रोज़ाना : निर्देशक बनने की ललक
![Image](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEga4H8DrIaZ068669Rqn1i3CT10KJZRNDRpKGsjCxoFrTFk6hPDlkvcHoI5Ga7kuCVbmp310kOh9YwP12mWQLA9uSP-C4jpz_TfmP3pEVIm0DC8T_5qhEjNyrzX04O3WROPI7F7M6EQVW8/s400/rozana+7+oct+17.png)
रोज़ाना निर्देशक बनने की ललक -अजय ब्रह्मात्मज फिल्मों में निर्देशक को ‘ कैप्टन ऑफ द शिप ’ कहते हैं। निर्देशक की सोच को ही फिल्म निर्माण से जुड़े सभी विभागों के प्रधान अपनाते हैं। वे उसमें अपनी दक्षता और योग्यता के अनुसार जोड़ते हैं। उनकी सामूहिक मेहनत से ही निर्देशक की सोच साकार होकर फिल्म के रूप में सामने आती है। निर्देशक की सोच नियामक भूमिका निभाती है। फिल्म निर्माण से जुड़े सभी कलाकार और तकनीशियन एक न एक दिन निर्देशक बनने का सपना रखते हैं। उन सभी में यह ललक बनी रहती है। इन दिनों यह ललक कुछ ज्यादा ही दिख रही है। पहले ज्यादातर व्यक्तियों की दिशा और सीमा तय रहती थी। वे सभी अपनी फील्ड में महारथ हासिल कर उसके उस्ताद बने रहते थे। हां,तब भी कुछ क्रिएटिव निर्देशक बनते थे। गौर करे तो पाएंगे कि उन सभी को कुछ खास कहना होता था। कोई ऐसी फिल्म बनानी होती थी,जो चलन में ना हो। बाकी सभी अपनी फील्ड में ध्यान देते थे। पसंदीदा निर्देशक के साथ आजीवन काम करते रहते थे। महबूब खा,बिमल राय,राज कपूर और बीआर चोपड़ा जैसे दिग्गजों की टीम अंत-अंत तक साथ में का म करती रही। अभी किसी