फिल्म समीक्षा : राब्ता
फिल्म रिव्यू मिल गए बिछुड़े प्रेमी राब्ता -अजय ब्रह्मात्मज दिनेश विजन की ‘ राब्ता ’ के साथ सबसे बड़ी दिक्क्त हिंदी फिल्मों का वाजिब-गैरवाजिब असर है। फिल्मों के दृश्यों,संवादों और प्रसंगों में हिंदी फिल्मों के आजमाए सूत्र दोहराए गए हैं। फिल्म के अंत में ‘ करण अर्जुन ’ का रेफरेंस उसकी अति है। कहीं न कहीं यह करण जौहर स्कूल का गलत प्रभाव है। उनकी फिल्मों में दक्षता के साथ इस्तेमाल होने पर भी वह खटकता है। ‘ राब्ता ’ में अनेक हिस्सों में फिल्मी रेफरेंस चिपका दिए गए हैं। फिल्म की दूसरी बड़ी दिक्कत पिछले जन्म की दुनिया है। पिछले जन्म की भाषा,संस्कार,किरदार और व्यवहार स्पष्ट नहीं है। मुख्य रूप से चार किरदारों पर टिकी यह दुनिया वास्तव में समय,प्रतिभा और धन का दुरुपयोग है। निर्माता जब निर्देशक बनते हैं तो फिल्म के बजाए करतब दिखाने में उनसे ऐसी गलतियां हो जाती हैं। निर्माता की ऐसी आसक्ति पर कोई सवाल नहीं करता। पूरी टीम उसकी इच्छा पूरी करने में लग जाते हैं। ‘ राब्ता ’ पिछली दुनिया में लौटने की उबासी से पहले 21 वीं सदी की युवकों की अनोखी प्रेमकह