नजरअंदाज होने की आदत पड़ गई थी- विनीत सिंह
![Image](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgeC4_yjVi2p3MFHT8dqS4Pjq_kCb08Och3qvIwG21QGy-Es32-dfQFny8E4Q26FyY0sVroH2QfThDfGog5cQ_fsI4EmtTvVtqyxuHkK95cQpHykZJDtq-n_5IiAAtml0UbRbwUaqpunY/s320/vineet-close.jpg)
गैंग्स ऑफ वासेपुर के दानिश खान उर्फ विनीत सिंह बैग में कुछ कपडे और जेहन में सपने लेकर मुंबई आ गया. न रहने का कोई खास जुगाड़ था न किसी को जानता था. शुरूआत ऐसे ही होती है. पहले सपने होते हैं जिसे हम हर रोज़ देखते है,फिर वही सपना हमसे कुछ करवाता है, इसलिए सपना देखना ज़रूरी है. लेकिन सपना देखते वक़्त हम सिर्फ वही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं और जो हमें ख़ुशी देता है इसलिए सब कुछ बड़ा आसान लगता है. पर मुंबई जैसे शहर में जब हकीकत से से दो-दो हाथ होता है तब काम आती है आपकी तयारी. क्यूंकि यहाँ किसी डायरेक्टर या प्रोड्यूसर से मिलने में ही महीनो लग जाते हैं काम मिलना तो बहुत बाद की बात है. बताने या कहने में दो-पांच साल एक वाक्य में निकल जाता है लेकिन ज़िन्दगी में ऐसा नहीं होता भाईi, वहां लम्हा-लम्हा करके जीना पड़ता है और मुझे बारह साल लग गए गैंग्स ऑफ़ वासेपुर तक पहुँचते-पहुँचते. मेरी शुरुआत हुई एक टैलेंट हंट से जिसका नाम ही सुपरस्टार था. मै उसके फायनल राउंड का विजेता हुआ तो लगा कि गुरु काम हो गया. अब मेरी गाडी तो निकल पड़ी लेकिन बाहर से आये किसी बन्दे या बंदी के साथ