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Showing posts from January, 2018

अनोखे गीत : कभी न बिगड़े किसी की मोटर रस्ते में

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अजीत और सुरैया की इस फिल्म 'मोती महल' का निर्देशन रवीन्द्र दवे ने किया था. १९५२ में रिलीज़ हुई इस फिल्म में सुरैया के गाए कई गीत थे. एक बार सुरैय्या शूटिंग पर देर से आई और बताया की रास्ते में कार खराब हो गई थी और यूनिट के लोगों को पूरा किस्सा सुनाया जो की गीतकार प्रेम धवन ने भी सुना. कहते हैं उसी पर ये गाना उन्होने लिखा जिसे बाद में मोती महल फिल्म मे शामिल किया गया. आज विविध भारती पर सुरैया की पुण्य तिथि ( 31जनवरी 2004)  के अवसर पर रेडियो सखी ममता सिंह ने सुरैया का गाया यह गाना पेश किया....  कभी न बिगड़े किसी की मोटर रस्ते में कभी न बिगड़े किसी की मोटर रस्ते में खड़े रहो बस बेबस होकर रस्ते में कभी न बिगड़े किसी की मोटर रस्ते में कपडे हों मैले मुँह काला काला हो वो सुरैया या मधुबाला आ हो हो वो सुरैया या मधुबाला बड़े बड़े भी बन जाया करते है जोकर रस्ते में बड़े बड़े भी बन जाया करते है जोकररस्ते में कभी न बिगड़े किसी की मोटर रस्ते में बार बार हैंडल को घुमाया धक्के दे दे सर चकराया धक्के दे दे सर चकराया निकल गया है अपना तो हाय रे कचूमर रस्ते में निकल गया है अपना

सिनेमालोक : फिल्‍मों में गांधीजी

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सिनेमालोक फिल्‍मों में गांधीजी -अजय ब्रह्मात्‍मज आज से ठीक 70 साल पहले 30 जनवरी को महात्‍मा गांधी की नियमित प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे ने उन पर तीन गोलियां चलाई थीं। ‘हे राम’ बोलते हुए गांधी जी ने अंतिम सांसें ली थीं और उनकी इहलीला समाप्‍त हो गई थी। इसके बावजूद सत्‍तर सालों के बाद भी महात्‍मा गांधी व्‍यक्ति और विचार के रूप में आज भी जिंदा हैं। हर भारतीय अपने दैनंदिन जीवन में उनसे मिलता है। उनकी छवि देखता है। जाने-अनजाने उन्‍हें आत्‍मसात करता है। राष्‍ट्रपिता के तौर पर वे चिरस्‍मरणीय हैं। भारतीय नोट पर अंकित उनका चित्र मुहावरे के तौर पर इस्‍तेमाल होता है। लगभग हर शहर में एक महात्‍मा गांधी मार्ग है। शहर के किसी नुक्‍कड़ या चौराहे पर विभिन्‍न आकारों में उनकी प्रतिमाओं के भी दर्शन होते हैं। भारतीय समाज में भगवान बुद्ध,महात्‍मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमाएं सबसे ज्‍यादा प्रचलित हैं। शेष दोनों से विशेष दर्जा हासिल है महात्‍मा गांधी को। उनकी तस्‍वीरें कोर्ट-कचहरी,थाने,दफ्तर,सरकारी कार्यालयों,स्‍कूल-कालेज और अन्‍य सार्वजनिक जगहों पर भी दिखाई पड़ती हैं। शायद ही

फिल्म समीक्षा : पद्मावत

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फिल्‍म समीक्षा : पद्मावत ‘मी टू ’ के दौर में ‘जौहर’ का औचित्‍य -अजय ब्रह्मात्‍मज   ‘प्रस्‍तुत फिल्‍म ‘पद्मावत’ मलिक मोहम्‍मद जायसी द्वारा लिखे गए महाकाव्‍य ‘पद्मावत’ से प्रेरित है,जिसे प्रचलित रूप से काल्‍पनिक माना जाता है।फिल्‍म में दर्शाए गए सभी स्‍थल,किरदार,घटनाएं,जगह,भाषाएं,नृत्‍य,पहनावे इत्‍यादि ऐतिहासिक रूप से सटीक या वास्‍तविक होने का कोई दावा नहीं करते। हम किसी भी सूरत में किसी भी इंसान,समंदाय,समाज उनकी संस्कृति,रीति-रिवाजों उनकी मान्‍यताओं,परंपराओं या उनकी भावनाओं का हानि पहुंचाना या उनकी उपेक्षा करना नहीं चाहते। इस फिल्‍म का उद्देश्‍य सती या ऐसी किसी भी प्रथा को बढ़ावा देना नहीं है।‘ इस लंबे डिस्‍क्‍लेमर के बाद फिल्‍म संजय लीला भंसाली की फिल्‍म ‘पद्मावत’ पर्दे पर आरंभ होती है। फिल्‍म के पर्दे पर आने के पहले और देश में इस फिल्‍म को लकर विवादा और बवाल मचा हुआ है। करणी सेना नामक एक समूह कई महीनों से इस फिल्‍म पर पाबंदी लगाने की मांग कर रही है। उन्‍होंने चेतावनियां दी हैा कि अगर फिल्‍में राजपूती आन,बान और शान के खिलाफ कोई बात हुई तो वे थिएटर में उपद्रव करेंगे।