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सिनेमा के सौ साल: स्टूडियो,स्टार और कारपोरेट सिस्टम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्म निर्माण टीमवर्क है। माना जाता है कि इस टीम का कप्तान निर्देशक होता है , क्योंकि वह अपनी सोच-समझ से फिल्म के रूप में अपनी दुनिया रचता है। ऊपरी तौर पर यही लक्षित होता है , लेकिन फिल्म व्यवसाय के जानकारों से बात करें तो नियामक शक्ति कुछ और होती है। कभी कोई व्यक्ति तो कभी कोई संस्था , कभी स्टूडियो तो कभी स्टार , कभी कारपोरेट तो कभी डायरेक्टर... समय , परिस्थिति और व्यवसाय से पिछले सौ सालों के भारतीय सिनेमा में हम इस बदलाव को देख सकते हैं। फालके और उनके व्यक्तिगत प्रयास दादा साहेब फालके ने पहली भारतीय फिल्म का निर्माण किया। सभी जानते हैं कि इस फिल्म के लिए उन्हें अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखने पड़े थे। गहने , घर , संपत्ति गिरवी रख कर धन उगाहने का सिलसिला कमोबेश आज भी चलता रहता है। लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को उद्योग का दर्जा मिलने और बीमा कंपनियों के आने से आर्थिक जोखिम कम हुआ है। बहरहाल , फालके के जमाने में फिल्मों को व्यवसाय की दृष्टि से फायदेमंद नहीं माना जाता था। फालके के समय के फिल्म निर्माण को कॉटेज इंडस्ट्री के तौर पर देख सकते हैं। फालके समेत इस दौर के नि