जारी है भेदभाव
-अजय ब्रह्मात्मज न जाने कहां से चले आते हैं? हिंदी फिल्मों में कुछ करने और हुनर से कुछ हासिल करने के लिए आए हजारों महात्वाकांक्षियों को रोजाना यह सवालिया वाक्य सुनाई पड़ता है। इसके साथ ही उनकी इच्छा-आकांक्षा को कुचलने की मुहिम चालू हो जाती है। समाज के सभी क्षेत्रों में पहली पीढ़ी पांव जमाने और जगह पाने में संषर्ष,अपमान,तिरस्कार और अवहेलना से गुजरती है। विडंबना है कि दूसरी पीढ़ी के सदस्यों का रवैया नयों के प्रति बदल जाता है। उन्हें लगता है कि उनकी अर्जित और अधिकृत भूमि में कोई और क्यों आए? हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यह भेदभाव अघोषित रूप से जारी रहता है। सभी नए किसी न किसी रूप में इस भेदभाव के शिकार होते हैं। पिछले दिनों एक लोकप्रिय फिल्म पत्रिका में ऋषि कपूर ने अपेक्षाकृत युवा अभिनेता को लताड़ते हुए उनकी औकात पर प्रश्नचिह्न लगाए। उनके बाप-दादा का नाम लेते हुए अपशब्दों का इस्तेमाल किया। फिल्म पत्रकारिता में सारी बातों और घटनाओं को रसदार और मनोरंजक समझने वाले पत्रकारों ने इसे पुराने और नए स्टार की व्यक्तिगत लड़ाई के रूप में पेश किया। सच्चाई यह है कि ऋषि कपूर में यह अहंन्यता हिंदी फ