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अतीत को रचना है आनंद : आशुतोष गोवारीकर

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मुझे अलग दुनिया क्रिएट करने में मजा आता है। हां यह मुश्किल काम है। पर इसमें अलग तरह की संतुष्टि है। इसके जरिए पहले मुझे रिसर्च औऱ बाकी तरीकों से उस दुनिया में जाने का मौका मिलता है। फिर उसे क्रिएट करना होता है। एक अलग समय की कहानी की तरफ मैं बहुत आकर्षित होता हूं। टाइमजोन क्रिएट करने में खुशी मिलती है। सवाल हो सकता है कि यही संस्कृति क्यों ? क्योंकि हम सालों से रोम और मिश्र की सभ्यता देखते आ रहे हैं। यूरोप की फिल्मों में हम यह देख चुके हें। वे बहुत गर्व के साथ इसे प्रस्तुत करते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि हमने कभी अपनी सभ्यता के बारे में फिल्म नहीं बनाई। लगान के वक्त जब मैं रेकी के लिए कच्‍छ के आसपास धौलावीरा गया,तभी कहीं ना कहीं मेरे दिमाग में था कि इस पर फिल्म बनाऊंगा। इस संस्कृति पर फिल्म बनाना मेरे लिए दिलचस्प था। वे कौन लोग थे ? क्या लोग थे ? इनका समाज क्या था ? धर्म था कि नहीं ? इनके भगवान कौन थे ? ऐसी बहुत सारी चीजों की कोई जानकारी हमारे पास नहीं है। इसकी वजह यही है कि प्रागैतिहासिक काल की इस सभ्‍यतो के बारे में कुछ भी लिखित   नहीं है। सारी कल्पना वहां मिली आर्टफेक्स स