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सिनेमालोक ; पुरस्कृत फिल्मों का हो प्रदर्शन

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सिनेमालोक पुरस्कृत फिल्मों का हो प्रदर्शन - अजय ब्रह्मात्मज 65 वे नेशनल  फिल्म अवार्ड की घोषणा हो चुकी है। पुरस्कारों में  इस बार हिंदी फिल्मों और उनके कलाकारों व तकनीशियनों की संख्या काम रही। दादा साहेब फाल्के और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के दो पुरस्कार मरणोपरांत दिए गए। इन्हें लेकर कोई विवाद नहीं है , लेकिन यह सवाल तो उठा ही कि ऐसा क्यों हुआ ? श्रीदेवी के मामले में कुछ लोग इसे उनकी आकस्मिक मौत से उपजी सहानुभूति की भावना बता रहे हैं। इसी तरह विनोद खन्ना के नाम पर आपत्ति नहीं होने के बावजूद भाजपा से उनकी नज़दीकी वजह तो बन ही गयी है। शेखर कपूर की अध्यक्षता में गठित नेशनल फिल्म अवार्ड की जूरी की सराहना भी की जा रही कि उन्होँने हिंदी की लोकप्रियता से परे जाकर देश की दूसरी भाषाओँ की फिल्मों पर गौर किया और उन्हें पुरस्कृत किया। कुछ फिल्मों को देख कर स्वयं अध्यक्ष दंग रह गए। उन्होँने बयान दिया कि हिंदी फिल्मो के लिए उन फिल्मों की क्रिएटिविटी बड़ी चुनौती बनेगी। फिल्मों के लोकप्रिय पुरस्कारों से अलग नेशनल पुरस्कारों का महत्व है। एक तो यह राष्ट्रीय  पुरस्कार है। चंद कमियों के बाव