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फिल्‍म समीक्षा : मदारी

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किस की जवाबदेही -अजय ब्रह्मात्‍मज देश में आए दिन हादसे होते रहते हैं। उन हादसों के शिकार देश के आम नागरिकों का ऐसा अनुकूलन कर दिया गया है कि वे इसे नसीब,किस्‍मत और भग्‍य समझ कर चुप बैठ जाते हैं। जिंदगी जीने का दबाव इतना भारी है कि हम हादसों की तह तक नहीं जाते। किसे फुर्सत है ? कौन सवाल करें और जवाब मांगे। आखिर किस की जवाबदेही है ? निशिकांत कामत की ‘ मदारी ’ कुछ ऐसे ही साधारण और सहज सवालों को पूछने की जिद्द करती है। फिल्‍म का नायक एक आम नागरिक है। वह जानना चाहता है कि आखिर क्‍यों उसका बेटा उस दिन हादसे का शिकार हुआ और उसकी जवाबदेही किस पर है ? दिन-रात अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन रहे हादसे भुला दिए जाते हैं। ‘ मदारी ’ में ऐसे ही कुछ सवालों से सिस्‍टम को कुरेदा गया है। जो सच सामने आया है,वह बहुत ही भयावह है। और उसके लिए कहीं ना कहीं हम सभी जिम्‍मेदार हैं। हम जो वोटर हैं। ‘ चुपचाप दबा रहके अपनी दुनिया में खोए रहनेनेवाला ’ ... हम जो नेताओं और पार्टियों को चुनते हैं और उन्‍हें सरकार बनाने के अवसर देते हैं। ‘ मदारी ’ में यही वोटर अपनी दुनिया से निकल कर सि

सवाल पूछना मेरे सिस्‍टम में है - निशिकांत कामत

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-अजय ब्रह्मात्‍मज यकीन करते हैं इरफान इरफान और मैंने १९९४ में एक साथ काम किया था। तब मैं नया-नया डायरेक्टर बना था। इरफान भी नए-नए एक्टर थे। वह तब टीवी में काम करते थे। उसके चौदह साल बाद   हम ने मुंबई मेरी जान में काम किया। अभी तकरीबन सात साल बाद मदारी में फिर से साथ हुए। हमारी दोस्ती हमेशा से रही है। एक दूसरे के प्रति परस्पर आदर का भाव रहा है। इत्तफाक की बात है कि मदारी की स्क्रिप्ट मेरी नहीं थी। इरफान ने यह स्क्रिप्ट रितेश शाह के साथ तैयार की थी। एक दिन इरफान ने मुझे फोन किया कि एक स्क्रिप्ट पर बात करनी है। वह स्क्रिप्ट मदारी की थी। इरफान साहब को लगा कि मदारी मुझे डायरेक्ट करनी चाहिए। इस तरह मदारी की प्रक्रिया शुरू हुई। इस बातचीत के छह महीने बाद फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई। मेरे लिए यह अब तक की सबसे जटिल स्क्रिप्ट यह मल्टीलेयर फिल्‍म है। मैं कई बार स्क्रिप्ट पढ़ चुका था। मैं स्क्रिप्ट हर सिरे और लेयर को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। डर था कि कहीं कुछ मिस तो नहीं हो रहा है। मदारी की कहानी एक स्‍तर पर यह बाप और बेटे की कहानी है। उनका मजबूत रिश्ता होता है। जब नया बच

इरफान के साथ बातचीत

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इरफान से हुई बात-मुलाकात में हर बार मुलाकात का समय खत्‍म हो जाता है,लेकिन बातें पूरी नहीं हो पातीं।एक अधूरापन बना रहता है। उनकी फिल्‍म 'मदारी' आ रही है। इस मौके पर हुई बातचीत में संभव है कि कोई तारतम्‍य न दिखे। यह इंटरव्‍यू अलग मायने में रोचक है। पढ़ कर देख लें...,  -अजय ब्रह्मात्‍मज -मदारी का बेसिक आइडिया क्या है? 0 यह एक थ्रिलर फिल्म है, जो कि सच्ची घटना से प्रेरित है। इस फिल्म में हमने कई सच्ची घटनाओं का इस्तेमाल किया है। ये घटनाएं बहुत सारी चीजों पर हमें बांध कर रखती है। हर आदमी में एक नायक छुपा होता है। वह अपनी पसंद से किस तरह चीजों को चुनता है। उससे कैसे चीजें आकार लेती हैं। उस व्यक्ति के व्यक्तित्व में बदलाव होता है।मेरी सोच यही है कि कहीं ना कहीं आदमी वह काम करने को मजबूर हो,जिससे उसे अपने अंदर के नायक के बारे में पता चले। हमें कई बार किसी को फॅालो करने की आदत हो जाती है। हमें लगता है कि कोई आएगा और हमारी जिंदगी सुधार देगा। हमारी यह सोच पहले से है। हम कहीं ना कहीं उस सोच को चैलेंज कर रहे हैं। हम उस सोच को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। हमें खुद के  हीरो क