राजनीति को फिल्म से अलग नहीं कर सकता: प्रकाश झा
![Image](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEieVrYSEMtZMOOAYL8-iyDv1qDbi0lR19kcKV-8IJF_SpbjpExbX90Cu5VwGk7uKTRIc2-vN4P117R4HUyPYgEqG1ZlMdLDCiPI0EYvBlpQCQexPShtYPD5VNc-I0T3GhL9Jz3-1pl1Cfc/s400/prakash+jha.jpg)
=अजय ब्रह्मात्मज हिप हिप हुर्रे से लेकर राजनीति तक के सफर में निर्देशक प्रकाश झा ने फिल्मों के कई पडाव पार किए हैं। उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाई। सामाजिकता उनकी विशेषता है। मृत्युदंड के समय उन्होंने अलग सिनेमाई भाषा खोजी और गंगाजल एवं अपहरण में उसे मांजकर कारगर और रोचक बना दिया। राजनीति आने ही वाली है। इसमें उन्होंने सचेत होकर रिश्तों के टकराव की कहानी कही है, जिसमें महाभारत के चरित्रों की झलक भी देखी जा सकती है। फिल्मों में हाथ आजमाने आप मुंबई आए थे? शुरुआत कैसे हुई? दिल्ली यूनिवर्सिटी से फिजिक्स ऑनर्स करते समय लगा कि सिविल सर्विसेज की परीक्षा दूं, लेकिन फिर बीच में ही पढाई छोडकर मुंबई आ गया। सिर्फ तीन सौ रुपये थे मेरे पास। जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स का नाम सुना था, वहां पढना चाहता था। यहां आकर कुछ-कुछ काम करना पडा और दिशा बदलती गई। मुंबई आते समय ट्रेन में राजाराम नामक व्यक्ति मिले, जो शुरू में मेरे लिए सहारा बने। वे कांट्रेक्टर थे। उनके पास दहिसर में सोने की जगह मिली। फिर जे. जे. स्कूल नहीं गए? वहां गया तो मालूम हुआ कि सेमेस्टर आरंभ होने में अभी समय है। मेरे पास कैमरा था। फोट