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फिल्म समीक्षा : संजू

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फिल्म समीक्षा संजय दत्त की निगेटिव छवि और खलनायक मीडिया संजू अजय ब्रह्मात्मज अवधि- 161 मिनट             कुछ दिनों पहले राजकुमार हिरानी से ‘ संजू ‘ फिल्म के बारे में बातचीत हुई थी. इस बातचीत के क्रम में उनसे मेरा एक सवाल था कि संजय दत्त की पिछली दो फिल्मों ‘ मुन्ना भाई एमबीबीएस ‘ और ‘ लगे रहो मुन्नाभाई ‘ में क्रमशः ‘ जादू की झप्पी ‘ और ‘ गांधीगिरी ‘ का संदेश था. इस बार ‘ संजू ‘ में क्या होगा ? उनका जवाब था , ‘ इस बार कोई शब्द नहीं है. यह है ‘ ? ‘( प्रश्न चिह्न)। संजय दत्त के जीवन के कुछ हिस्सों को लेकर बनीं इस फिल्म में यह प्रश्न चिह्न मीडिया की सुखिर्यों और खबरों पर हैं. फिल्म की शुरुआत में और आखिर में इस ‘ प्रश्न चिह्न ‘ और मीडिया कवरेज पर सवाल किए गए हैं. कुछ सुर्खियों और खबरों के हवाले से मीडिया की भूमिका को कठघरे में डालने के साथ निगेटिव कर दिया गया है. इस फिल्म के लिए श्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार मीडिया को दिया जा सकता है. संजय दत्त के संदर्भ में मीडिया की निगेटिव छवि स्थापित करने के साथ उसे ‘ समय का सत्य ‘ बना दिया गया है. ‘ संजू ‘ फिल्म का यह कमजोर पक्ष है.    

फिल्म समीक्षा : राज़ी

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फिल्म समीक्षा  राज़ी  -अजय ब्रह्मात्मज  मानना पड़ेगा इंदिरा गांधी के राजकाज के समय भारतीय खुफिया एजेंसी ज्यादा तेज सक्षम और सक्रिय थीं।  'राजी' फिल्म को देखते हुए इस बात का शिद्दत से एहसास होता है।  सुनिश्चित योजना के तहत सहमत पाकिस्तान में रावलपिंडी के एक सैन्य अधिकारी के परिवार में ब्याही जाती है।  उसके पिता हिदायत इस हिदायत के साथ उसे विदा करते हैं कि वह वहां से खुफिया खबरें भारत भेजा करेगी।  मात्र 19 साल की सहमत इस चुनौती के लिए तैयार होती है।  ससुराल पहुंचने पर वह बिजली की गति से अपने काम को अंजाम देती है। सैयद परिवार में वह अपनी जगह बना लेती है। भरोसा हासिल कर लेती है। पाकिस्तानी सेना के अधिकारी के घर में सहमत का तार बिछाना और आसानी से सन्देश भेजना अविश्वसनीय लगता है। इसे सिनेमाई छूट कहते हैं।  फिर भी...   खुद की रक्षा के लिए वह मासूम सहमत दूसरों की जान भी ले सकती है।  वह पाकिस्तान में अपने मुखबिर साथियों और भारत में खुफिया आका के संपर्क में रहती है।  समय रहते वह जरूरी गुप्त संदेश भारत भेजने में सफल हो जाती ह, लेकिन खुद उसकी जान खतरे में पड़ जाती है।  खुद को