सत्यमेव जयते-6 : जीडीपी बढ़ाने की सरल राह-आमिर खान
अमेरिका में 12 प्रतिशत आबादी अशक्त-विकलांग के रूप में गिनी जाती है। इंग्लैंड में यह प्रतिशत 18 है तो जर्मनी में 9 प्रतिशत लोग विकलांग की श्रेणी में आते हैं। भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार दो प्रतिशत लोग विकलांग की श्रेणी में आते हैं। विकलांग लोगों के लिए रोजगार के अवसरों को प्रोत्साहन देने वाले केंद्र एनसीपीईडीपी के जावेद अबीदी इन आंकड़ों के संदर्भ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाते हैं। भारतीय वातावरण अथवा माहौल में ऐसी क्या खास बात है कि हमारे यहां दुनिया के अन्य देशों की तुलना में केवल 1/10 अथवा 1/5 अशक्त लोग ही हैं। क्या इस मामले में अपने देश में हुई गिनती में कोई खामी हुई है? यह चौंकाने वाली बात है कि 2000 तक यानी आजादी के 53 साल बाद भी भारत की जनगणना रिपोर्ट में एक भी अशक्त व्यक्ति नहीं गिना गया। दूसरे शब्दों में कहें तो जो लोग अपने देश में नीतियों का निर्धारण करते हैं, फैसले लेते हैं, सरकारी योजनाओं के लिए धन का आवंटन करते हैं उनके दिमाग में विकलांगों का अस्तित्व ही नहीं है। साफ है कि हम उनके लिए कुछ नहीं करते हैं। लिहाजा आजादी के बाद पहले 53 वर्षो तक हम