ताजातरीन बॉयोपिक ‘शाहिद’
-अजय ब्रह्मात्मज हंसल मेहता की ‘शाहिद’ किसी व्यक्ति की जिंदगी पर बने ताजातरीन बॉयोपिक है। फरवरी 2010 में वकील शाहिद आजमी की हत्या उनके दफ्तर में कर दी गई थी। शाहिद ने ताजिंदगी उन असहायों की सहायता की, जो गलत तरीके से शक के आधार पर कैद कर लिए गए थे। उन्होंने ऐसे अनेक आरोपियों को मुक्त करवाया। शाहिद ने इसे अपनी जिंदगी का मुहिम बना लिया था, क्योंकि किशोरावस्था में वे खुद ऐसे झूठे आरोप में टाडा के अंतर्गत गिरफ्तार होकर पांच सालों तक जेल में रहे थे। पांच भाइयों में से एक शाहिद ने आक्रोश में आतंकवादी ट्रेनिंग के लिए कश्मीर की भी यात्रा की थी। वहां के तौर-तरीकों से मोहभंग होने पर मुंबई लौटे तो उन्हें टाडा के तहत सजा हो गई। जेल में ही उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और जेल से निकलने के बाद वकालत की पढ़ाई की। वे कुछ समय तक मशहूर वकील माजिद मेनन के सहायक रहे। फिर अपनी वकालत शुरू की। शाहिद की हत्या के तीन सालों के अंदर हंसल मेहता ने समीर गौतम सिंह की मदद से उनकी जिंदगी की छानबीन की और इस फिल्म की कहानी लिखी। सच्ची घटनाओं और तथ्यों पर आधारित ‘शाहिद’ में कल्पना का सहारा धागे की तरह किया गया