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Showing posts with the label रितिक रोशन

फिल्‍म समीक्षा - काबिल

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फिल्म रिव्‍यू काबिल इमोशन के साथ फुल एक्शन -अजय ब्रह्मात्‍मज     राकेश रोशन बदले की कहानियां फिल्मों में लाते रहे हैं। ‘ खून भरी मांग ’ और ‘ करण-अर्जुन ’ में उन्होंने इस फॉर्मूले को सफलता से अपनाया था। उनकी फिल्मों में विलेन और हीरो की टक्कर और अंत में हीरो की जीत सुनिश्वित होती है। हिंदी फिल्मों के दर्शकों का बड़ा समूह ऐसी फिल्में खूब पसंद करता है, जिसमें हीरो अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले। चूंकि भारतीय समाज में पुलिस और प्रशासन की पंगुता स्पष्‍ट है, इसलिए असंभव होते हुए भी पर्दे पर हीरो की जीत अच्छी लगती है। राकेश रोशन की नयी फिल्म ‘ काबिल ’ इसी परंपरा की फॉर्मूला फिल्म है, जिसका निर्देशन संजय गुप्ता ने किया है। फिल्म में रितिक रोशन हीरो की भूमिका में हैं।     रितिक रोशन को हम ने हर किस्म की भूमिका में देखा और पसंद किया है। उनकी कुछ फिल्में असफल रहीं, लेकिन उन फिल्मों में भी रितिक रोशन के प्रयास और प्रयोग को सराहना मिली। 21वीं सदी के आरंभ में आए इस अभिनेता ने अपनी विविधता से दर्शकों और प्रशंसकों को खुश और संतुष्‍ट किया है। रितिक रोशन को ‘ काबिल ’ लोकप्रियता के नए

फिल्‍म समीक्षा : मोहेंजो दारो

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-अजय ब्रह्मात्‍मजंं अभी हमलोग 2016 ई. में हैं। आशुतोष गोवारीकर अपनी फिल्‍म ‘ मोहेंजो दारो ’ के साथ ईसा से 2016 साल पहले की सिंधु घाटी की सभ्‍यता में ले जाते हैं। प्रागैतिहासिक और भग्‍नावशेषों और पुरातात्विक सामग्रियों के आधार पर आशुतोष गावारीकर ने अपनी टीम के साथ रचा है। उनकी यह रचना कल्‍पनातीत है। चूंकि उस काल के पर्याप्‍त साक्ष्‍य नहीं मिलते,इसलिए आशुतोष गोवारीकर को ‘ मोहेंजो दारो ’ की दुनिया रचने की छूट मिल गई। इन तथ्‍यों पर बहस करना अधिक महत्‍व नहीं रखता कि कपड़े,पहनावे,भाषा और व्‍यवहार में क्‍या होना या नहीं होना चाहिए था ? ‘ मोहेंजो दारो ’ में लेखक और निर्देशक सबसे ज्‍यादा ‘ कदाचित ’ शब्‍द का इस्‍तेमाल करते हैं। ‘ कदाचित ’ का सरल अर्थ शायद और संभवत: है। शायद जोड़ते ही हर बात अनिश्चित हो जाती है। शायद एक साथ ‘ हां ’ और ‘ ना ’ दोनों है। फिल्‍म के संवादों में हर प्रसंग में ‘ कदाचित ’ के प्रयोग से तय है कि फिल्‍म के लेखक और निर्देशक भी अपने विवरण और चित्रण के प्रति अनिश्चित हैं। उनकी अनिश्चितता का असर फिल्‍म के विधि-विधान पर स्‍पष्‍ट है। 4032 साल पहले हड़प्‍पा से

प्रगतिशील थे पूर्वज : रितिक रोशन

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  ‘बैंग बैंग’ की रिलीज के करीब दो साल बाद रितिक रोशन की फिल्‍म मोहेंजो दारो अगले महीने रिलीज होगी। यह प्रागैतिहासिक काल की प्रेम कहानी है। इसके निर्देशक आशुतोष गोवारीकार ने कहानी में अपनी कल्‍पना के रंग भरे हैं। सिंधु घाटी सभ्‍यता के प्राचीन शहर मोहेंजो दारो के इतिहास को उसमें नहीं दर्शाया गया है। मोहेंजो दारो की शूटिंग के चलते रितिक रोशन ने कोई अन्‍य फिल्‍म नहीं की। उन्‍होंने उसे तसल्‍ली से पूरा किया। उसमें वह सरमन की भूमिका में हैं। मुश्किलों का डटकर किया सामना रितिक बताते हैं, ‘अगर मेरा बस चलता तो फिल्‍म की शूटिंग जल्‍दी पूरी हो जाती। मैं भली-भांति अवगत था कि इस फिल्म की शूटिंग कठिन है। मैं आशुतोष की कार्यशैली से बखूबी परिचित हूं। मुझे पता है कि बेहद बारीकी से वे अपने काम को अंजाम देते हैं। उनकी फिल्‍म निर्माण की प्रक्रिया काफी विस्‍तृत होती है। लिहाजा वक्त काफी लगेगा। स्क्रिप्‍ट पढ़ने के दौरान फिल्‍म से पहले मैंने खुद से कई सवाल किए थे। उनका गहराई से मंथन किया था। मैंने खुद से पूछा कि क्या मैं इस फिल्म के लिए तैयार हूं। क्या इस फिल्म ने मेरे दिलोदिमाग पर गहरी छाप

प्रागैतिहासिक प्रेमकहानी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज मेरे प्रिय निर्देशकों में से एक आशुतोष गोवारिकर ने में प्रिय अभिनेताओं में से एक रितिक रोशन के साथ मोहनजो दाड1ों की शूटिंग भुज में आरंभ की। सिंधु घाटी की सभ्‍यता की इस प्रागैतिहासिे प्रेमकहानी में रितिक रोशन की प्रमिका पूजा हेगड़े हैं। लगान,जोधा अकबर और खेलें हम जी जान से की सफलता-विफलता के बाद आशुतोष गोवारिकर ने फिर से साहसिक पहल की है। हिंदी पिफल्‍मों के इतिहास की यह प्राचीनतम प्रेमकहानी होगी। यह देखना रोचक होगा कि आशुतोष अपने विशेषसों की मदद से कैसी दुनिया रचते हैं ? मोहनजो दाड़ो को लेकर उत्‍सुकता बनी रहेगी। आप बताएं कि आप कितने उत्‍सुक हैं और क्‍या अपेक्षाएं रखते हैं ?

फिल्‍म समीक्षा : बैंग बैंग

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  -अजय ब्रह्मात्‍मज  हॉलीवुड की फिल्म 'नाइट एंड डे' का अधिकार लेकर हिंदी में बनाई गई 'बैंग बैंग' पर आरोप नहीं लग सकता कि यह किसी विदेशी फिल्म की नकल है। हिंदी फिल्मों में मौलिकता के अभाव के इस दौर में विदेशी और देसी फिल्मों की रीमेक का फैशन सा चल पड़ा है। हिंदी फिल्मों के मिजाज के अनुसार यह थोड़ी सी तब्दीली कर ली जाती है। संवाद हिंदी में लिख दिए जाते हैं। दर्शकों को भी गुरेज नहीं होता। वे ऐसी फिल्मों का आनंद उठाते हैं। सिद्धार्थ आनंद की 'बैंग बैंग' इसी फैशन में बनी ताजा फिल्म है। इस फिल्म के केंद्र में देश के लिए काम कर रहे सपूत राजवीर की कहानी है। हर प्रकार से दक्ष और योग्य राजवीर एक मिशन पर है। हरलीन के साथ आने से लव और रोमांस के मौके निकल आते हैं। बाकी फिल्म में हाई स्पीड और हाई वोल्टेज एक्शन है। पूरी फिल्म एक के बाद एक हैरतअंगेज एक्शन दृश्यों से भरी है, जिनमें रितिक रोशन विश्वसनीय दिखते हैं। उनमें एक्शन दृश्यों के लिए अपेक्षित चुस्ती-फुर्ती है। उनके साथ कट्रीना कैफ भी कुछ एक्शन दृश्यों में जोर आजमाती है। वैसे उनका मुख्य काम सुंदर दिखना और

फिर से साथ आ रहे हैं आशुतोष गोवारिकर और रितिक रोशन

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-अजय ब्रह्मात्मज     आशुतोष गोवारिकर और रितिक रोशन की डायरेक्टर-स्टार जोड़ी एक बार फिर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बन रही प्रेमकहानी ‘मोहनजोदाड़ो’ में दिखेगी। आशुतोष गोवारिकर और रितिक रोशन दोनों इस फिल्म को लेकर उत्साहित हैं। ‘मोहनजोदाड़ो’ सिंधु घाटी की सभ्यता की प्रेमकहानी है, जिसमें रितिक रोशन नायक की भूमिका निभाएंगे। नायिका का चुनाव अभी तक नहीं हुआ है। अक्टूबर-नवंबर में आरंभ हो रही इस फिल्म का सेट ‘लगान’ और ‘जोधा अकबर’ की तरह विशाल एवं विस्तृत होगा। सेट के लिए समुचित स्थान की खोज जारी है। ‘मोहनजोदाड़ो’  की घोषणा पर रितिक रोशन कहते हैं, ‘आशुतोष के साथ फिल्म करना शारीरिक और मानसिक तौर पर चुनौती है। उनके असामान्य किरदारों को पर्दे पर उतारना आसान नहीं होता। मेरे लिए खुशी की बात है कि देश-दुनिया में विख्यात सिंधु घाटी की सभ्यता के समय के किरदार को जीने का मौका मिलेगा।’ अपनी फिल्मों की भव्यता और गहराई के लिए विख्यात आशुतोष गोवारिकर ‘मोहनजोदाड़ो’ को पिछली फिल्मों से अधिक मुश्किल मानते हैं। वे कहते हैं, ‘मुझे प्रेमकहानियां पसंद हैं। मैं अलग-अलग पीरियड की प्रेम कहानियां पेश करने में यकीन रखता

इंडियन और वेस्टर्न टेेस्ट का मिश्रण है ‘कृष 3’- रितिक रोशन

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-अजय ब्रह्मात्मज -‘कृष 3’ के निर्माण की प्रक्रिया पिछले कई सालों से चल रही थी। वह कौन सी चीज मिली कि आप ने वह फिल्म बना दी? 0 मेरे ख्याल से कोई चीज बननी होती है तो वह पांच दिन में बन जाती है। नहीं बननी होती है तो उसमें सालों लग जाते हैं और नहीं बनती है। ‘कृष’ के अगले दो-तीन साल तक तो कोई ढंग की स्क्रिप्ट हाथ में नहीं आई। फिर एक स्क्रिप्ट आई। दूसरी आई। तीसरी हमने ट्राई की। इत्तफाकन जो हम सोच रहे थे, उन पर तो हॉलीवुड में फिल्में बन भी गईं। हमें हर बार नयी स्क्रिप्ट तैयार करनी पडी। -क्या  आप शेयर करना चाहेंगे वे आइडियाज और कौन सी फिल्में बन गईं?  0जी हां, हमने सोचा था कि हमारा विलेन एलियन होगा। वह रबडऩुमा होगा। किसी के शरीर में प्रवेश कर लेगा। कुछ वैसा ही ‘स्पाइडरमैन 3’ में दिखा।  काला एलियन किसी के शरीर में प्रवेश कर उस पर हावी हो जाता था। अपनी फिल्म के लिए भी हमने वही सोचा था। एक एलियन आएगा, कृष के शरीर में समाएगा। फिर कृष अपने स्याह पहलू को निकालने के लिए उससे लड़ेगा। दुर्भाग्य से जब ‘स्पाइडरमैन 3’ आई तो हम भौंचक्के रह गए। हम पांच लोग जानते थे अपने विलेन के बारे में। हम सब एक-

बच्चों काे पसंद आएगी ‘कृष 3’-राकेश रोशन

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-अजय ब्रह्मात्मज - ‘कृष 3’ आने में थोड़ी ज्यादा देर हो गई? क्या वजह रही? 0 ‘कृष 3’ की स्क्रिप्ट बहुत पहले लिखी जा चुकी थी। मैं खुश नहीं था। उसे ड्रॉप करने के बाद नई स्क्रिप्ट शुरू हुई। उसका भी 70 प्रतिशत काम हो गया तो वह भी नहीं जंचा। ऐसा लग रहा था कि हम जबरदस्ती कोई कहानी बुन रहे हैं। बहाव नहीं आ रहा था। भारत के सुपरहीरो फिल्म में गानों की गुंजाइश रहनी चाहिए। इमोशन और फैमिली ड्रामा भी पिरोना चाहिए। मुझे पहले फैमिली और बच्चों को पसंद आने लायक कहानी चुननी थी। उसके बाद ही सुपरहीरो और सुपरविलेन लाना था। फिर लगा कि चार साल हो गए। अब तो ‘कृष 3’ नहीं बन पाएगी। आखिरकार तीन महीने में कहानी लिखी गई, जो पसंद आई। 2010 के मध्य से 2011 के दिसंबर तक हमने प्री-प्रोडक्शन किया। - प्री-प्रोडक्शन में इतना वक्त देना जरूरी था क्या? 0 उसके बगैर फिल्म बन ही नहीं सकती थी। हम ने सब कुछ पहले सोच-विचार कर फायनल कर लिया। पूरी फिल्म को रफ एनीमेशन में तैयार करवाया। कह लें कि एनीमेटेड स्टोरी बोर्ड तैयार हुआ। अपने बजट में रखने के लिए  सब कुछ परफेक्ट करना जरूरी था। मेरे पास हालीवुड की तरह 300 मिलियन डॉलर तो ह

बुलंद रहना एक च्वाइस है-रितिक रोशन

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-अजय ब्रह्मात्मज दिमाग का ऑपरेशन करवा चुके रितिक रोशन इन दिनों पापा राकेश रोशन के साथ ‘कृष 3’ के पोस्ट प्रोडक्शन में व्यस्त हैं। डाक्टरों ने उन्हें आराम की सलाह दी है,लेकिन वे स्वास्थ्य लाभ के लिए मिली फुर्सत का उपयोग फिल्म की बेहतरी के लिए कर रहे हैं। करिअर के आरंभ से ही मिली चुनौतियों को परास्त करते हुए उन्होंने सफलता हासिल की है। इस बार हम ने फिल्म से ज्यादा उनके इस जोश को समझने की कोशिश की। ‘कृष 3’ में वे सुपरहीरो की भूमिका में हैं। निजी जिंदगी में उनका उत्साह किसी सुपरहीरो से कम नहीं है। उनके ही शब्दों में कहें तो .... बुलंद रहना एक च्वाइस है। जिंदगी में चाहे जो कुछ हो, बुलंद रहना आप के हाथ में है। आप बिस्तर पर हो तो भी बुलंद रह सकते हो। ब्रेन में ....आप के दिमाग में होल हो रहा हो तो भी आप बुलंद रह सकते हो। आप का जो स्पिरिट है, वह आप के हाथ में है। अपने ऑपरेशन वाकये से यही मुझे रियलाइज हुआ है। यह तय करने में मुझे तीन सेकेंड लगे कि मुझे ऑपरेशन करवाना है। कई बार आप के सामने दीवार होती है, जिसे या तो आप पार करें या फिर उसे तोड़ें। मैंने उसे तोड़ दिया। उस वक्त मैंने सोचा कि मेरे

कृष 3 में दिखेंगे मानवर

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-अजय ब्रह्मात्मज हम फिल्मों में मानवों को देखते हैं। वे ही अल-अलग किरदार बन कर आते हैं। कुछ फिल्मों में जानवर भी होते हैं। मानव और जानवर से अलग कोई जीव देखा है कभी? राकेश रोशन ‘कृष 3’ में मानवरों को लेकर आ रहे हैं। मानवर यानी म्यूटैंट। सुपरहीरो फिल्मों में म्यूटैंट दिखते रहे हैं। ‘कृष 3’ में भी म्यूटैंट हैं। राकेश रोशन ने उन्हें हिंदी नाम दिया है। काफी सोच-विचार के बाद सभी लेखकों की सहमति से म्यूटैंट के लिए मानवर शब्द उपयुक्त माना गया। मानव और जानवर के योग से बना मानवर।  ‘कृष 3’ में कृष की लड़ाई मनुष्यों से नहीं होती। इस बार वह मानवरों से लड़ रहा है। इस फिल्म का खलनायक काल अलग-अलग किस्म के मानवर बनाता है। फिल्म देखने पर मालूम होगा कि कृष से लडऩे के लिए वह मानवरों को क्यों भेजता है? हर एक्शन सीन में रितिक का मुकाबला एक नए मानवर से होता है। हर मानवर की अपनी खूबी है। कोई मानवर जीभ से लड़ता है। कोई भारी से भारी सामान उठा सकता है तो कोई अदृश्य रहता है। काल के साथ रहने वाली काया रूप बदलने में माहिर है। वह अपना रंग भी बदल लेती है। वास्तव में वह गिरगिट से बनी मानवर है। इतने सारे इंटरेस्टिं

फिल्‍म समीक्षा : अग्निपथ

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-अजय ब्रह्मात्‍मज प्रचार और जोर रितिक रोशन और संजय दत्त का था, लेकिन प्रभावित कर गए ऋषि कपूर और प्रियंका चोपड़ा। अग्निपथ में ऋषि कपूर चौंकाते हैं। हमने उन्हें ज्यादातर रोमांटिक और पॉजीटिव किरदारों में देखा है। निरंतर सद्चरित्र में दिखे ऋषि कपूर अपने खल चरित्र से विस्मित करते हैं। प्रियंका चोपड़ा में अनदेखी संभावनाएं हैं। इस फिल्म के कुछ दृश्यों में वह अपने भाव और अभिनय से मुग्ध करती हैं। शादी से पहले के दृश्य में काली की मनोदशा (खुशी और आगत दुख) को एक साथ जाहिर करने में वह कामयाब रही हैं। कांचा का दाहिना हाथ बने सूर्या के किरदार में पंकज त्रिपाठी हकलाहट और बेफिक्र अंदाज से अपनी अभिनय क्षमता का परिचय देते हैं। दीनानाथ चौहान की भूमिका में चेतन पंडित सादगी और आदर्श के प्रतिरूप नजर आते हैं। इन किरदारों और कलाकारों के विशेष उल्लेख की वजह है। फिल्म के प्रोमोशन में इन्हें दरकिनार रखा गया है। स्टार रितिक रोशन और संजय दत्त की बात करें तो रितिक हमेशा की तरह अपने किरदार को परफेक्ट ढंग से चित्रित करते हैं। संजय दत्त के व्यक्तित्व का आकर्षण उनके परफारमेंस की कमी को ढक देता है। कांचा की खल

कोशिश करूंगा दोबारा-रितिक रोशन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अपनी ईमानदारी से वह सबको कर देते हैं कायल और जिंदगी के अनुभवों से फूंकते हैं अभिनय में प्राण। रितिक रोशन से मुलाकात के अंश.. असफलताएं आत्मविश्लेषण का मौका देती हैं। रितिक रोशन के संदर्भ में बात करें तो काइट्स और गुजारिश की असफलताओं ने उन्हें अधिक मैच्योर और दार्शनिक बना दिया है। उनकी बातों में पहले भी आध्यात्मिकता और दर्शन का पुट रहता था, लेकिन बढ़ती उम्र और अनुभव ने उन्हें अधिक सजग कर दिया है। पापा ने तो रोका था रितिक ने कभी दूसरों के माथे पर ठीकरा नहीं फोड़ा। काइट्स की असफलता के लिए वे सिर्फ खुद को जिम्मेदार मानते हैं। वे कहते हैं, ''पापा ने समझाया था कि तुम लोग गलत कर रहे हो। हिंदी फिल्मों का दर्शक केवल हिंदी समझता है, लेकिन मुझे तब लग रहा था कि अगर मेरा किरदार अंग्रेजी में बात करे तो वह ईमानदार होगा।'' वह विस्तार से समझाते हैं, ''अपने किरदार को ईमानदारी से जीने के चक्कर में मैं यह गलती कर बैठा। अनुराग और पापा ने पूरी फिल्म हिंदी में सोची थी। पहले ही दिन शूट करते समय मुझे लगा कि मैं लास वेगास में रहता हूं और एक स्पैनिश लड़की के संपर्क में आय

फिल्‍म समीक्षा : गुजारिश

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सुंदर मनोभावों का भव्य चित्रण -अजय ब्रह्मात्‍मज पहले फ्रेम से आखिरी फ्रेम तक गुजारिश किसी जादू की तरह जारी रहता है। फिल्म ऐसा बांधती है कि हम अपलक पर्दे पर चल रही घटनाओं को देखते रहते हैं। इंटरवल भी अनायास लगता है। यह संजय लीला भंसाली की अनोखी रंगीन सपनीली दुनिया है, जिसका वास्तविक जगत से कोई खास रिश्ता नहीं है। फिल्म की कहानी आजाद भारत की है, क्योंकि संविधान की बातें चल रही हैं। पीरियड कौन सा है? बता पाना मुश्किल होगा। फोन देखकर सातवें-आठवें दशक का एहसास होता है, लेकिन रेडियो जिदंगी जैसा एफएम रेडियो और सैटेलाइट न्यूज चैनल हैं। मोबाइल फोन नहीं है। संजय लीला भंसाली इरादतन अपनी फिल्मों को काल और समय से परे रखते हैं। गुजारिश में मनोभावनाओं के साथ एक विचार है कि क्या पीडि़त व्यक्ति को इच्छा मृत्यु का अधिकार मिलना चाहिए? गुजारिश एक अद्भुत प्रेमकहानी है, जिसे इथेन और सोफिया ने साकार किया है। यह शारीरिक और मांसल प्रेम नहीं है। हम सभी जानते हैं कि इथेन को गर्दन के नीचे लकवा (क्वाड्रो प्लेजिया) मार गया है। उसे तो यह भी एहसास नहीं होता कि उसने कब मल-मूत्र त्यागा। एक दुर्घटना के बाद

फिल्‍म समीक्षा:काइट्स

-अजय ब्रह्मात्‍मज  रितिक रोशन बौर बारबरा मोरी की काइट्स के रोमांस को समझने के लिए कतई जरूरी नहीं है कि आप को हिंदी, अंग्रेजी और स्पेनिश आती हो। यह एक भावपूर्ण फिल्म है। इस फिल्म में तीनों भाषाओं का इस्तेमाल किया गया है और दुनिया के विभिन्न हिस्सों के दर्शकों का खयाल रखते हुए हिंदी और अंग्रेजी में सबटाइटल्स दिए गए हैं। अगर आप उत्तर भारत में हों तो आपको सारे संवाद हिंदी में पढ़ने को मिल जाएंगे। काइट्स न्यू एज हिंदी सिनेमा है। यह हिंदी सिनेमा की नई उड़ान है। फिल्म की कहानी पारंपरिक प्रेम कहानी है, लेकिन उसकी प्रस्तुति में नवीनता है। हीरो-हीरोइन का अबाधित रोमांस सुंदर और सराहनीय है। काइट्स विदेशी परिवेश में विदेशी चरित्रों की प्रेमकहानी है। जे एक भारतवंशी लड़का है। वह आजीविका के लिए डांस सिखाता है और जल्दी से जल्दी पैसे कमाने के लिए नकली शादी और पायरेटेड डीवीडी बेचने का भी धंधा कर चुका है। उस पर एक स्टूडेंट जिना का दिल आ जाता है। पहले तो वह उसे झटक देता है, लेकिन बाद में जिना की अमीरी का एहसास होने के बाद दोस्ती गांठता है। प्रेम का नाटक करता है। वहीं उसकी मुलाकात नताशा से होती ह

प्यार की उड़ान है काइट्स-राकेश रोशन

-अजय ब्रह्मात्‍मज उनकी फिल्मों का टाइटल अंग्रेजी अक्षर 'के' से शुरू होता है और वे बॉक्स ऑफिस पर करती हैं कमाल। रिलीज से पहले ही सुर्खियां बटोर रही नई फिल्म काइट्स के पीछे क्या है कहानी, पढि़ए राकेश रोशन के इस स्पेशल इंटरव्यू में- [इस बार आपकी फिल्म का शीर्षक अंग्रेजी में है?] 2007 में अपनी अगली फिल्म के बारे में सोचते समय मैंने पाया कि आसपास अंग्रेजी का व्यवहार बढ़ चुका है। घर बाहर, होटल, ट्रांसपोर्ट; हर जगह लोग धड़ल्ले से अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे हैं। लगा कि मेरी नई फिल्म आने तक यह और बढ़ेगा। ग्लोबलाइजेशन में सब कुछ बदल रहा है। अब पाजामा और धोती पहने कम लोग दिखते हैं। सभी जींस-टीशर्ट में आ गए हैं और अंग्रेजी बोलने लगे हैं। यहीं से काइट्स का खयाल आया। एक ऐसी फिल्म का विचार आया कि लड़का तो भारतीय हो, लेकिन लड़की पश्चिम की हो। उन दोनों की प्रेमकहानी भाषा एवं देश से परे हो। ]यह प्रेम कहानी भाषा से परे है, तो दर्शक समझेंगे कैसे?] पहले सोचा था कि भारतीय एक्ट्रेस लेंगे और उसे मैक्सिकन दिखाएंगे। बताएंगे कि वह बचपन से वहां रहती है, इसलिए उसे हिंदी नहीं आती। फिर लगा कि यह गलत होगा। यह सब

रितिक रोशन :अभिनय में अलबेला

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-अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्मी परिवारों के बच्चों को अपनी लांचिंग के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता। उनके मां-बाप सिल्वर स्क्रीन पर उतरने की उनकी ख्वाहिश जल्दी से जल्दी पूरी करते हैं। इस सामान्य चलन से विपरीत रही रितिक रोशन की लांचिंग। जनवरी, 2000 में उनकी पहली फिल्म कहो ना प्यार है दर्शकों के सामने आयी, लेकिन उसके पहले पिता की सलाह पर अमल करते हुए उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियों को सीखा। वे अपने पिता के सहायक रहे और किसी अन्य सहायक की तरह ही मुश्किलों से गुजरे। स्टारों की वैनिटी वैन के बाहर खड़े रहने की तकलीफ उठायी। कैमरे के आगे आने के पहले उन्होंने कैमरे के पीछे की जरूरतों को आत्मसात किया। यही वजह है कि वे सेट पर बेहद विनम्र और सहयोगी मुद्रा में रहते हैं। उन्हें अपने स्टाफ को झिड़कते या फिल्म यूनिट पर बिगड़ते किसी ने नहीं देखा। [कामयाबी से मिला कान्फीडेंस] रितिक रोशन मैथड, रिहर्सल और परफेक्शन में यकीन करते हैं। 1999 की बात है। उनकी पहली फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई थी। फोटोग्राफर राजू श्रेष्ठा के स्टूडियो में वे फोटो सेशन करवा रहे थे। उन्होंने वहीं बातचीत और इंटरव्यू के लिए बुला लिया था।