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बाजी मेरे हाथ - रणवीर सिंह

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-अजय ब्रह्मात्‍मज       रणवीर सिंह की ‘ बाजीराव मस्‍तानी ’ 100 करोड़ी क्‍लब में जा चुकी है। उससे भी बड़ी उपलब्धि है कि सभी उनकी भूमिका और अभिनय की तारीफ कर रहे हैं। बहुत कम ऐसा होता है,जब किरदार और कलाकार दोनों ही दर्शकों को पसंद आ जाएं। दरअसल,लोकप्रियता की यह द्वंद्वात्‍मक प्रक्रिया है। इस फिल्‍म की सफलता और सराहना से रणवीर सिंह अपनी पीढ़ी के संभावनाशील अभिनेता के तौर पर उभरे हैं। इस पहचान ने उनकी एनर्जी को नया आयाम दे दिया है। उनकी अगली फिल्‍म आदित्‍य चोपड़ा के निर्देशन में आ रही ‘ बेफिकरे ’ है।     फिलहाल वे लंबी छ़ुट्टी पर निकल चुके हैं। इस छ़ुट्टी में ही वे ‘ बेफिकरे ’ के लुक और परिधान की तैयारी करेंगे। बाजीराव के किरदार से बाहर निकलने के लिए भी जरूरी है कि वे थोड़ा आराम करें। अपने अंदर से उसे उलीचें और फिर नए किरदार को आत्‍मसात करें। वे उत्‍साहित हैं कि उन्‍हें आदित्‍य चोपड़ा के साथ काम करने का मौका मिल रहा है। कम लोग जानते हैं कि आदित्‍य चोपड़ा उनके खास मेंटोर है। उनके करिअर के अहम फैसले भी वाईआरएफ(यशराज फिल्‍म्‍स) टैलेंट टीम की सलाह से लिए जाते हैं। ‘ बैंड बाजा

फिल्‍म समीक्षा : बाजीराव मस्‍तानी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज कल्‍पना और साक्ष्‍य का भव्‍य संयोग       यह कहानी उस समय की है,जब मराठा साम्राज्‍य का ध्‍वज छत्रपति साहूजी महाराज के हाथों में लहरा रहा था और जिनके पेशवा थे बाजीराव वल्हाड़। तलवार में बिजली सी हरकत और इरादों में हिमालय की अटलता,चितपावन कुल के ब्राह्मनों का तेज और आंखों में एक ही सपना... दिल्‍ली के तख्‍त पर लहराता हुआ मराठाओं का ध्‍वज। कुशल नेतृत्‍व,बेजोड़ राजनीति और अकल्‍पनीय युद्ध कौशल से दस सालों में बाजीराव ने आधे हिंदुस्‍तान पर अपना कब्‍जा जमा लिया। दक्षिण में निजाम से लेकर दिल्‍ली के मुगल दरबार तक उसकी बहादुरी के चर्चे होने लगे।        इस राजनीतिक पृष्‍ठभूमि में रची गई संजय लीला भंसाली की ऐतिहासिक प्रेमकहानी है ‘ बाजीराव मस्‍तानी ’ । बहादुर बाजीराव और उतनी ही बहादुर मस्‍तानी की यह प्रेमकहानी छोटी सी है। अपराजेय मराठा योद्धा बाजीराव और  बुंदेलखंड की बहादुर राजकुमारी मस्‍तानी के बीच इश्‍क हो जाता है। बाजीराव अपनी कटार मस्‍तानी को भेंट करता है। बुंदेलखंड की परंपरा में कटार देने का मतलब शादी करना होता है। मस्‍तानी पुणे के लिए रवाना होती है ताकि बा

अलग है मेरा तरीका -रणवीर सिंह

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-अजय ब्रह्मात्मज अभिनेता रणवीर सिंह की अदाकारी में लगातार निखार आ रहा है। संजय लीला भंसाली के संग वे साल की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ लेकर आ रहे हैं। - क्या बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है? जी हां, बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है, अय्याशी नहीं। वह बार-बार ऐसा कहता रहता है, क्योंकि कई लोग ऐसे हैं, जो उनकी मुहब्बत के खिलाफ हैं। लिहाजा वह चाहता है कि लोग उनके रिश्ते को समझें व उसका सम्मान करें। -संजय लीला भंसाली के व इतिहास के बाजीराव में कितना अंतर है? या फिर दोनों को एक जैसा ही रखा गया है? एक किताब है ‘पेशवा घराण्याचां इतिहास’। उसमें दर्ज कहानी को संजय सर ने खूबसूरती से दर्शाया है। फिल्म उस किताब पर आधारित है। बाजीराव और मस्तानी के बारे में जो व्याख्या वहां की गई है, उसे ही फिक्शन की शक्ल दी गई है। वे यह नहीं कह रहे हैैं कि दोनों के रिश्तों की कशमकश असल में भी वैसी ही रही होगी, जैसा फिल्म में है। -बाजीराव आपके लिए क्या हैैं? मैैंने स्कूल में केवल शिवाजी महाराज के इतिहास के बारे में पढ़ा था। पेशवा बाजीराव के बारे में पूर्ण विवरण नहीं दिया गया था। उनके बारे में ज

काम अनूठे ही करता हूं - रणवीर सिंह

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-अजय ब्रह्मात्मज     रणवीर सिंह अभी विश्राम कर रहे हैं। ‘बाजीराव मस्तानी’ की शूटिंग के समय अपने घोड़े आर्यन से गिर जाने के कारण उनके कंधे का एक लिगमेंट फट गया था। दो हफ्ते पहले उसकी सर्जरी हुई। रणवीर ने ऑपरेशन बेड से अपनी सेल्फी शेयर की तो कुछ ने इसे उनके हौसले से जोड़ा तो कुछ ने इसे उनकी पर्सनैलिटी से जोड़ कर दिखावे की बात की। रणवीर बताते हैं,‘क्या हुआ कि ऑपरेशन बेड पर एनेस्थीसिया की तैयारी चल रही थी तभी कोई सेल्फी की मांग करने लगा। मैंने उसे अपनी स्थिति का हवाला देकर तत्काल मना कर दिया। बाद में मैंने सोचा कि सेल्फी दे देनी चाहिए थी। वह नहीं दिखा तो मैंने खुद ही सेल्फी ली और उसे शेयर कर दिया। पहले कभी किसी ने ऐसा नहीं किया था। मुझे अच्छा लगा। मैं तो हमेशा वही करता हूं,जो पहले किसी ने नहीं किया हो। मेरे लिए वह मस्ती थी।’ राजस्थान में अस्पताल में जांच के समय भी प्रशंसकों न उन्हें घेर लिया था। रणवीर को इनसे दिक्कत नहीं होती। उन्हें तब उलझन होती है,जब कोई खाते वक्त या वाशरूम इस्तेमाल करते समय सेल्फी या तस्वीर उतारने की मांग करता है। वे ऐसी एक घटना सुनाते हैं,‘मुंबई के एक पांच सितारा हो

इन दिनों मैं समय बिताने के लिए चलता हूं।

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मुंबई में कई बार एक इवेंट या मुलाकात के बाद दूसरे इवेंट या मुलाकात के बीच इतना समय नहीं रहता कि मैं घर लौट सकूं या ऑफिस जा सकूं। ऐसी स्थिति आने पर मैं चलता हूं। कई बार अगले ठिकाने तक पैदल जाता हूं। समय कट जाता है और कुछ नई चीजें दिखाई पड़ जाती हैं। आज लाइट बॅक्‍स के प्रिव्‍यू शो के बाद मुझे रणवीर सिंह के घर जाना था। खार जिमखाना तक मैं पैदल ही चल पड़ा। बाकी तो मजा आया,लेकित तीन बार पसीने से तरबतर हुआ। रणवीर के अपार्टमेंट में घुसते समय झेंपा और सकुचाया हुआ था। क्‍यों,रणवीर मिलते ही भर पांज भींच लेते हैं। मुझे डर था कि कहीं दरवाजे पर ही मुलाकात हुई तो क्‍या होगा ? पसीने से तरबतर व्‍यक्ति की झप्‍पी ठीक नहीं रहेगीत्र गनीमत है। मुझे वक्‍त मिला। चसीना सूख गया। और फिर रणवीर मिले तो वैसे ही मिलना हुआ। भर पांज की भींच और ढेर सारी बातें....हर अच्‍छी मुलाक़ात की तरह आज की मुलाकात भी अधूरी ही रही।

फिल्‍म समीक्षा : किल दिल

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  भारतीय समाज और समाज शास्त्र में बताया जाता रहा है कि मनुष्य के स्वभाव और सोच पर परवरिश और संगत का असर होता है। जन्म से कोई अच्छा-बुरा नहीं होता। इस धारणा और विषय पर अनेक हिंदी फिल्में बन चुकी हैं। शाद अली ने इस मूल धारणा का आज के माहौल में कुछ किरदारों के जरिए पेश किया है। शाद अली की फिल्मों का संसार मुख्य रूप से उत्तर भारत होता है। वे वहां के ग्रे शेड के किरदारों के साथ मनोरंजन रचते हैं। इस बार उन्होंने देव और टुटु को चुना है। इन दोनों की भूमिकाओं में रणवीर सिंह और अली जफर हैं।             क्रिमिनल भैयाजी को देव और टुटु कचरे के डब्बे में मिलते हैं। कोई उन्हें छोड़ गया है। भैयाजी उन्हें पालते हैं। आपराधिक माहौल में देव और टुटु का पढ़ाई से ध्यान उचट जाता है। वे धीरे-धीरे अपराध की दुनिया में कदम रखते हैं। भैयाजी के बाएं और दाएं हाथ बन चुके देव और टुटु की जिंदगी मुख्य रूप से हत्यारों की हो गई है। वे भैयाजी के भरोसेमंद शूटर हैं। सब कुछ ठीक चल रहा है। एक दिन उनकी मुलाकात दिशा से हो जाती है। साहसी दिशा पर देव का दिल आ जाता है। किलर देव के दिल में प्रेम

खुशियां बांटता हूं मैं-रणवीर सिंह

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-अजय ब्रह्मात्मज     रणवीर सिंह से यह बातचीत शुरु ही होने जा रही थी कि उन्हें रितिक रोशन का एसएमएस मिला,जिसमें उन्होंने रणवीर सिंह को ‘बैंग बैंग डेअर’ के लिए आमंत्रित किया था। रणवीर सिंह ने बातचीत आरंभ करने के पहले उनका चैलेंज स्वीकार किया। उन्होंने झट से अपनी मैनेजर को बुलाया और आवश्यक तैयारियों का निर्देश दिया। अचानक उनकी घड़ी पर मेरी नजर पड़ी। रात के बारह बजे उनकी घड़ी में 6 बजने जा रहे थे। सहज जिज्ञासा हुई कि उनकी घड़ी छह घंटे आगे है या छह घंटे पीछे? झुंझला कर उन्होंने हाथ झटका और कहा,‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मेरी घड़ी स्लो क्यों हो जा रही है? यह तो अपशकुन है। ‘फाइंडिंग फैनी’ के कैमियो रोल के लिए मुझे यह घड़ी गिफ्ट में मिली थी। होमी अदजानिया से पूछना होगा। उनकी फिल्म तो निकल गई। यह घड़ी क्यों स्लो हो गई?’ रणवीर सिंह बताते हैं कि होमी बड़े ही फनी मिजाज के हैं। उनके साथ फिल्म करने में मजा आएगा।     एनर्जी से भरपूर रणवीर सिंह कभी गंभीर मुद्रा में नहीं रहते। गंभीर सवालों के जवाब में भी उनकी हंसी फूट पड़ती है। ऐसा लगता है कि वे बहुत सोच-समझ कर जवाब नहीं देते,लेकिन गौर करें त

रणवीर सिंह के तीन रूप

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रणवीर सिंह पिछले दिनों एक चायनीज नूडल्‍स और अन्‍य खाद्य पदार्थ के उत्‍पादों के ऐड की शूटिंग कर रहे थे। मैं वहां पहुंच गया। उस मुलाकात के इन दृश्‍यों पर आप की टिप्‍पणी और कहानी की अपेक्षा है। सर्वाधिक रोचक और टिप्‍पण्‍ी के लिए एक-एक पुरस्‍कार सुनिश्चित है।

फिल्‍म समीक्षा : गुंडे

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दोस्ती-दुश्मनी की चटख कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज यशराज फिल्म्स की अली अब्बास जफर निर्देशित 'गुंडे' देखते समय आठवें दशक की फिल्मों की याद आना मुमकिन है। यह फिल्म उसी पीरियड की है। निर्देशक ने दिखाया भी है कि एक सिनेमाघर में जंजीर लगी हुई है। यह विक्रम और बाला का बचपन है। वे बडे होते हें तो 'मिस्टर इंडिया' देखते हैं। हिंदी फिल्में भले ही इतिहास के रेफरेंस से आरंभ हों और एहसास दें कि वे सिनेमा को रियल टच दे रही हैं, कुछ समय के बाद सारा सच भहरा जाता है। रह जाते हैं कुछ किरदार और उनके प्रेम, दुश्मनी, दोस्ती और बदले की कहानी। 'गुंडे' की शुरुआत शानदार होती है। बांग्लादेश के जन्म के साथ विक्रम और बाला का अवतरण होता है। श्वेत-श्याम तस्वीरों में सब कुछ रियल लगता है। फिल्म के रंगीन होने के साथ यह रियलिटी खो जाती है। फिर तो चटखदार गाढ़े रंगों में ही दृश्य और ड्रामा दिखाई पड़ते हैं। लेखक-निर्देशक अली अब्बास जफर ने बिक्रम और बाला की दोस्ती की फिल्मी कहानी गढी है। ऐसी मित्रता महज फिल्मों में ही दिखाई पड़ती है, क्योंकि जब यह प्रेम या किसी और वजह से टूटती है तो

गुंडे फिल्‍म का जिया गीत

गुंडे फिल्‍म के इस गाने में प्रियंका चोपड़ा के परिधानों के बदलते लाल,सफेद,हरे और बैंगनी रंगों का कोई खास मतलब भी है क्‍या ? क्‍या फिल्‍म में और भी रंग दिखेंगे ?

फिल्‍म समीक्षा : गाेलियों की रासलीला राम-लीला

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भावावेग की प्रेमलीला  -अजय ब्रह्मात्‍मज ऐन रिलीज के समय फिल्म का नाम इतना लंबा हो गया। धन्य हैं 'राम-लीला' टाइटल पर आपत्ति करने वाले ... बहरहाल, ' ...राम-लीला' विलियम शेक्सपियर के मशहूर नाटक 'रोमियो-जूलियट' पर आधारित फिल्म है, इसीलिए इस प्रेम कहानी के शीर्षक में पहले पुरुष का नाम आया है। एशियाई प्रेम कहानियों में स्त्रियों का नाम पहले आता है, 'हीर-रांझा', 'लैला-मजनू', 'शीरीं-फरिहाद', 'सोहिनी-महिवाल' आदि। संजय लीला भंसाली ने 'रोमियो-जूलियट' की कहानी को गुजरात के रंजार में स्थापित किया है, जहां सेनाड़ा और रजाड़ी परिवारों के बीच पुश्तैनी दुश्मनी चल रही है। इन परिवारों के राम और लीला के बीच प्रेम हो जाता है। 'रोमियो-जूलियट' नाटक और उस पर आधारित फिल्मों की तरह ' ...राम-लीला' भी ट्रैजिक रोमांस है। संजय लीला भंसाली सघन आवेग के निर्देशक हैं। उनकी फिल्मों में यह सघनता हर क्षेत्र में दिखाई देती है। खास कर किरदारों को गढ़ने और उनके भावात्मक संवेग की रचना में वे उत्तम हैं। उनके सामान्य दृश्य भी गहरे

मुझे भी बेलने पड़े हैं पापड़-रणवीर सिंह

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-अजय ब्रह्मात्मज रणवीर सिंह का पहली ही फिल्म से पहचान और स्टारडम मिल गई। ऐसा लगता है कि उनके लिए शुरूआत आसान रही। पहली बार रणवीर सिंह शेयर कर रहे हैं अपने हिस्से का संघर्ष ़  ़ ़     फिल्मों में स्ट्रगल करने के दौरान एक बर्थडे पर मेरी बहन केक के ऊपर कैंडिल नहीं लगाया था। उन्होंने कैंडिल की जगह फिल्मों के छोटे-छोटे कार्ड लगाए थे और उनमें स्टारों की जगह मेरी तस्वीर लगा दी थी। मैंने उन्हें फेंका नहीं। उन्हें अपने विजन बोर्ड पर लगा दिया। आते-जाते उसे ही देखता रहता था। आप यकीन करें छह-आठ महीने के अंदर मुझे ऑडिशन के लिए कॉल मिल गए। ऑडिशन सफल रहा। ‘बैंड बाजा बारात’ मिल गई। फिल्म हिट रही। और आज देखो, कमाल ही हो गया।     मुझ में योग्यता है। चाहत है। हिंदी फिल्मों की मेनस्ट्रीम में आने की चाहत थी। मुझे पहले भी फिल्मों के ऑफर मिल रहे थे, लेकिन मैंने ‘बैंड बाजा बारात’ का दांव खेला। मैंने तीन-चार फिल्में छोड़ दी थीं। उनके निर्माताओं ने मुझे पागल करार कर दिया था। अपना थोबड़ा तो देखो। हम 15-20 करोड़ निवेश करने को तैयार हैं और तुम रिजेक्ट कर रहे हो। तुम्हारा कोई बाप-दादा यहां नहीं है। न जाने क्या

फिल्‍म समीक्षा : लुटेरा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  आप किसी भी पहलू से 'लुटेरा' का उल्लेख करें। आप पाएंगे कि चाहे-अनचाहे उसकी मासूमियत और कोमलता ने आप को भिगो दिया है। इस प्रेम कहानी का धोखा खलता जरूर है,लेकिन वह छलता नहीं है। विक्रमादित्य मोटवाणी ने अमेरिकी लेखक ओ हेनरी की कहानी 'द लास्ट लीफ' का सहारा अपनी कहानी कहने के लिए लिया है। यह न मानें और समझें कि 'लुटेरा' उस कहानी पर चित्रित फिल्म है। विक्रम छठे दशक के बंगाल की पृष्ठभूमि में एक रोचक और उदास प्रेम कहानी चुनते हैं। इस कहानी में अवसाद भी है,लेकिन वह 'देवदास' की तरह दुखी नहीं करता। वह किरदारों का विरेचन करता है और आखिरकार दर्शक के सौंदर्य बोध को उष्मा देता है। अपनी दूसरी फिल्म में ही विक्रम सरल और सांद्र निर्देशक होने का संकेत देते हैं। ठोस उम्मीद जगते हैं। फिल्म बंगाल के माणिकपुर में दुर्गा पूजा के समय के एक रामलीला के आरंभ होती है। बंगाली परिवेश,रोशनी और संवादों से हम सीधे बंगाल पहुंच जाते हैं। विक्रम बहुत खूबसूरती से बगैर झटका दिए माणिकपुर पहुंचा देते हैं। फिल्म की नायिका पाखी रायचौधरी (सोनाक्षी सिन्हा)को ज