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इम्तियाज अली से विस्‍तृत बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्‍मज जमशेदपुर में हमारे घर में फिल्म देखने का रिवाज था , पर बच्चों का फिल्म देखना अच्छा नहीं समझा जाता था। थोड़ा सा ढक छिपकर लोग फिल्म देखा करते थे। मेरे माता - पिता को फिल्मों का शौक था। वह लोग अपने माता - पिता से छिपकर फिल्म देखने जाया करते थे। मेरी पैदाइश के बाद भी वह दोनों स्कूटर पर बैठकर फिल्म देखने जाया करते थे। मेरे ख्याल से वह एक सम्मोहन था , जैसा की हर बच्चे को होता है। मैं भी फिल्मों के प्रति बचपन में सम्मोहित था। मैं बड़ा होने पर पटना गया , तब भी फिल्मों को लेकर वही माहौल रहा। आज भी मेरे निजी घर में फिल्म मैगजीन नहीं आती है। लेकिन देखा गया है कि जिस चीज के लिए मना किया जाएं , उसके प्रति सम्मोहन बढ़ता ही जाता है। हमारे परिवार में एक रिश्तेदार थे। उनके जमशेदपुर में सिनेमा हॅाल थे , जहां के लाइनमैन और दरबान हम लोगों को जानते थे। हम लोग बिना घर में किसी को बताए , सिनेमा हॉल में चले जाते थे। मुझे य