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चौंकना और चौंकाना चाहती हूं-माही गिल

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-अजय ब्रह्मात्मज - किस मानसिक अवस्था में हैं अभी आप? 0 अभी मैं केवल घर के बारे में सोच रही हूं। पिछले कुछ समय से कोई शूटिंग नहीं की है। जहां रहती हूं, उसे सुंदर बनाने पर ध्यान दे रही हूं। यों भी फिल्मों की रिलीज के बाद मैं अक्सर गायब हो जाती हूं। जल्दी ही कहीं लंबी यात्रा पर निकलूंगी। - अभी तक के फिल्मी सफर को किसी रूप में देखती हैं? 0 मैं सही समय पर फिल्मों में आई। इन दिनों दर्शक नए प्रयोग पसंद कर रहे हैं। मैंने कुछ फिल्में कर ली हैं, लेकिन अभी बहुत करना बाकी है। अलग-अलग जोनर की फिल्में करूंगी। मैंने अभी तक ढंग से रोमांस नहीं किया है। हॉरर और एक्शन बाकी है। कॉमेडी फिल्म भी करनी है। - इस सफर में क्या सीखा और आत्मसात किया? 0 कई एक्टर और डायरेक्टर मिले। उनसे सीखा और समझा। अनुराग कश्यप में बच्चों जैसा उत्साह है। वे प्रेरित करते हैं। तिग्मांशु धूलिया खुद बहुत अच्छे अभिनेता हैं। वे आपकी तैयारी को परिमार्जित कर देते हैं। उनके सुझाव इंटरेस्टिंग होते हैं। रामगोपाल वर्मा के प्रयोगों में मजा आया। सतीश कौशिक के साथ पुराने समय और तरीके को समझा। - ‘देव डी’  में आप के आगमन ने चौंका दिया था। बाद

फिल्‍म समीक्षा : जंजीर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  हालांकि अपूर्वा लाखिया की 'जंजीर' अमिताभ बच्चन की 'जंजीर' की आधिकारिक रीमेक है, लेकिन इसे देखते समय पुरानी फिल्म का स्मरण न करें तो बेहतर है। अमिताभ बच्चन की प्रकाश मेहरा निर्देशित 'जंजीर' का ऐतिहासिक महत्व है। उस फिल्म से अमिताभ बच्चन की पहचान बनी थी। उन्हें एंग्री यंग मैन की इमेज मिली थी। इस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अपूर्वा लाखिया की 'जंजीर' एक साधारण फिल्म लगती है। राम चरण के लिए हिंदी फिल्मों की यह शुरुआत है। कहानी और किरदारों के बीज वहीं से लिए गए हैं, लेकिन उन्हें स्टूडियो में विशेष निगरानी के साथ सींचा गया है, इसलिए पुरानी फिल्म की नैसर्गिकता चली गई है। वैसे भी अब शहरी जीवन में प्राकृतिक फूलों और पौधों की जगह कृत्रिम फूलों और पौधों ने ले ली है। उसी प्रकार की कृत्रिमता का एहसास 'जंजीर' देख कर हो सकता है। हां, अगर पुराने अनुभव और ज्ञान से वंचित या परिचित दर्शकों के लिए 'जंजीर' आज की फिल्म है। मल्टीप्लेक्स के दर्शकों को मजा भी आएगा। फिल्म में आज के कंसर्न के साथ आधुनिक किरदार हैं। सब कुछ बदल चुका

तस्‍वीरों में साहब बीवी और गैंगस्‍टर रिटर्न्‍स

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महिला दिवस: औरत से डर लगता है

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-अजय ब्रह्मात्‍मज उनके ठुमकों पर मरता है, पर ठोस अभिनय से डरती है फिल्‍म इंडस्‍ट्री। आखिर क्या वजह है कि उम्दा अभिनेत्रियों को नहीं मिलता उनके मुताबिक नाम, काम और दाम... विद्या बालन की 'द डर्टी पिक्चर' की कामयाबी का यह असर हुआ है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में महिला प्रधान [वीमेन सेंट्रिक] फिल्मों की संभावना तलाशी जा रही है। निर्माताओं को लगने लगा है कि अगर हीरोइनों को सेंट्रल रोल देकर फिल्में बनाई जाएं तो उन्हें देखने दर्शक आ सकते हैं। सभी को विद्या बालन की 'कहानी' का इंतजार है। इस फिल्म के बाक्स आफिस कलेक्शन पर बहुत कुछ निर्भर करता है। स्वयं विद्या बालन ने राजकुमार गुप्ता की 'घनचक्कर' साइन कर ली है, जिसमें वह एक महत्वाकांक्षी गृहणी की भूमिका निभा रही हैं। पिछले दिनों विद्या बालन ने स्पष्ट शब्दों में कहा था, 'मैं हमेशा इस बात पर जोर देती हूं कि किसी फिल्म की कामयाबी टीमवर्क से होती है। चूंकि मैं 'द डर्टी पिक्चर' की नायिका थी, इसलिए सारा क्रेडिट मुझे मिल रहा है। मैं फिर से कहना चाहती हूं कि मिलन लुथरिया और रजत अरोड़ा के सहयोग और सोच के बिना मुझे इतने प

फ़िल्म समीक्षा:देव डी

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आत्मलिप्त युवक की पतनगाथा -अजय ब्रह्मात्मज घिसे-पिटे फार्मूले और रंग-ढंग में एक जैसी लगने वाली हिंदी फिल्मों से उकता चुके दर्शकों को देव डी राहत दे सकती है। हिंदी फिल्मों में शिल्प और सजावट में आ चुके बदलाव का सबूत है देव डी। यह फिल्म आनंद और रसास्वादन की पारंपरिक प्रक्रिया को झकझोरती है। कुछ छवियां, दृश्य, बंध और चरित्रों की प्रतिक्रियाएं चौंका भी सकती हैं। अनुराग कश्यप ने बहाना शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के देवदास का लिया है, लेकिन उनकी फिल्म के किरदार आज के हैं। हम ऐसे किरदारों से अपरिचित नहीं हैं, लेकिन दिखावटी समाज में सतह से एक परत नीचे जी रहे इन किरदारों के बारे में हम बातें नहीं करते। चूंकि ये आदर्श नहीं हो सकते, इसलिए हम इनकी चर्चा नहीं करते। अनुराग कश्यप की फिल्म में देव, पारो, चंदा और चुन्नी के रूप में वे हमें दिखते हैं। देव डी का ढांचा देवदास का ही है। बचपन की दोस्ती बड़े होने पर प्रेम में बदलती है। एक गलतफहमी से देव और पारो के रास्ते अलग होते हैं। अहंकारी और आत्मकेंद्रित देव बर्दाश्त नहीं कर पाता कि पारो उसे यों अपने जीवन से धकेल देगी। देव शराब, नशा, ड्रग्स, सेक्स वर्कर और दला