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दरअसल:फिसलन भी है कामयाबी

६०० वीं पोस्ट...आप सभी को धन्यवाद। -अजय ब्रह्मात्मज स्कूल के दिनों में कहीं पढ़ा था, मैं नियम पर चलता हूं, इसलिए रोज नियम बदलता हूं। जिस दिन जो करने का मन हो, वैसा ही नियम बना लो। कहने के लिए हो गया कि नियमनिष्ठ हैं और मन मर्जी भी पूरी हो गई। अपने फिल्म सितारों के लिए कुछ वैसी ही बात कही जा सकती है। कभी कोई फिल्म फ्लॉप होती है, तो सितारे कहते हैं, फिल्म नहीं चल पाई, लेकिन मेरे काम की सराहना हुई। फिर फिल्म बुरी होने के बावजूद हिट हो जाए, तो सितारों के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है और उनका बयान होता है, समीक्षक कुछ भी लिखें, दर्शकों ने फिल्म पसंद की है न? हिट और फ्लॉप दोनों ही स्थितियों में खुद को संतुष्ट करते हुए दर्शकों को मुगालते में रखने की यह कोशिश स्टारडम का हिस्सा हो गया है। सितारे अपने इस अंतर्विरोध को समझते हैं, लेकिन यह स्वीकार नहीं कर पाते कि उनसे भूल हुई है। अक्षय कुमार आज कल ऐसे ही अंतद्र्वद्व और संशय से गुजर रहे हैं। चांदनी चौक टू चाइना और 8-10 तस्वीर के फ्लॉप होने के बाद उनकी कमबख्त इश्क हिट हुई है। अगर तीनों फिल्मों की तुलना करें, तो किसी को भी श्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी में

दरअसल:न्यूयॉर्क की कामयाबी के बावजूद

-अजय ब्रह्मात्मज 26 जून को रिलीज हुई न्यूयॉर्क को दर्शक मिले। जॉन अब्राहम, कैटरीना कैफ और नील नितिन मुकेश के साथ यशराज फिल्म्स के बैनर का आकर्षण उन्हें सिनेमाघरों में खींच कर ले गया। मल्टीप्लेक्स मालिक और निर्माता-वितरकों के मतभेद से पैदा हुआ मनोरंजन क्षेत्र का अकाल दर्शकों को फिल्मों के लिए तरसा रहा था। बीच में जो फिल्में रिलीज हुई, वे राहत सामग्री के रूप में बंटे घटिया अनाज के समान थीं। उनसे दर्शक जिंदा तो रहे, लेकिन भूख नहीं मिटी। ऐसे दौर में स्वाद की बात कोई सोच भी नहीं सकता था। न्यूयॉर्क ने मनोरंजन के अकाल पीडि़त दर्शकों को सही राहत दी। भूख मिटी और थोड़ा स्वाद मिला। यही वजह है कि इसे देखने दर्शक टूट पड़े हैं। मुंबई में शनिवार-रविवार को करंट बुकिंग में टिकट मिलना मुश्किल हो गया था। साथ ही कुछ थिएटरों में टिकट दोगुने दाम में ब्लैक हो रहे थे। ट्रेड सर्किल में न्यूयॉर्क की सफलता से उत्साह का संचार नहीं हुआ है। ट्रेड विशेषज्ञों के मुताबिक यशराज फिल्म्स को न्यूयॉर्क से अवश्य फायदा होगा, क्योंकि यह अपेक्षाकृत कम बजट की फिल्म है। अगले हफ्तों में आने वाली फिल्मों की लागत ज्यादा है और उन्हे

खप जाती है एक पीढ़ी तब मिलती है कामयाबी

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री समेत हर इंडस्ट्री और क्षेत्र में ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे। हजारों- लाखों उदाहरण हैं। एक पीढ़ी के खपने और होम होने के बाद ही अगली पीढ़ी कामयाब हो पाई। आजकल मनोवैज्ञानिक और अन्य सभी कहते हैं कि बच्चों पर अपनी इच्छाओं और सपनों का बोझ नहीं लादना चाहिए। लेकिन हम अपने आसपास ऐसे अनेक व्यक्तियों को देख सकते हैं, जिन्होंने अपने माता या पिता के सपनों को साकार किया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई उदाहरण हैं। हाल ही में 'हाल-ए-दिल' के म्यूजिक रिलीज के समय फिल्म के निर्माता कुमार मंगत मंच पर आए। उन्होंने कहा कि मैं कुछ भी बोलने से घबराता हूं। लेकिन आज मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। आज मैं अवश्य बोलूंगा। उन्होंने समय और तारीख का उल्लेख करते हुए बताया कि 1973 में मैं आंखों से सपने लिए मुंबई आया था। इतने सालों के बाद मेरा वह सपना पूरा हो रहा है। मेरी बेटी अमिता पाठक फिल्मों में हीरोइन बन कर आ रही है। अमिता पाठक के पिता कुमार मंगत हैं। लंबे समय तक वे अजय देवगन के मैनेजर रहे। इन दिनों वे बिग स्क्रीन एंटरटेनमेंट के मालिक हैं और कई फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं।