़े आता रहा और इश्क से काम उलझता रहा आखिर तंग आकर हम ने दोनों को अधूरा छोड़ दिया. आज की बात करें तो कोई भी लड़की इश्क और काम के मामले में फ़ैज़ के तजुर्बे अलग ख्याल रखती मिलेगी.वह काम कर रही है और काम के साथ इश्क भी कर रही है.उसने दोनों को अधूरा नहीं छोड़ा है.इश्क और काम दोनों को पूरा किया है और पूरी शिद्दत से दोनों जिम्मेदारियों को निभाया है.आज की प्रेमिकाएं कामकाजी हैं.वह बराबर की भूमिका निभाती है और सही मायने में हमकदम हो चुकी है.अब वह पिछली सदी की नायिकाओं की तरह पलट कर नायक को नहीं देखती है.उसे ज़रुरत ही नहीं पडती,क्योंकि वह प्रेमी की हमकदम है. गौर करेंगे तो पाएंगे कि हिंदी फिल्मों की नायिकाओं के किरदार में भारी बदलाव आया है.अब वह परदे पर काम करती नज़र आती है.वह प्रोफेशनल हो चुकी है.गए वे दिन जब वह प्रेमी के ख्यालों में डूबी