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फिल्‍म समीक्षा : बार बार देखो

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पल पल में दशकों की यात्रा -अजय ब्रह्मात्‍मज नित्‍या मेहरा की फिल्‍म ‘ बार बार देखो ’ के निर्माता करण जौहर और रितेश सिधवानी-फरहान अख्‍तर हैं। कामयाब निर्माताओं ने कुछ सोच-समझ कर ही नित्‍या मेहरा की इस फिल्‍म को हरी झंडी दी होगी। कभी इन निर्माताओं से भी बात होनी चाहिए कि उन्‍होंने क्‍या सोचा था ? क्‍या फिल्‍म उनकी उम्‍मीदों पर खरी उतरी ? पल पल में दशकों की यात्रा करती यह फिल्‍म धीमी गति के बावजूद झटके देती है। 2016 से 2047 तक के सफर में हम किरदारों के इमोशन और रिएक्‍शन में अधिक बदलाव नहीं देखते। हां,यह पता चलता है कि तब स्‍मार्ट फोन कैसे होंगे और गाडि़यां कैसी होंगी ? दुनिया के डिजिटाइज होने के साथ सारी चीजें कैसे बदल जाएंगी ? यह भविष्‍य के भारत की झलक भी देती है। इसके अलावा फिल्‍म में कलाकार,परिवेश,मकान,गाडि़यों समेत सभी चीजें साफ और खूबसूरत हैं। उनमें चमक भी है। जय और दीया एक ही दिन पैदा होते हैं। आठ साल में दोनों की दोस्‍ती होती है। पढ़ाकू जय और कलाकार दीया अच्‍छे दोस्‍त हैं। दीया ज्‍यादा व्‍यावहारिक है। जय पढ़ाई और रिसर्च की सनक में रहता है। बड़े होने पर जय मैथ

फिल्‍म समीक्षा : फितूर

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सजावट सुंदर,बुनावट कमजोर -अजय ब्रह्मात्‍मज अभिषेक कपूर की ‘ फितूर ’ चार्ल्‍स डिकेंस के एक सदी से पुराने उपन्‍यास ‘ ग्रेट एक्‍पेक्‍टेशंस ’ का हिंदी फिल्‍मी रूपांतरण है। दुनिया भर में इस उपन्‍यास पर अनेक फिल्‍में बनी हैं। कहानी का सार हिंदी फिल्‍मों की अपनी कहानियों के मेल में है। एक अमीर लड़की,एक गरीब लड़का। बचपन में दोनों की मुलाकात। लड़की की अमीर हमदर्दी,लड़के की गरीब मोहब्‍बत। दोनों का बिछुड़ना। लड़की का अपनी दुनिया में रमना। लड़के की तड़प। और फिर मोहब्‍बत हासिल करने की कोशिश में दोनों की दीवानगी। समाज और दुनिया की पैदा की मुश्किलें। अभिषेक कपूर ने ऐसी कहानी को कश्‍मीर के बैकड्राप में रखा है। प्रमुख किरदारों में कट्रीना कैफ,आदित्‍य रॉय कपूर,तब्‍बू और राहुल भट्ट हैं। एक विशेष भूमिका में अजय देवगन भी हैं। अभिषेक कपूर ने कश्‍मीर की खूबसूरत वादियों का भरपूर इस्‍तेमाल किया। उन्‍होंने इसे ज्‍यादातर कोहरे और नीम रोशनी में फिल्‍मांकित किया है। परिवेश के समान चरित्र भी अच्‍छी तरह प्रकाशित नहीं हैं। अभिषेक कपूर की रंग योजना में कश्‍मीर के चिनार के लाल रंग का प्रतीकात्‍मक उपयो

हर जिंदगी में है प्रेम का फितूर - अभिेषेक कपूर

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फितूर की कहानी चार्ल्‍स डिकेंस के उपन्यास ग्रेट एक्सपेक्टेशंस पर आधारित है। सोचें कि यह उपन्यास क्लासिक क्यों है ? क्‍योंकि यह मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण है। दुनिया में हर आदमी इमोशन के साथ जुड़ जाता है। जब दिल टूटता है तो आदमी अपना संतुलन खो बैठता है। अलग संसार में चला जाता है। पागल हो जाता है। मुझे लगा कि इस कहानी से दर्शक जुड़ जाएंगे। हम ने उपन्‍यास से सार लेकर उसे अपनी दुनिया में अपने तरीके से बनाया है। इस फिल्‍म में व्‍यक्तियों और हालात से बदलते उनके रिश्‍तों की कहानी है। यह फिल्म केवल प्रेम कहानी नहीं है। यह कहानी प्यार के बारे में है। प्यार और दिल टूटने की भावनाएं बार-बार दोहराई जाती हैं। कोई भी इंसान ऐसे मुकामों से गुजरे है तो थोड़ा हिल जाए। आप किसी से प्यार करते हैं तो अपने अंदर किसी मासूम कोने में उसे जगह देते हो। वहां पर वह आकर आपको अंदर से तहस-नहस करने लगता है। वहां पर आपको बचाने के लिए कोई नहीं होता है। वह प्यार आपको इस कदर तोड़ देता है कि आपका खुद पर कंट्रोल नहीं रह जाता। यह दो सौ साल पहले हुआ और दो सौ साल बाद भी होगा । केवलसाल बदलते हैं। मानवीय आचरण नहीं बद

कट्रीना कैफ का चुंबन

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अभिषेक कपूर की फिल्‍म फितूर की शूटिंग चल रही है। सबसे पहली खबर और तस्‍वीर कट्रीना कैफ के चुबन की आई है। हिंदी फिल्‍मों में चुंबन की चर्चाएं होती रहती हैं। यहां दो तस्‍वीरे हैं। पहली हिंदी फिल्‍मों के आरंभिक चुबन की और दूसरी कट्रीना कैफ और आदित्‍य कपूर की 'फितूर' से ....

फिल्‍म समीक्षा : बैंग बैंग

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  -अजय ब्रह्मात्‍मज  हॉलीवुड की फिल्म 'नाइट एंड डे' का अधिकार लेकर हिंदी में बनाई गई 'बैंग बैंग' पर आरोप नहीं लग सकता कि यह किसी विदेशी फिल्म की नकल है। हिंदी फिल्मों में मौलिकता के अभाव के इस दौर में विदेशी और देसी फिल्मों की रीमेक का फैशन सा चल पड़ा है। हिंदी फिल्मों के मिजाज के अनुसार यह थोड़ी सी तब्दीली कर ली जाती है। संवाद हिंदी में लिख दिए जाते हैं। दर्शकों को भी गुरेज नहीं होता। वे ऐसी फिल्मों का आनंद उठाते हैं। सिद्धार्थ आनंद की 'बैंग बैंग' इसी फैशन में बनी ताजा फिल्म है। इस फिल्म के केंद्र में देश के लिए काम कर रहे सपूत राजवीर की कहानी है। हर प्रकार से दक्ष और योग्य राजवीर एक मिशन पर है। हरलीन के साथ आने से लव और रोमांस के मौके निकल आते हैं। बाकी फिल्म में हाई स्पीड और हाई वोल्टेज एक्शन है। पूरी फिल्म एक के बाद एक हैरतअंगेज एक्शन दृश्यों से भरी है, जिनमें रितिक रोशन विश्वसनीय दिखते हैं। उनमें एक्शन दृश्यों के लिए अपेक्षित चुस्ती-फुर्ती है। उनके साथ कट्रीना कैफ भी कुछ एक्शन दृश्यों में जोर आजमाती है। वैसे उनका मुख्य काम सुंदर दिखना और

‘फितूर’ में साथ आएंगी रेखा और कट्रीना

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-अजय ब्रह्मात्मज     रेखा, कट्रीना कैफ और आदित्य राय कपूर ़ ़ ़ अभिषेक कपूर की आगामी फिल्म ‘फितूर’ के तीनों कलाकारों के इस संयोग का कमाल पर्दे पर अगले साल दिखेगा। स्वयं अभिषेक कपूर इस कमाल के प्रति उत्सुक और उत्साही हैं। ‘सच कहूं तो अपनी ड्रीम कास्टिंग के बावजूद मैं अभी नहीं बता सकता कि पर्दे पर तीनों का साथ आना कैसा जादू बिखेरेगा? मेरी फिल्म ‘फितूर’ आम हिंदी फिल्म नहीं है। सभी जानते हैं कि यह चाल्र्स डिकेंस के उपन्यास ‘ग्रेट एक्पेक्टेशंस’ पर आधारित है। लेकिन मेरी फिल्म मूल उपन्यास के पन्नों से निकल कर भारतीय माहौल में बनेगी तो किसी और रूप में नजर आएगी,’ कहते हैं अभिषेक कपूर।     ‘फितूर’ में रेखा और कट्रीना कैफ का साथ आना  हिंदी फिल्मों की एक बड़ी घटना है। 1970 में ‘सावन भादो’ से शुरुआत कर अंतिम फिल्म ‘कृष 3’ 2014 तक के सफर में रेखा ने अपनी प्रतिभा की विविधता का परिचय दिया है। लंबे समय तक नायिका की भूमिका में विभिन्न किरदारों को जीने के बाद निजी जिंदगी में वह रहस्य की मूर्ति बन गई हैं। अन्य अभिनेत्रियों की तरह आए दिन उनकी खबरें नहीं छपतीं। वह दिखती भी नहीं हैं। कभी-कभार किसी समारोह

फिल्‍म समीक्षा : धूम 3

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डांस,बाइक और चेज  -अजय ब्रह्मात्‍मज  'धूम' सीरिज की महत्वपूर्ण कड़ी हैं जय और अली। इस बार वे चोर को पकड़ने के लिए शिकागो जाते हैं। चूंकिचोर चोरी करने के बाद हिंदी में संदेश छोड़ता है 'बैंक वाले तेरी ऐसी की तैसी', शायद इसलिए भारत से जय और अली को उन्हें पकड़ने के लिए बुलाया गया है। मजेदार तथ्य है कि 'विशेष दायित्व' निभाते समय वे चोर को पकड़ने में असफल रहते हैं। फिर बाकी हिंदी फिल्मों की तरह दायित्व से मुक्त होने के बाद उनका दिमाग तेज चलता है और वे चोर को घेर लेते हैं। लेकिन इस बार भी चोर उन्हें चकमा देकर निकल जाता है। कैसे? फिल्म देखें। जय और अली के रूप में अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा हैं। तारीफ करनी होगी कि पहली 'धूम' से लेकर अभी तक उनकी समनुरूपता बनी हुई है। वे जरा भी नहीं बदले हैं। 'धूम' सीरिज में चोर को ज्यादा स्मार्ट और रोचक बनाने के लिए उनको भोंदू दिखाना जरूरी होता है। इस बार स्मार्ट चोर आमिर खान हैं। जॉन अब्राहम और रितिक रोशन के बाद 'धूम 3' में आए आमिर खान को छबीली कट्रीना कैफ के साथ मिला है। दोनों के बीच स्टेज पर केमिस्

दरअसल : महज शुरुआत है यह

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-अजय ब्रह्मात्मज     कट्रीना कैफ ने पिछले दिनों मीडिया के नाम एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने हाल में छपी अपनी तस्वीरों पर दुख और निराशा जाहिर की। उन्हें लग रहा है कि मीडिया ने उनकी जिंदगी में घुसपैठ की है। बड़ी सफाई से उन्होंने फिल्म पत्रकारिता में ऐसे नस्ल का जिक्र किया है, जो फिल्मी हस्तियों के शिकार की हर बुरी कोशिश करते हैं। वे निजता और शिष्टता की हर लक्ष्मण रेखा पार कर जाते हैं। मामला इतना भर है कि कट्रीना कैफ अपने नए प्रेमी रणबीर कपूर के साथ स्पेन के किसी समुद्रतट पर छुट्टियां मना रही थीं। वहां किसी ने उन दोनों की तस्वीर उतारी और उसे भारत की एक फिल्मी पत्रिका के पास भेज दिया। उस पत्रिका में तस्वीर छपते ही सभी पत्र-पत्रिकाओं और वेब साइटों पर यही खबर थी कि रणबीर कपूर और कट्रीना कैफ एक साथ देखे गए। चूंकि खुद फिल्म इंडस्ट्री बिकिनी को प्रचार की वस्तु बनाती है, इसलिए इस खबर में इस पर भी जारे था कि वह बिकिनी में थीं।     लगभग एक दशक से हिंदी फिल्मों में सक्रिय कट्रीना कैफ ने धीरे-धीरे केन्द्र में जगह बनाई है। अभी वह देश की सफल अभिनेत्रियों की पहली कतार में हैं। यहां तक पहुंचने मे

दो तस्‍वीरें यश चोपड़ा की अनाम फिल्‍म की

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इस दीवाली में दर्शकों के दिलो को यश चोपड़ा के रोमांस से जगमगाने आ रहे हैं शाहरुख उनके साथ कट्रीना कैफ और अनुष्‍का शर्मा रहेंगी। तीनों मिल कर रहमान की धुन पर गुलजार के गीत गाएंगे।                         यहां है फर्स्‍ट लुक वीडियो...                                                                                                     https://www.youtube.com/watch?v=ApoyH11WJWo&feature=player_embedded

फिल्‍म समीक्षा : एक था टाइगर

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फार्मूलाबद्ध फिल्म है एक था टाइगर -अजय ब्रह्मात्‍मज  भारत,आयरलैंड,तुर्की,क्यूबा और थाईलैंड से घूमती-घुमाती एक था टाइगर तुर्की में खत्म होती है। माशाल्लाह गाना तुर्की में ही फिल्माया गया है। यह गाना फिल्म के अंत में कास्टिंग रोल के साथ आता है। यशराज फिल्म्स ने यह अच्छा प्रयोग किया है कि कास्ट रोल स्क्रीन को छेंकते हुए नीचे से ऊपर जाने के बजाए दाएं से बाएं जाता है। हम सलमान खान और कट्रीना कैफ को नाचते-गाते देख पाते हैं। इसके अलावा फिल्म में ठूंस-ठूंस कर एक्शन भरा गया है। हाल-फिलहाल में में दक्षिण भारतीय फिल्मों से आयातित रॉ एक्शन देखते-देखते अघा चुके दर्शकों को एक था टाइगर के एक्शन में ताजगी दिखेगी। इस फिल्म में हीरोइन के भी एक्शन सीन हैं। कॉनरेड पाल्मिसैनो की सलाह से किए गए एक्शन में स्फूर्ति नजर आती है और वह मुमकिन सा लगता है। वैसे इस फिल्म में भी हीरो का निशाना कभी खाली नहीं जाता, जबकि दुश्मनों को शायद गोली चलाने ही नहीं आता। फिल्में हिंदी की हों या किसी और भाषा की। हीरो हमेशा अक्षत रहता है। कबीर खान निर्देशित एक था टाइगर जासूसी टाइप की फिल्म है। मिशन पर निकला

दो तस्‍वीरें : कट्रीना कैफ

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सलमान खान और शाहरुख खान...दोनों के साथ अलग-अलग फिल्‍मों में आ रही कट्रीना कैफ की चर्चा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों में किस के साथ कट्रीना की फिल्‍म बड़ी हिट होगी। आप क्‍या सोचते हैं, बताएं !!!

कट्रीना से बहुत आगे है करीना

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-अजय ब्रह्मात्मज अभी भी खबर केवल यह आई है कि रोहित शेट्टी ने शाहरुख खान के साथ के लिए कट्रीना कैफ को अप्रोच किया है। शाहरुख खान लंबे समय से रोहित शेट्टी को घेर रहे थे कि वे उनके साथ एक फिल्म करें। पहले आइडिया था कि अजय देवगन के साथ अपनी कॉमेडी फिल्मों से मशहूर हुए रोहित शेट्टी उनके लिए एक कॉमेडी फिल्म बनाएंगे। किसी पुरानी मशहूर कॉमेडी फिल्म के रीमेक के बारे में सोचा जा रहा था। इसी बीच अजय देवगन के साथ आई उनकी सिंघम हिट हो गई तो शाहरुख खान ने तय किया कि वे अब रोहित के साथ ऐक्शन फिल्म ही करेंगे। एक्शन हो या कॉमेडी। फिलहाल खबर यह है कि इस फिल्म में कट्रीना कैफ भी होंगी और इस खबर केसाथ स्थापित किया जा रहा है कि कट्रीना अपने प्रतिद्वंद्वी करीना से आगे निकल रही हैं। सही है कि कट्रीना कैफ लगातार सफल फिल्मों का हिस्सा रही हैं। अपनी खूबसूरती के दम पर उन्होंने एक अलग किस्म का मुकाम हासिल कर लिया है, लेकिन अभिनय की बात करें तो अभी उन्हें प्रूव करना है। उनकी कोई भी फिल्म इस लिहाज से उल्लेखनीय नहीं है। अपनी सफल फिल्मों में वे नाचती-गाती गुडि़या से अधिक नहीं होतीं। निर्देशक भी उनकी सीमाओं से वाकिफ ह

फिल्‍म समीक्षा : मेरे ब्रदर की दुल्‍हन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पंजाब की पृष्ठभूमि से बाहर निकलने की यशराज फिल्म्स की नई कोशिश मेरे ब्रदर की दुल्हन है। इसके पहले बैंड बाजा बारात में उन्होंने दिल्ली की कहानी सफल तरीके से पेश की थी। वही सफलता उन्हें देहरादून के लव-कुश की कहानी में नहीं मिल सकी है। लव-कुश छोटे शहरों से निकले युवक हैं। ने नए इंडिया के यूथ हैं। लव लंदन पहुंच चुका है और कुश मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आ गया है। उल्लेखनीय है कि दोनों का दिल अपने छोटे शहर की लड़कियों पर नहीं आया है। क्राइसिस यह है कि बड़े भाई लव का ब्रेकअप हो गया है और वह एकबारगी चाहता है कि उसे कोई मॉडर्न इंडियन लड़की ही चाहिए। बड़े भाई को यकीन है कि छोटे भाई की पसंद उससे मिलती-जुलती होगी, क्योंकि दोनों को माधुरी दीक्षित पसंद थीं। किसी युवक की जिंदगी की यह क्राइसिस सच्ची होने के साथ फिल्मी और नकली भी लगती है। बचे होंगे कुछ लव-कुश, जिन पर लेखक-निर्देशक अली अब्बास जफर की नजर पड़ी होगी और जिनका प्रोफाइल यशराज फिल्म्स के आदित्य चोपड़ा को पसंद आया होगा। इस क्राइसिस का आइडिया रोचक लगता है, लेकिन कहानी रचने और चित्रित करने में अली अब्बास जफर ढीले प

आइटम के दम पर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज यह सच है कि मुन्नी और शीला के क्रेज ने फिल्मों में आइटम गीतों की मांग बढ़ा दी है। निस्संदेह दबंग के हिट होने में मलाइका अरोड़ा और सलमान खान पर फिल्माए गीत मुन्नी बदनाम.. का बड़ा योगदान रहा। इस एक गीत की पॉपुलैरिटी ने दबंग के दर्शक तैयार किए। फराह खान की तीस मार खान ने रिलीज के पहले शीला की जवानी.. से ऐसा समां बांधा कि दर्शकों ने वीकएंड की एडवांस बुकिंग करवा ली। हालांकि तीस मार खान को दबंग जैसे दर्शक नहीं मिले, लेकिन जो भी दर्शक मिले, वे इसी गीत की वजह से मिले। फिल्म देखकर निकलते दर्शकों की जुबान पर एक ही बात थी कि फिल्म में शीला.. के अलावा कुछ था ही नहीं। दोनों फिल्मों की कामयाबी से हिंदी फिल्मों में आइटम गीतों की मांग सुनिश्चित हुई। यही वजह है कि दम मारो दम, रेडी और रा वन के आइटम गीतों की चर्चा की जा रही है। कहा जा रहा है कि अभी कुछ समय तक आइटम गीतों का जोर रहेगा। हिंदी फिल्मों में आइटम गीतों का होना कोई नई बात नहीं है। पहले इन गीतों का फिल्म की कहानी से तालमेल बिठाया जाता था। राज कपूर और गुरुदत्त ने अपनी फिल्मों में ऐसे गीतों को फिल्म का हिस्सा बना कर पेश किया। फिर

देसी मुन्नी, शहरी शीला

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-अजय ब्रह्मात्‍मज धुआंधार प्रचार से शीला की जवानी.. की पंक्तियां लोग गुनगुनाने लगे हैं, लेकिन शीला..शीला.. शीला की जवानी.. के बाद तेरे हाथ नहीं आनी.. ही सुनाई पड़ता है। बीच के शब्द स्पष्ट नहीं हैं। धमाधम संगीत और अंग्रेजी शब्द कानों में ठहरते ही नहीं। धप से गिरते हैं, थोड़ा झंकृत करते हैं और फिर बगैर छाप छोड़े गायब हो जाते हैं। यही वजह है कि आइटम सांग ऑफ द ईयर के स्वघोषित दावे के बावजूद शीला की जवानी.. का असर मुन्नी बदनाम हुई.. के जैसा नहीं होगा। मुन्नी.. को कोई दावा नहीं करना पड़ा। उसे दर्शकों ने आइटम सांग ऑफ द ईयर बना दिया है। दबंग में आइटम सांग की जरूरत सलमान खान ने महसूस की थी। उन्होंने इसके लिए मुन्नी बदनाम हुई.. पसंद किया और पर्दे पर असहज स्थितियों और दृश्यों की संभावना के बावजूद अपनी छोटी भाभी मलाइका अरोड़ा को थिरकने के लिए आमंत्रित किया। सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया के लिए अजीब कहलाने वाले सलमान खान अपने परिवार में कितने शालीन बने रहते हैं। मुन्नी बदनाम हुई.. ने कमाल किया। देखते ही देखते वह दबंग की कामयाबी का एक कारण बन गया। मुन्नी बदनाम हुई.. वास्तव में लौंडा बदनाम हुआ.. का फि

जोखिम से मिलेगी जीत

-अजय ब्रह्मात्‍मज मध्य प्रदेश, कश्मीर, महाराष्ट्र और केरल के दूर-दराज इलाकों में फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त इन हीरोइनों के पास न तो मुंबई के स्टूडियो का सुरक्षित माहौल है और न वे सारी सुविधाएं हैं, जिनकी उन्हें आदत पड़ चुकी है। सभी हर प्रकार से जोखिम के लिए तैयार हैं। ग्लैमर व‌र्ल्ड की चकाचौंध से दूर प्राकृतिक वातावरण में धूल-मिट्टी, हवा, जंगल और बगीचे में फिल्म की जरूरत के मुताबिक परिधान पहने इन हीरोइनों को देखकर एकबारगी यकीन नहीं होता कि अभी कुछ दिनों और घंटों पहले तक वे रोशनी में नहाती और कमर मटकाती हीरो के चारों ओर चक्कर लगा रही थीं। साफ दिख रहा है कि हिंदी फिल्मों की कहानी बदल रही है और उसी के साथ बदल रही है फिल्मों में हीरोइनों की स्थिति और भूमिका। फार्मूलाबद्ध कामर्शियल सिनेमा में आयटम गर्ल और ग्लैमर डॉल की इमेज तक सीमित हिंदी फिल्मों की हीरोइनों के बारे में कहा जाता रहा है कि वे नाच-गाने के अलावा कुछ नहीं जानतीं। ऐसे पूर्वाग्रही भी चारों सीनों में क्रमश: कट्रीना, प्रियंका, दीपिका और ऐश्वर्या की मौजूदगी से महसूस करेंगे कि हीरोइनों ने कुछ नया करने की ठान ली है। कुछ भी कर गुजरने

फिल्‍म समीक्षा : दे दना दन

-अजय ब्रह्मात्‍मज प्रियदर्शन अपनी फिल्मों का निर्देशन नहीं करते। वे फिल्मांकन करते हैं। ऐसा लगता है कि वे अपने एक्टरों को स्क्रिप्ट समझाने के बाद छोड़ देते हैं। कैमरा ऑन होने के बाद एक्टर अपने हिसाब से दिए गए किरदारों को निभाने की कोशिश करते हैं। उनकी फिल्मों के अंत में जो कंफ्यूजन रहता है, उसमें सीन की बागडोर एक्टरों के हाथों में ही रहती है। अन्यथा दे दना दन के क्लाइमेक्स सीन को कैसे निर्देशित किया जा सकता है? दे दना दन प्रियदर्शन की अन्य कामेडी फिल्मों के ही समान है। शिल्प, प्रस्तुति और निर्वाह में भिन्नता नहीं के बराबर है। हां, इस बार किरदारों की संख्या बढ़ गई है। फिल्म के हीरो अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी हैं। उनकी हीरोइनें कट्रीना कैफ और समीरा रेड्डी है। इन चारों के अलावा लगभग दो दर्जन कैरेक्टर आर्टिस्ट हैं। यह एक तरह से कैरेक्टर आर्टिस्टों की फिल्म है। वे कंफ्यूजन बढ़ाते हैं और उस कंफ्यूजन में खुद उलझते जाते हैं। फिल्म नितिन बंकर और राम मिश्रा की गरीबी, फटेहाली और गधा मजदूरी से शुरू होती है। दोनों अमीर होने की बचकानी कोशिश में एक होटल में ठहरते हैं, जहां पहले से ही कुछ ल

दरअसल: फिल्म की रिलीज और रोमांस की खबरें

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-अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों हर फिल्म की रिलीज के पंद्रह-बीस दिन पहले फिल्म के मुख्य कलाकारों के रोमांस की खबरें अखबारों में छपने और चैनलों में दिखने लगती हैं। पिछले दिनों रणबीर कपूर और कट्रीना कैफ की अजब प्रेम की गजब कहानी आई। रिलीज के पहले खबरें दिखने लगीं कि रणबीर-कैट्रीना की केमिस्ट्री गजब की है। वास्तव में दोनों के बीच रोमांस चल रहा है, इसलिए उनके प्रेमी खिन्न हैं। दोनों के संबंध अपने-अपने पे्रमियों से खत्म हो चुके हैं। अखबार और चैनलों पर यही खबर थी। अगर फिल्मों और उसके प्रचार के इतिहास से लोग वाकिफ हों या थोड़े भी सचेत ढंग से इन खबरों पर नजर रखते हों, तो उन्हें याद होगा कि यह सिलसिला पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना के समय से चला आ रहा है। एक प्रचारक ने नियोजित तरीके से हर फिल्म की हीरोइन के साथ राजेश खन्ना के प्यार की किस्से बनाए। कभी फिल्म की युगल तस्वीरें तो कभी किसी पार्टी की अंतरंग तस्वीरों से उसने इन खबरों को पुख्ता किया। राजेश खन्ना की रोमांटिक फिल्मों को ऐसे प्रचार से फायदा हुआ। बाद में इस तरकीब को दूसरों ने अपनाया और कमोबेश उनकी फिल्मों को भी लाभ हुआ। मीडिया विस्फोट और समाचार चै

फिल्‍म समीक्षा : अजब प्रेम की गजब कहानी

-अजय ब्रह्मात्‍मज यह फिल्म प्रेम यानी रणबीर कपूर की है। वह जेनी का पे्रमी है। जेनी उसे बहुत पसंद करती है। आखिरकार उसे महसूस होता है कि उसका असली प्रेमी तो प्रेम ही है। वह उसके साथ घर बसाती है। फिल्म को देखते हुए साफ तौर पर लगता है कि राजकुमार संतोषी ने रणबीर और कैटरीना के चुनाव के बाद फिल्म की कथा बुनी है, क्योंकि हर दृश्य की शुरुआत और समाप्ति दोनों में से किसी एक कलाकार से ही होती है। इसे निर्देशक की सीमा कह सकते हैं या हिंदी फिल्मों के बदलते परिदृश्य में स्टारों का केंद्रीय महत्व मान सकते हैं। फिल्म का उद्देश्य हंसाना है, इसलिए शुरू से आखिर तक ऐसे दृश्यों की परिकल्पना की गई है जो दर्शकों को गुदगुदा सके। यह एक सामान्य कामेडी फिल्म है, और यह कहा जा सकता है कि राजकुमार संतोषी की ही एक अन्य फिल्म अंदाज अपना अपना से इसकी कामेडी कमजोर है। यह फिल्म मुख्य तौर पर रणबीर कपूर पर निर्भर है हालांकि वह दर्शकों को निराश भी नहीं करते। प्रेम के किरदार में उनके अभिनय का आत्मविश्वास निखार पर दिखाई देता है। वह हर अंदाज में प्यारे लगते हैं, क्योंकि उन्होंने पूरे मनोयोग और विश्वास से अपने किरदार को