संग-संग : तिग्मांशु घूलिया-तूलिका धूलिया
![Image](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOFU0XshWQmZBfHvcpSoJT7Suj8iMzc8H3PIpZLDtIs7YmzMJTDl4oPPKx_TEkC6LbEBAcHo1DGdWl4-Sd6DZeWb-i1PmUtmr2iSat05O6AEL5NT9l4qFjdFeLiW4jlMGtboxhcg91EUY/s1600/YOG_3842+-+2.jpg)
-अजय ब्रह्मात्मज तिग्मांशु और तूलिका की यह कहानी अत्यंत रोचक और रोमैंटिक है। इलाहाबाद शहर की पृष्ठभूमि में पनपे उनके संग-संग चलने का यह सफर प्रेरक भी है। साथ ही विवाह की संस्था की प्रांसिगकता भी जाहिर होती है। तूलिका - पहली मुलाकात की याद नहीं। तब तो हमलोग बहुत छोटे थे। छोटे शहरों में लड़कियों को बाहर के लडक़ों से बात नहीं करने दिया जाता है। कोई कर ले तो बड़ी बात हो जाती है। मुद्दा बन जाता है। हम दोनों की इधर-उधर मुलाकातें होती रहती थीं। कोई ऐसी बड़ी रुकावट कभी नहीं रही। उस समय तो सबकुछ एडवेंचर लगता था। एडवेंचर में ही सफर पूरा होता चला गया। पलटकर देखूं तो कोई अफसोस नहीं है। मुझे सब कुछ मिला है। कभी कुछ प्लान नहीं किया था तो सब कुछ सरप्राइज की तरह मिलता गया। हमारा संबंध धीरे-धीरे बढ़ा। पता ही नहीं चला। हमलोग बाद में मुंबई आकर रम गए। हमारे थोड़े-बहुत दोस्त थे। उन सभी के साथ आगे बढ़ते रहे। मां-बाप की यही सलाह थी कि पहले कुछ कर लो। हर मां-बाप यही सलाह देते होंगे। अब हम भी ऐसे ही सोचते हैं। परिवार वालों को सीधी पढ़ाई और सीधी नौकरी समझ में आती है। तिग्माुशु की पढ़ाई और करिअर का