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सिनेमा और गांधी जी

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-अजय ब्रह्मात्मज जयप्रकाश चौकसे समर्पित, प्रतिबद्ध और नियमित लेखक हैं। हिंदी फिल्मों पर उनकी टिप्पणियां रोजाना एक अखबार में छपती हैं। लाखों-करोड़ों पाठकों को उन टिप्पणियों से हिंदी फिल्मों की अंतरंग जानकारियां मिलती हैं। जयप्रकाश चौकसे पिछले 40 सालों से हिंदी फिल्मों से जुड़े हुए हैं। वे एक साथ हिंदी फिल्मों के अध्येता और व्यवसायी हैं। राजकपूर से लेकर सलीम खान तक के वे नजदीक रहे। फिल्मों की दुनिया को वे अंदर से देखते और बाहर से समझते हैं। तात्पर्य यह कि एक दर्शक की जिज्ञासा और फिल्मकार की समझदारी से लैस चौकसे हिंदी फिल्मों के सितारों, घटनाओं, प्रसंगों और उपलब्धियों का किस्सा गांव या परिवार के किसी बुजुर्ग की तरह बयान करते हैं। आप कुछ भी पूछ लें.., उनके पास रोचक जानकारियां रहती हैं। इन जानकारियों में एक तारतम्य रहता है। अगर आप उनके नियमित पाठक नहीं हैं और उनका लिखा अचानक पढ़ लें, तो संभव है उनका लेखन संश्लिष्ट न लगे। उन्हें रोज पढ़ना जरूरी है। सीमित शब्दों में कॉलम लिखने की यह चुनौती रहती है कि कई बार एक विचार या संवेदना पूरी तरह से उद्घाटित नहीं हो पाती। जयप्रकाश चौकसे पर सिनेमा