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Showing posts from July, 2020

सिनेमालोक : फिल्म निर्माण में महिलाओं की बढती भागीदारी

  सिनेमालोक फिल्म निर्माण में महिलाओं की बढती भागीदारी -अजय ब्रह्मात्मज सालों पहले अमिताभ बच्चन से एक बार सेट के बदलते परिदृश्य पर बात हो रही थी. मैंने उनसे पूछा था कि उनके अनुभव में सेट और शूटिंग में किस तरह के बदलाव दिख रहे हैं? अमिताभ बच्चन ने अपनी ख़ास दार्शनिक मुद्रा में सबसे पहले युवा निर्देशकों और तकनीकी टीम की तारीफ की. उनके अनुशासन, कार्यशैली और प्रोफेशनलिज्म की प्रशंसा की. वे सेट पर ना तो अपना समय बर्बाद करते हैं और ना कलाकारों को बेवजह बिठाए रखते हैं. साथ ही गौर करने की बात है कि सेट पर लड़कियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. फिल्म निर्माण के हर विभाग में उनकी सहभागिता और सक्रियता देखकर मैं अचंभित रहता हूं. हमारे समय में केवल पुरुष पुरुष नजर आते थे. 10 - 12 साल पहले से सेट पर महिला तकनीशियनों की आमद बढ़ने लगी थी. छिटपुट संख्या में नजर आती लड़कियों की संख्या में इजाफा होने लगा था. लंबे समय तक निर्माण के कुछ काम केवल पुरुषों के लिए ही माने और समझे जाते थे. उनमें भी महिलाओं की हिस्सेदारी और जिम्मेदारी बढ़ी   है. थोड़ा पीछे चले तो हिंदी फिल्मों के लेखन,निर्देशन और तकनीक

सिनेमालोक : भटकती बहस नेपोटिज्म की

  सिनेमालोक भटकती बहस नेपोटिज्म की सही परिप्रेक्ष्य और संदर्भ में विमर्श आगे नहीं बढ़ रहा है. नेपोटिज्म और आउटसाइडर को लेकर चल रहा वर्तमान विमर्श अनेक दफाअतार्किक, निराधार और धारणागत टिप्पणियों से उलझता जा रहा है. कोई दिशा नहीं दिख रही है. निदान तो दूर की बात है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जारी इस प्रवृत्ति से इनकार नहीं किया जा सकता. समाज के हर क्षेत्र की तरह यहां भी पहले से स्थापित हस्तियां अपना आधिपत्य बनाए रखने के लिए हर तिकड़म अपनातीहैं. भाई-भतीजावाद आम बात है, लेकिन इसी सामाजिक और पेशेगत व्यवस्था को भेद कर कुछ प्रतिभाएं मेहनत, लगन और बेहतर काम से अपनी जगह बना लेती हैं. शुरू शुरू में आउटसाइडर रही प्रतिभाएं 20 - 25 सालों तक टिकने के बाद इनसाइडर बन जाती हैं. अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और अक्षय कुमार ताजा उदाहरण है. स्वभाविक रूप से अभिषेक बच्चन, आर्यन और आरो का फिल्मी झुकाव होता है. परिवार के प्रभाव में उन्हें आसानी से फिल्में मिलीं और आगे भी मिलेंगी,लेकिन अपनी प्रतिभा और अभ्यास से ही वे दर्शकों के दिलों में जगह बना पाते हैं. यह सिलसिला दशकों से चला आ रहा है. आगे भी चलता रहेगा. इस

सिनेमालोक फिर से दबा ‘पॉज’ बटन

सिनेमालोक फिर से दबा ‘पॉज’ बटन -अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते इसी स्तंभ में ‘शूटिंग आरंभ होने के आसार’ का जिक्र हुआ था. इन दिनों जिस प्रकार से फिल्म कलाकारों के घर से निकलने, स्टूडियो जाने और पार्टियों की तस्वीरें आ रही थीं,उनसे लग रहा था कि सब कुछ सामान्य हो रहा है. इस बीच अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन के कोविड संक्रमित होने से फिल्म इंडस्ट्री फिर से ठिठक गई है. ‘पॉज’ बटन फिर से दब गया है. हम सभी जानते हैं कि अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन दोनों ही शूटिंग और डबिंग के काम में लगे हुए थे. कोविड- 19 के संक्रमण के स्रोत का पता लगाना मुश्किल काम है, लेकिन ऐसा लगता है कि शूटिंग में डबिंग की गतिविधियों में शामिल होने से इसकी संभावना बनी होगी. बच्चन पिता-पुत्र अभी डॉक्टरों की निगरानी में अस्पताल में हैं. ऐश्वर्या राय बच्चन और आराध्या घर पर ही क्वारंटाइन का पालन कर रहे हैं. बच्चन परिवार के अलावा खेर परिवार में भी कोविड संक्रमण हो चूका है. आने वाले दिनों में गहन जांच के बाद कुछ और मामले निकल सकते हैं. अभी संख्या और व्यक्ति अधिक महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण सावधानी है. किसी भी प्रकार की ला

परी चेहरा नसीम बानो

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जन्मदिन विशेष नसीम बानो(४ जुलाई १९१६- १८ जून २००२) परी चेहरा नसीम बानो -अजय ब्रह्मात्मज   104 वर्ष पहले पुरानी दिल्ली में गायिका शमशाद बेगम के घर रोशन आरा बेगम का जन्म हुआ था. यह शमशाद बेगम फिल्मों की मशहूर गायिका शमशाद बेगम नहीं थीं. शमशाद बेगम दिल्ली में नाच-गाना करती थीं. वह छमियाबाई के नाम से मशहूर थीं. उनकी बेटी रोशन आरा बेगम फिल्मों में आने के बाद नसीम बानो नाम से विख्यात हुई. नसीम  बानो  के वालिद हसनपुर के नवाब थे. उनका नाम वाहिद अली खान था. मां चाहती थीं कि उनकी बेटी बड़ी होकर मेडिकल की पढ़ाई करे और डॉक्टर बने, लेकिन बेटी को तो फिल्मों का चस्का लग गया था. सुलोचना(रुबी मेयर्स) की फिल्में देखकर वह फिल्मों की दीवानी हो चुकी थी. स्कूल की छुट्टी के दिनों एक बार वह मां के साथ मुंबई आई थी. रोज मां से मिन्नत करती कि मुझे शूटिंग दिखला दो. एक दिन मां का दिल बेटी की जीत के आगे पसीज गया और वह उसे शूटिंग पर ले गईं. ‘सिल्वर किंग’ की शूटिंग चल रही थी. उसमें मोतीलाल और सबिता देवी काम कर रहे थे. किशोरी रोशन आरा एकटक उनकी अदाओं को देखती रही. इसे संयोग कहें या नसीम बानो की खुशकिस्मत...