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फिल्‍म रिव्‍यू : डेढ़ इश्किया

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  नवाब तो नहीं रहे। रह गई हैं उनकी बेगम और बांदी। दोनों हमजान और हमजिंस हैं। खंडहर हो रही हवेली में बच गई बेगम और बांदी के लिए शराब और लौंडेबाजी में बर्बाद हुए नवाब कर्ज और उधार छोड़ गए हैं। बेगम और बांदी को शान-ओ-शौकत के साथ रसूख भी बचाए रखना है। कोशिश यह भी करनी है कि उनकी परस्पर वफादारी और निर्भरता को भी आंच न आए। वे एक युक्ति रचती हैं। दिलफेंक खालू बेगम पारा की युक्ति के झांसे में आ जाते हैं। उन्हें इश्क की गलतफहमी हो गई है। उधर बेगम को लगता है कि शायर बने खालू के पास अच्छी-खासी जायदाद भी होगी। फैसले के पहले भेद खुल जाता है तो उनकी मोहब्बत की अकीदत भी बदल जाती है। और फिर साजिश, अपहरण, धोखेबाजी,भागदौड़ और चुहलबाजी चलती है। अभिषेक चौबे की 'डेढ़ इश्किया' उनकी पिछली फिल्म 'इश्किया' के थ्रिल और श्रिल का डेढ़ा और थोड़ा टेढ़ा विस्तार है। कैसे? यह बताने में फिल्म का जायका बिगड़ जाएगा। अभिषेक चौबे ने अपने उस्ताद विशाल भारद्वाज के साथ मिल कर मुजफ्फर अली की 'उमराव जान' के जमाने की दुनिया रची है, लेकिन उसमें अमेरिकी बर्गर, नूडल और आ

औरत हूं तो सवाल पूछते हैं? -माधुरी दीक्षित

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  शादी के बाद हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियां धीरे-धीरे अनेक प्रकार के दबावों की वजह से रुपहले पर्दे से गायब होने लगती हैं।निर्माता-निर्देशक और दर्शकों की रुचि उनमें कम होने लगती है। उन्हें हिंदी फिल्मों के अभिनेताओं की तरह लंबी उम्र नहीं मिलती। यही वजह है कि कुंवारी रहने पर उम्र बढऩे के साथ उन्हें तवज्जो नहीं दी जाती। अभिनेत्रियां इसे सहज तौर पर स्वीकार करती हैं। अभिनय क्षेत्र में सक्रिय रहने की लालसा रहन परे उन्हें सहयोगी,चरित्र और मां-बहन की भूमिकाएं ही मिल पाती हैं। कुछ ही अभिनेत्रियां अपवाद बन पाती हैं। उन्हें केंद्रीय किरदार मिलते हैं। उन्हें दर्शक भी पसंद करते हैं। उनकी फिल्मों का इंतजार करते हैं। मााधुरी दीक्षित ऐसी अभिनेत्रियों में से एक हैं। अभी वह निर्माता अनुभव सिन्हा की सौमिक सेन निर्देशित गुलाब गैंग में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं।वह अभिषेक चौबे की डेढ़ इश्किया भी कर रही हैं,जिसके निर्माता विशाल भारद्वाज हैं। अभी दो हफ्ते के अंदर 15 मई को अपने जीवन के 46 वसंत पूरे करेंगी। उनकी सक्रियता और समर्पण से अचंभा होता है। सहसा मुंह से निकलता है इस उम्र में भी?