फिल्म समीक्षा : लव शव ते चिकेन खुराना
  -अजय ब्रह्मात्मज    अनुराग कश्यप के प्रोडक्शन से धड़ाधड़ फिल्में आ रही हैं। इन्हें  कॉरपोरेट हाउस का सहयोग मिल रहा है। अनुराग के संरक्षण में युवा फिल्मकार  नई सोच की फिल्में लेकर आ रहे हैं? कथ्य, शिल्प, भाषा और प्रस्तुति में  नयेपन के साथ थोड़ा अनगढ़पन भी है। यह किसी किस्म की कमी या बुराई नहीं है।  समीर शर्मा की लव शव ते चिकेन खुराना में पंजाब का परिवेश है,लेकिन यह  हिंदी फिल्मों के चोपड़ा और जौहर के पंजाब से अलग है। इसमें वहां की जिंदगी,  मुश्किलें, खुशियां, साजिशें और पारिवारिक प्रेम है। मध्यवर्गीय मूल्यों  से रचा संसार और परिवार है। ओमी खुराना के सपने अपने पिंड में नहीं समा पा  रहे हैं। एक रात वह चुपके से सपनों के पीछे निकल जाता है। लंदन में कर्ज और  चालाकी से अपनी जिंदगी चला रहा है। धीरे-धीरे पाउंड का कर्ज इतना बढ़ जाता  है कि उसे अपने सपने गिरवी रखने पड़ते हैं। वह पिंड लौटता है।    उसे उम्मीद है कि कुछ न कुछ इंतजाम हो जाएगा। पिंड में उसके दादा जी का  ढाबा चिकेन खुराना के लिए मशहूर है। लौटने पर उसे पता चलता है कि दादा जी  की याददाश्त खो गई है और ढाबा बंद हो चुका है। वह लौटने के...