फिल्म समीक्षा : अक्टूबर
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फिल्म समीक्षा : अक्टूबर - अजय ब्रह्मात्मज अव्यक्त प्रेम की मासूम फिल्म मुस्कुराहट सी खिली रहती है आँखों में कहीं और पलकों पे उजाले से झुके रहते हैं होंठ कुछ कहते नहीं, काँपते होंठों पे मगर कितने ख़ामोश से अफ़साने रुके रहते हैं गुलज़ार के इस गीत का मर्म 'अक्टूबर ' देखते हुए गहराई से समझ आता है। अस्पताल में जब डॉ घोष दस कहने पर शिउली की पुतलियां बाएं और दाएं घूमती हैं तो कोमल भावनाओं की लहर उठती है। दिल भीग जाता है। कंठ में हलचल होती है। आँखें नम हो जाती हैं। शूजीत सरकार और जूही चतुर्वेदी की जोड़ी हर नई फिल्म मैं हमारे सामाजिक जीवन कि एक नई झांकी लेकर है। इस बार उन्होंने दिल्ली की पृष्ठभूमि में एक अद्भुत प्रेम कहानी रची है। हम मान बैठे हैं कि आज की पीढ़ी प्रेम और प्रेमजन्य संबंधों के प्रति संवेदनशील नहीं है। वह रिश्तो को निभाने के प्रति गंभीर नहीं रहटी। उसके अप्रोच और व्यवहार में तात्कालिकता रहती है। जीवन की आपाधापी में ोग प्रेम भाव के लिए ठहरती नहीं है। इसकी वजह से पारस्परिक संबंध बनने से पहले ही दरकने और टूटने लगते हैं। इन दिनों व्यक्त