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फिल्‍म समीक्षा : वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा

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नहीं बनी बात  -अजय ब्रह्मात्‍मज  मिलन लुथरिया अपनी पहचान और प्रयोग के साथ बतौर निर्देशक आगे बढ़ रहे थे। 'वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा' से उन्हें झटका लगेगा। यह उनकी कमजोर फिल्म है। पहली कोशिश में मिलन सफल रहे थे, लेकिन दूसरी कोशिश में पहले का प्रभाव नहीं बनाए रख सके। उन्होंने दो अपराधियों के बीच इस बार तकरार और तनाव के लिए प्रेम रखा, लेकिन प्रेम की वजह से अपराधियों की पर्सनल भिड़ंत रोचक नहीं बन पाई। पावर और पोजीशन के लिए लड़ते हुए ही वे इंटरेस्टिंग लगते हैं। शोएब और असलम अनजाने में एक ही लड़की से प्रेम कर बैठते हैं। लड़की जैस्मीन है। वह हीरोइन बनने मुंबई आई है। आठवें दशक का दौर है। तब फिल्म इंडस्ट्री में अंडरव‌र्ल्ड की तूती बालती थी। जैस्मीन की मुलाकात अंडरव‌र्ल्ड के अपराधियों से होती है। कश्मीर से आई जैस्मीन का निर्भीक अंदाज शोएब को पसंद आता है। वह जैस्मीन की तरफ आकर्षित होता है, लेकिन जैस्मीन तो शोएब के कारिंदे असलम से प्रेम करती है। आखिरकार मामला आमने-सामने का हो जाता है। लेखक-निर्देशक ने इस छोटी सी कहानी के लिए जो प्रसंग और दृश्य रचे हैं, वे बा