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इश्किया : सोनाली सिंह

इश्किया............सोचा था की कोई character होगा लेकिन......पूरी फिल्म में इश्क ही इश्क और अपने-अपने तरीके का इश्क। जैसे भगवान् तो एक है पर उसे अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग रूप में उतार दिया है । जहाँ खालुजान के लिए इश्क पुरानी शराब है जितना टाइम लेती है उतनी मज़ेदार होती है । इसका सुरूर धीरे - धीरे चढ़ता है । वह अपनी प्रेमिका की तस्वीर तभी चाय की मेज़ पर छोड़ पाता है जब उसके अन्दर वही भाव कृष्णा के लिए जन्मतेहै । वहीँ उसके भांजे के लिए इश्क की शुरुआत बदन मापने से होती है उसके बाद ही कुछ निकलकर आ सकता है। कहे तो तन मिले बिना मन मिलना संभव नहीं है। व्यापारी सुधीर कक्कड़ के लिए इश्क केवल मानसिक और शारीरिक जरूरतों का तालमेल है । वह बस घरवाली और बाहरवाली के लिए समर्पित है और किसी की चाह नहीं रखता। मुश्ताक के लिए उसकी प्रेमिका ही सबकुछ है । वह प्रेम की क़द्र करता है । उसे अहसास है " मोहब्बत क्या होती है '। इसी वजह से वह विलेन होने के बाबजूद, मौका मिलने के बाद भी अंत में कृष्ण, खालुजान या फिर बब्बन किसी पर भी गोली नहीं चला पता। विद्याधर वर्मा के लिए प्रेम है पर कर्त्तव्य से ऊपर नहीं

फिल्‍म समीक्षा : इश्किया

उत्‍तर भारतीय परिवेश की रोमांचक कथा -अजय ब्रह्मात्‍मज अभिषेक चौबे की पहली फिल्म इश्किया मनोरंजक फिल्म है। पूर्वी उत्तरप्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म के दो मुख्य किरदार मध्यप्रदेश केहैं। पुरबिया और भोपाली लहजे से फिल्म की भाषा कथ्य के अनुकूल हो गई है। हिंदी फिल्मों में इन दिनों अंग्रेजी का चलन स्वाभाविक मान लिया गया है। लिहाजा अपने ही देश की भाषाएं फिल्मों में परदेसी लगती हैं। अभिषेक चौबे ने निर्भीक होकर परिवेश और भाषा का सदुपयोग किया है। इश्किया वास्त व में हिंदी में बनी फिल्म है, यह हिंदी की फिल्म नहीं है। खालू जान और बब्बन उठाईगीर हैं। कहीं ठिकाना नहीं मिलने पर वे नेपाल भागने के इरादे से गोरखपुर के लिए कूच करते हैं। रास्ते में उन्हें अपराधी मित्र विद्याधर वर्मा के यहां शरण लेनी पड़ती है। वहां पहुंचने पर उन्हें मालूम होता है कि विद्याधर वर्मा तो दुनिया से रूखसत कर गए। हां, उनकी बीवी कृष्णा हैं। परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि खालूजान और बब्बन को कृष्णा के यहां ही रूकना पड़ता है। इस बीच कृष्णा, खालू जान और बब्बन के अंतरंग रिश्ते बनते हैं। सब कुछ तात्कालिक है। न कोई समर्पण है और

रोमांटिक फिल्म है इश्किया - अभिषेक चौबे

विशाल भारद्वाज के साथ काम करते हुए अभिषेक चौबे ने निर्देशन की बारीकियां सीखीं और फिर इश्किया का निर्देशन किया। उत्तर भारत से मुंबई पहुंचे युवा अभिषेक की इश्किया में उत्तर प्रदेश का माहौल है। बातचीत अभिषेक से.. पहले अपने बारे में बताएंगे? मैं उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले का हूं। पिताजी बैंक में थे। उनके साथ बिहार, झारखंड और हैदराबाद में स्कूलों की पढ़ाई की। फिर दिल्ली के हिंदू कॉलेज में एडमिशन लेने के साथ ही तय किया कि फिल्मों में निर्देशन करना है। मुंबई मैं 1998 में आ गया था। पहले फिल्म शरारत में सहायक रहा। फिर विशाल भारद्वाज के साथ जुड़ गया। विशाल भारद्वाज से कैसे जुड़े और यह जुड़ाव कितना उपयोगी रहा? वे मकड़ी बना रहे थे। उन दिनों उन्हें एक सहायक की जरूरत थी और मुझे काम चाहिए था। पहली मुलाकात में ही हमारी छन गई। उनके साथ-साथ मेरा विकास हुआ। मकबूल के समय उन्होंने मुझे लेखन में शामिल किया। ब्लू अंब्रेला का पहला ड्राफ्ट तैयार करने का मौका दिया। ब्लू अंब्रेला से कमीने तक उनके साथ मैं लिखता रहा। फिर मैंने इश्किया की स्क्रिप्ट लिखी। इश्किया के बारे में क्या कहेंगे? मेरे पास इश्किया के किरदार

इश्किया के गाने

कुछ शब्‍द इधर-उधर हुए हैं। गुलजार के प्रशंसकों पहले ही माफी मांग रहा है चवन्‍नी। इब्‍न-ए-बतूता इब्‍न-ए-बतूता ता ता ता ता ता ता ता ता ता इब्‍न-ए-बतूता ता ता बगल में जूता ता ता इब्‍न-ए-बतूता ता ता बगल में जूता ता ता पहने तो करता है चुर्र उड़ उड़ आवे आ आ, दाना चुगे आ आ उड़ उड़ आवे आ आ, दाना चुगे आ आ इब्‍न-ए-बतूता ता ता, बगल में जूता ता ता पहने तो करता है चुर्र उड़ उड़ गावे, दाना चुगे ये उड़ जावे चिड़िया फुर्र फुर्र इब्‍न-ए-बतूता इब्‍न-ए-बतूता यहीं अगले मोड़ पे, मौत खड़ी है अरे मरने की भी, क्‍या जल्‍दी है इब्‍न-ए-बतूता अगले मोड़ पे, मौत खड़ी है अरे मरने की भी क्‍या जल्‍दी है हॉर्न बजाके, आवे जाये दुर्घटना से देर भली है चल उड़ जा उड़ जा फुर्र फुर्र इब्‍न-ए-बतूता ता ता बगल में जूता ता ता पहने तो करता है चुर्र उड़ उड़ आवे आ आ, दाना चुगे आ आ उड़ जावे चिड़िया फुर्र इब्‍न-एएएएएएएएए-बतूता इब्‍न-एएएएएएएएए-बतूता दोनो तरफ से, बजती है ये आए हाय जिंदगी, क्‍या ढोलक है दोनों तरफ से, बजती है ये आए हाय जिंदगी,