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हिन्दी टाकीज:काश! हकीकत बन सकता गुजरा जमाना-विजय कुमार झा

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हिन्दी टाकीज-३५ हिन्दी टाकीज कोशिश है अपने बचपन और कैशोर्य की गलियों में लौटने की.इन गलियों में भटकते हर हम सभी ने सिनेमा के संस्कार हासिल किए.जीवन में ज़रूरी तमाम विषयों की शिक्षा दी जाती है,लेकिन फ़िल्म देखना हमें कोई नहीं सिखाता.हम ख़ुद सीखते हैं और सिनेमा के प्रति सहृदय और सुसंस्कृत होते हैं.अगर आप अपने संस्मरण से इस कड़ी को मजबूत करें तो खुशी होगी. अपने संस्मरण पोस्ट करें ...chavannichap@gmail.com इस बार युवा पत्रकार विजय कुमार झा। विजय से चवन्नी की संक्षिप्त मुलाक़ात है.हाँ,बातें कई बार हुई हैं.कभी फ़ोन पर तो कभी चैट पर। विजय कम बोलते हैं,लेकिन संतुलित और सारगर्भित बोलते हैं.सचेत किस्म के नौजवान हैं। अपनी व्यस्तता से समय निकाल कर उन्होंने लिखा.इस संस्मरण के सन्दर्भ में उन्होंने लिखा है...यादें हसीन हों तो उनमें जीना अच्‍छा लगता है, पर उस पेशे में हूं जहां कल की बात आज बासी हो जाती है। सो आज में ही जीने वाला पत्रकार वि‍जय बन कर रह गया हूं। हिन्दी टाकीज का शुक्रि‍या कि‍ उसने अतीत में झांकने को प्रेरि‍त कि‍या और मैं कुछ देर के लि‍ए बीते जमाने में लौट गया। मुश्‍कि‍ल तो हुई, पर मजा भी

हिन्दी टाकीज:पर्दे में खो जाने का आनंद अजीब होता है-गिरीन्द्र

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हिन्दी टाकीज-२२ इस बार गिरीन्द्र ने अपने संस्मरण लिखे हैं.गिरीन्द्र का एक ब्लॉग है]जिसका नाम उन्होंने अनुभव रखा है। अपने बारे में वे लिखते मैथिली में कहूं तो- 'कहबाक कला सीखे छी'। वैसे हर पल सीखने की चाहत रखता हूं। गांव पसंद है और शहर में इंटरनेट से जुड़ा कंप्यूटर। किताबें,गजलें और गाड़ी के पीछे की सीट पर बैठकर सड़कों को देखना पसंद है। ईमेल है- girindranath@gmail।com और बात करने का नंबर- 09868086126 सिनेमा घर, टॉकिज और न जाने लोग इस लाजबाब घर को क्या से क्या कहते हैं, लेकिन हमारे शहर में लोग इसे कहते हैं- सिलेमा घर। मैं इससे दूर ही रहा, काफी कम जाना होत था। याद करने की कोशिश करता हूं तो शायद 1987 में पहली बार सिनेमा देखने हॉल गया था। उस समय किशनगंज के एक हॉस्टल में पढाई करता था। छुट्टी में अपने शहर पूर्णिया आया था और सिनेमा देखने हॉल गया,लेकिन छह वर्ष की अवस्था में सिनेमा को सिलेमा हॉल में समझ नहीं पा रहा था। फिर नंबे के दशक में फिल्मों से मोहब्बत शुरू हुई और फिल्म महबूबा बन गई। छु्ट्टी में शहर आने का मतलब एक-दो सिनेमा देखना था। दोस्तों के साथ हम सिनेमा हॉल पहुंचते थे। पहली