फ़िल्म समीक्षा:कर्ज्ज्ज्ज़
पुरानी कर्ज से कमतर -अजय ब्रह्मात्मज सतीश कौशिक रीमेक फिल्मों के उस्ताद हैं। ताजा कोशिश में उन्होंने सुभाष घई की कर्ज को हिमेश रेशमिया के साथ पेश किया है। कहानी के क्लाइमेक्स से पहले के ड्रामा में कुछ बदलाव है। 28 साल के बाद बनी फिल्म के किरदारों में केवल बाहरी परिवर्तन किए गए हैं उनके स्वभाव और कहानी के सार में कोई बदलाव नहीं है। सतीश कौशिक और हिमेश ने हमेशा विनम्रता से स्वीकार किया है कि दोनों ही सुभाष घई व ऋषि कपूर की तुलना में कमतर हैं। पुनर्जन्म की इस कहानी में छल, कपट, प्रेम, विद्वेष और बदले की भावना पर जोर दिया गया है। यह शुद्ध मसाला फिल्म है। 25-30 वर्ष पहले ऐसी फिल्में दर्शक खूब पसंद करते थे। ऐसे दर्शक आज भी हैं। निश्चित ही उनके बीच कर्ज पसंद की जाएगी। फिल्म का संगीत, हिमेश की एनर्जी और उर्मिला मातोंडकर का सधा निगेटिव अंदाज इसे रोचक बनाए रखता है। यह हिंसात्मक बदले से अधिक भावनात्मक बदले की कहानी है। पुरानी कर्ज की तरह यह कर्ज भी संगीत प्रधान है। हिमेश ने पुराने संगीत को रखते हुए अपनी तरफ से नई धुनें जोड़ी हैं। धुनें मधुर लगती हैं लेकिन उनके साथ पिरोए शब्द चुभते हैं। तंदूरी ना