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फिल्म समीक्षा : अक्टूबर

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फिल्म समीक्षा : अक्टूबर - अजय ब्रह्मात्मज अव्यक्त प्रेम की मासूम फिल्म मुस्कुराहट सी खिली रहती है आँखों में कहीं और पलकों पे उजाले से झुके रहते हैं होंठ कुछ कहते नहीं, काँपते होंठों पे मगर कितने ख़ामोश से अफ़साने रुके रहते हैं गुलज़ार के इस गीत का मर्म 'अक्टूबर ' देखते हुए गहराई से समझ आता है।  अस्पताल में जब डॉ घोष दस कहने पर शिउली की पुतलियां बाएं और दाएं घूमती हैं तो कोमल भावनाओं की लहर उठती है। दिल भीग जाता है। कंठ में हलचल होती है। आँखें नम हो जाती हैं।  शूजीत सरकार और जूही चतुर्वेदी की जोड़ी हर नई फिल्म मैं हमारे सामाजिक जीवन कि एक नई झांकी लेकर  है।  इस बार उन्होंने दिल्ली की पृष्ठभूमि में एक अद्भुत प्रेम कहानी रची है।  हम मान बैठे हैं कि  आज की पीढ़ी प्रेम और  प्रेमजन्य संबंधों के प्रति संवेदनशील नहीं है।  वह रिश्तो को निभाने के प्रति गंभीर नहीं रहटी।  उसके अप्रोच और व्यवहार में तात्कालिकता रहती है।  जीवन की आपाधापी में ोग प्रेम भाव के लिए ठहरती नहीं है।  इसकी वजह से पारस्परिक संबंध बनने से पहले ही दरकने और टूटने लगते हैं। इन दिनों व्यक्त

फिल्‍म समीक्षा - जुड़वां 2

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फिल्‍म रिव्‍यू जुड़वां 2 -अजय ब्रह्मात्‍मज 20 साल पहले ‘ 9 से 12 शो चलने ’ के आग्रह और ‘ लिफ्ट तेरी बद है ’ की शिकायत का मानी बनता था। तब शहरी लड़कियों के लिए 9 से 12 शो की फिल्‍मू के लिए जाना बड़ी बात होती थी। वह मल्‍टीप्‍लेक्‍स का दौर नहीं था। यही कारण है कि उस आग्रह में रोमांच और शैतानी झलकती थी। उसी प्रकार 20 साल पहले बिजली ना होने या किसी और वजह से मैन्‍युअल लिफ्ट के बंद होने का मतलब बड़ी लाचारी हो जाती थी। पुरानी ‘ जुड़वां ’ के ये गाने आज भी सुनने में अच्‍छे लग सकते हैं,लेकिन लंदन में गाए जा रहे इन गीतों की प्रसंगिकता तो कतई नहीं बनती। फिर वही बात आती है कि डेविड धवन की कॉमडी फिल्‍म में लॉजिक और रैलीवेंस की खोज का तुक नहीं बनता। हिंदी फिल्‍मों के दर्शकों को अच्‍छी तरह मालूम है कि वरुण धवन की ‘ जुड़वां 2 ’ 1997 में आई सलमान खान की ‘ जुड़वां ’ की रीमेक है। ओरिजिनल और रीमेक दोनों के डायरेक्‍टर एक ही निर्देशक डेविड धवन है। यह तुलना भी करना बेमानी होगा कि पिछली से नई अच्‍छी या बुरी है। दोनों को दो फिल्‍मों की तरह देखना बेहतर होगा।सलमान खान,करिश्

फिल्‍म समीक्षा : बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया

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फिल्‍म रिव्‍यू दमदार और मजेदार बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया -अजय ब्रह्मात्‍मज शशांक खेतान की ‘ बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया ’ खांटी मेनस्‍ट्रीम मसाला फिल्‍म है। छोटे-बड़े शहर और मल्‍टीप्‍लेक्‍स-सिंगल स्‍क्रीन के दर्शक इसे पसंद करेंगे। यह झांसी के बद्रीनाथ और वैदेही की परतदार प्रेमकहानी है। इस प्रेमकहानी में छोटे शहरों की बदलती लड़कियों की प्रतिनिधि वैदेही है। वहीं परंपरा और रुढि़यों में फंसा बद्रीनाथ भी है। दोनों के बीच ना-हां के बाद प्रेम होता है,लेकिन ठीक इंटरवल के समय वह ऐसा मोड़ लेता है कि ‘ बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया ’ महज प्रेमकहानी नहीं रह जाती। वह वैदेही सरीखी करोड़ों लड़कियों की पहचान बन जाती है। माफ करें,वैदेही फेमिनिज्‍म का नारा नहीं बुलंद करती,लेकिन अपने आचरण और व्‍यवहार से पुरुष प्रधान समाज की सोच बदलने में सफल होती है। करिअर और शादी के दोराहे पर पहुंच रही सभी लड़कियों को यह फिल्‍म देखनी चाहिए और उन्‍हें अपने अभिभावकों   को भी दिखानी चाहिए। शशांक खेतान ने करण जौहर की मनोरंजक शैली अपनाई है। उस शैली के तहत नाच,गाना,रोमांस,अच्‍छे लोकेशन,भव्‍य सेट और लकदक परिधान से सजी इ

हिट है हमारी जोड़ी - वरुण धवन

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हिट है हमारी जोड़ी - वरुण धवन -अजय ब्रह्मात्‍मज कायदे से अभी उन्‍हें एक्टिंग करते हुए पांच साल भी नहीं हुए हैं। अक्‍टूबर 2012 में करण जौहर के निर्देशन में बनी ‘ स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर ’ मेकं लांच हुए। तब से यह उनकी आठवीं फिल्‍म होगी। 2014 में आई शशांक खेतान की फिल्‍म ‘ हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया ’ की फ्रेंचाइजी फिल्‍म ‘ बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया ’ में वे फिर से आलिया भट्ट के साथ दिखेंगे। उनकी आठ में से तीन फिल्‍मों की हीरोइन आलिया भट्ट हैं। कह सकते हैं कि दोनों की जोड़ी पसंद की जा रही है। इध हिंदी फिल्‍मों में जोडि़यां बननी बंद हो गई हैं। वरुण व्‍यस्‍त हैं और पांच सालों में ही स्‍क्रीन पर उन्‍होंने परफारमेंस में वैरायटी दिखाई है। बातचीत की शुरूआत में सोशल मीडिया का जिक्र आ जाता है। वरुण ट्वीटर पर काफी एक्टिव हैं। वे उसका सही उपयोग करते हैं। इसके बावजूद वे कुछ अनग सोचते हैं, ’ मुझे लगता है कि सोशल मीडिया हमें एंटी सोशल बना रहा है। लोग हर बात और घटना को इंटरनेट पर डालना चाहते हैं। हमारी पूरी जिंदगी इंटरनेट तक सिमट गई है। हालांकि एक्‍टर के तौर पर पब्लिसिटी के लिए मैं भी इसका इ

‘दिलवाले’ में वरुण धवन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज        इस साल 18 दिसंबर को रिलीज हो रही ‘ दिलवाले ’ वरुण धवन की 2015 की तीसरी फिल्‍म होगी। इस साल फरवरी में उनकी ‘ बदलापुर ’ और जून में ‘ एबीसीडी 2 ’ रिलीज हो चुकी हैं। ‘ दिलवाले ’ उनकी छठी फिल्‍म होगी। ‘ स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर ’ के तीन कलाकारों में वरूण धवन बाकी दोनों आलिया भट्ट और सिद्ार्थ मल्‍होत्रा से एक फिल्‍म आगे हो जाएंगे। अभी तीनों पांच-पांच फिल्‍मों से संख्‍या में बराबर हैं,लेकिन कामयाबी के लिहाज से वरुण धवन अधिक भरोसेमंद अभिनेता के तौर पर उभरे हैं।     वरुण धवन फिलहाल हैदराबाद में रोहित शेट्टी की फिल्‍म ‘ दिलवाले ’ की शूटिंग कर रहे हैं। इस फिल्‍म में वे शाह रुख खान के छोटे भाई बने हैं। उनके साथ कृति सैनन हैं। इन दिनों दोनों के बीच खूब छन रही है। पिछले साठ दिनों से तो वे हैदराबाद में ही हैं। आउटडोर में ऐसी नजदीकी होना स्‍वाभाविक है। यह फिल्‍म के लिए भी अच्‍छा रहता है, क्‍योंकि पर्दे पर कंफर्ट और केमिस्‍ट्री दिखाई पड़ती है। हैदराबाद में फिल्‍म के फुटेज देखने को मिले,उसमें दोनों के बीच के तालमेल से भी यह जाहिर हुआ।     कृति सैनन और वरुण धवन की जोड़

फिल्‍म समीक्षा : एबीसीडी 2

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स्‍टार- **1/2 ढाई स्‍टार -अजय ब्रह्मात्‍मज  रैमो डिसूजा की फिल्म ‘एबीसीडी 2’ में डांस है, जोश है, देशभक्ति और अभिमान भी है, वंदे मातरम है, थोड़ा रोमांस भी है...फिल्मों में इनसे ही अलग-अलग संतुष्ट होना पड़ेगा। दृश्ये और प्रसंग के हिसाब से इन भाव और भावनाओं से मनोरंजन होता है। कमी रह गई है तो बस एक उपयुक्त कहानी की। फिल्म सच्ची कहानी पर आधारित है तो कुछ सच्चाई वहां से ले लेनी थी। कहानी के अभाव में यह फिल्म किसी रियलिटी शो का आभास देती है। मुश्किल स्टेप के अच्छेे डांस सिक्वेंस हैं। डांस सिक्वेंस में वरुण धवन और श्रद्धा कपूर दोनों सुरु और विन्नी के किरदार में अपनी लगन से मुग्ध करते हैं। कहानी के अभाव में उनके व्यक्तिगत प्रयास का प्रभाव कम हो जाता है। पास बैठे युवा दर्शक की टिप्पणी थी कि इन दिनों यूट्यूब पर ऐसे डांस देखे जा सकते हैं। मुझे डांस के साथ कहानी भी दिखाओ।  सुरु और विन्नी मुंबई के उपनगरीय इलाके के युवक हैं। डांस के दीवाने सुरु और विन्नी का एक ग्रुप है। वे स्थानीय स्तुर पर ‘हम किसी से कम नहीं’ कंपीटिशन में हिस्सा लेते हैं। नकल के आरोप में वहां उनकी छंटाई हो जाती है। उसक

फिल्‍म समीक्षा : बदलापुर

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-अजय ब्रह़मात्‍मज  श्रीराम राघवन की 'बदलापुर' हिंदी फिल्मों के प्रचलित जोनर बदले की कहानी है। हिंदी फिल्मों में बदले की कहानी अमिताभ बच्चन के दौर में उत्कर्ष पर पहुंची। उस दौर में नायक के बदले की हर कोशिश को लेखक-निर्देशक वाजिब ठहराते थे। उसके लिए तर्क जुटा लिए जाते थे। 'बदलापुर' में भी नायक रघु की बीवी और बच्चे की हत्या हो जाती है। दो में से एक अपराधी लायक पुलिस से घिर जाने पर समर्पण कर देता है और बताता है कि हत्यारे तो फरार हो गए, हत्या उसके साथी जीयु ने की। रघु उसके साथी की तलाश की युक्ति में जुट जाता है। इधर कोर्ट से लायक को 20 साल की सजा हो जाती है। रघु लायक के साथी की तलाश के साथ उस 20वें साल का इंतजार भी कर रहा है, जब लायक जेल से छूटे और वह खुद उससे बदला ले सके। इस हिस्से में घटनाएं तेजी से घटती हैं। फिल्म की गति धीमी नहीं पड़ती। श्रीराम राघवन पहले ही फ्रेम से दर्शकों को सावधान की मुद्रा में बिठा देते हैं। अच्छी बात है कि टर्न और ट्विस्ट लगातार बनी रहती है। परिवार को खोने की तड़प और बदले की चाहत में रघु न्याय और औचित्य की परवाह नहीं

सिर्फ भाई ने किया सपोर्ट - वरुण धवन

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-अजय ब्रह्मात्मज -‘बदलापुर’ हमें बिग बी के एरा वाली फिल्मों की याद दिलाएगी कि नायक को फ्लैशबैक में अपनों से दूर करने वाला शख्स दिखता था। नायक का खून खौलता और वह फिर बदला लेकर ही मानता था? आपने सही कहा, क्योंकि फिल्म के डायरेक्टर श्रीराम राघवन अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन हैं। इत्तफाकन बच्चन साहब की ढेर सारी फिल्में रिवेंज पर बेस्ड रही हैं, मगर ‘बदलापुर’ से हम रिवेंज ड्रामा का पैटर्न तोडऩा चाहते हैं। मिसाल के तौर पर आप अखबार में पढ़ते हो कि एक पति ने पड़ोसी से अफेयर की आशंका में अपनी पत्नी को चाकू से गोद दिया। या फलां अपराधी ने एक मासूम को एक-दो नहीं बीसियों बार तलवार या दूसरे धारदार हथियार से नृशंसतापूर्वक मारा। कोई इस किस्म की नफरत से कैसे लैस होता है, हमने उस बारे में फिल्म में पड़ताल करके बताया है। फिल्म का नायक रघु कुछ उसी तरीके से अपनी पत्नी के हत्यारों का खात्मा करता है। उसका तरीका सही है। फिल्म के अंत में हमने एक मोरल लेसन भी दिया है कि क्या ‘आंख के बदले आंख’ के भाव को न्यायोचित है। हर किरदार परतदार है। हम किसी को एकदम से राइट या रौंग करार नहीं दे सकते। -‘बदलापुर’ टाइट

फिल्‍म समीक्षा : हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  हिदी फिल्मों की नई पीढ़ी का एक समूह हिंदी फिल्मों से ही प्रेरणा और साक्ष्य लेता है। करण जौहर की फिल्मों में पुरानी फिल्मों के रेफरेंस रहते हैं। पिछले सौ सालों में हिंदी फिल्मों का एक समाज बन गया है। युवा फिल्मकार जिंदगी के बजाय इन फिल्मों से किरदार ले रहे हैं। नई फिल्मों के किरदारों के सपने पुरानी फिल्मों के किरदारों की हकीकत बन चुके हरकतों से प्रभावित होते हैं। शशांक खेतान की फिल्म 'हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया' आदित्य चोपड़ा की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की रीमेक या स्पूफ नहीं है। यह फिल्म सुविधानुसार पुरानी फिल्म से घटनाएं लेती है और उस पर नए दौर का मुलम्मा चढ़ा देती है। शशांक खेतान के लिए यह फिल्म बड़ी चुनौती रही होगी। उन्हें पुरानी फिल्म से अधिक अलग नहीं जाना था और एक नई फिल्म का आनंद भी देना था। चौधरी बलदेव सिंह की जगह सिंह साहब ने ले ली है। अमरीश पुरी की भूमिका में आशुतोष राणा हैं। समय के साथ पिता बदल गए हैं। वे बेटियों की भावनाओं को समझते हैं। थोड़ी छूट भी देते हैं, लेकिन वक्त पडऩे पर उनके अंदर का बलदेव सिंह जाग जाता

फिल्‍म समीक्षा : स्टूडेंट ऑफ द ईयर

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-अजय ब्रह्मात्मज देहरादून में एक स्कूल है-सेंट टेरेसा। उस स्कूल में टाटा(अमीर) और बाटा(मध्यवर्गीय) के बच्चे पढ़ते हैं। उनके बीच फर्क रहता है। दोनों समूहों के बच्चे आपस में मेलजोल नहीं रखते। इस स्कूल के डीन हैं योगेन्द्र वशिष्ठ(ऋषि कपूर)। वे अपने ऑफिस के दराज में रखी मैगजीन पर छपी जॉन अब्राहम की तस्वीर पर समलैंगिक भाव से हाथ फिराते हैं और कोच को देख कर उनक मन में ‘कोच कोच होने लगता है’। करण जौहर की फिल्मों में समलैंगिक किरदारों का चित्रण आम बात हो गई है। कोशिश रहती है कि ऐसे किरदारों को सामाजिक प्रतिष्ठा और पहचान भी मिले। बहरहाल, कहानी बच्चों की है। ये बच्चे भी समलैंगिक मजाक करते हैं। इस स्कूल के लंबे-चौड़े भव्य प्रांगण और आलीशान इमारत को देखकर देश के अनगिनत बच्चों को खुद पर झेंप और शर्म हो सकती है। अब क्या करें? करण जौहर को ऐसी भव्यता पसंद है तो है। उनकी इस फिल्म के लोकेशन और कॉस्ट्युम की महंगी भव्यता आतंकित करती है। कहने को तो फिल्म में टाटा और बाटा के फर्क की बात की जाती है, लेकिन मनीष मल्होत्रा ने टाटा-बाटा के प्रतिनिधि किरदारों को कॉस्ट्युम देने में भेद नहीं रखा है। रोहन और अभिम