हालात से क्यों हारे मेरा हौसला : अरविंद स्वामी
-स्मिता श्रीवास्तव अभिनेता अरविंद स्वामी बचपन में डॉक्टर बनने की ख्वाहिश रखते थे। हीरो बनने की उन्होंने कल्पना नहीं की थी। किस्मत ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि मणिरत्नम उन्हें चकाचौंध की दुनिया में ले आए। ‘बांबे’ और ‘रोजा’ में उनका संवेदनशील अभिनय दर्शकों को भाव-विभोर कर गया। वर्ष 2000 में रिलीज हिंदी फिल्म ‘ राजा को रानी से प्यार हो गया ’ में आखिरी बार सिल्वर स्क्रीन पर नजर आए। उसे बाद एक दशक से ज्यादा समय तक वह सिनेमा से दूर रहे। इस दौरान एक दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी को गंभीर चोट पहुंची। उनके पैर को आंशिक रूप से लकवा मार गया। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। मजबूत जिजिविषा की बदौलत करीब तीन साल पहले मणिरत्नम की तमिल फिल्म कडिल से उन्होंने वापसी की। ‘ डियर डैड ’ में वह पिता की भूमिका में दिखेंगे। बतौर निर्देशन तनुज भ्रामर की यह डेब्यू फिल्म है। स्क्रिप्ट देख्कर करता हूं फिल्में अरविंद बताते हैं ,‘ ‘ मैं कमर्शियल या बॉक्स आफिस ध्यान में रखकर फिल्में नहीं करता। किसी ने मुझसे पूछा कि डैड बनकर वापसी क्यों ? मेरा जवाब था ‘बांबे’ में 22 साल की उम्र में जुड़वा बच्चों