फिल्म समीक्षा : द शौकीन्स
' अजय ब्रह्मात्मज किसी पुरानी फिल्म पर कोई नई फिल्म बनती है तो हम पहले ही नाक-भौं सिकोडऩे लगते हैं। भले ही अपने समय में वह फिल्म साधारण रही हो, लेकिन रीमेक की संभावना बनते ही पुरानी फिल्म क्लासिक हो जाती है। इस लिहाज से देखें तो बासु भट्टाचार्य की 'शौकीन' ठीक-ठाक फिल्म थी। उसे क्लासिक कहना उचित नहीं होगा। बहरहाल, पिछली फिल्म बंगाली लेखक समरेश बसु की कहानी पर आधारित थी। उसकी पटकथा बासु भट्टाचार्य और केका चटर्जी ने मिल कर लिखी थी। उसके संवाद हिंदी के मशहूर साहित्यकार शानी ने लिखी थी। फिल्म में अशोक कुमार, उत्पल दत्त और एके हंगल जैसे उम्दा कलाकार थे। इस बार फिल्म की कहानी,पटकथा और संवाद के क्रेडिट में तिग्मांशु धूलिया का नाम है। इसे निर्देशित किया है अभिषेक शर्मा ने। फिल्म की नायिका लीजा हेडन को अलग कर दें तो यह एनएसडी से निकली प्रतिभाओं की फिल्म है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एनएसडी की प्रतिभाओं के योगदान का आकलन अभी तक नहीं हुआ है। गौर करें तो इन प्रतिभाओं ने एक्टिंग की प्रचलित शैली को प्रभावित किया है। लेखन और निर्देशन में भी नई धाराएं खोल