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Showing posts from February, 2019

सिनेमालोक : अपनी कथाभूमि से बेदखल होते फिल्मकार

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सिनेमालोक   अपनी कथाभूमि से बेदखल होते फिल्मकार   - अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते एक युवा फिल्मकार का फ़ोन आया. उनकी आवाज़ में बदहवासी थी.थोड़े घबर्सये हुए लग रहे थे. फोन पर उनकी तेज़ चलती सांस की सायं-सायं भी सुनाई पड़ रही थी.मैंने पूछा , जी बताएं , क्या हाल हैं ? मन ही मन मना रहा   था कि कोई बुरी खबर न सुनाएं. उन्होंने जो बताया , वह बुरी खबर तो नहीं थी , लेकिन एक बड़ी चिंता ज़रूर थी.यह पहले भी होता रहा है.हर पीढ़ी में सामने चुनौती आती ही. उन्हें अभी एहसास हुआ. उनके जैसे और भी फिल्मकार होंगे , जो खुद को विवश और असहाय महसूस कर रहे होंगे. उन्होंने बताया कि सुविधा सम्पन्न फिल्मकार उनकी कहानियों और किरदारों को हथिया रहे हैं. उन पर काबिज हो रहे हैं. युवा फिल्मकार ' गली बॉय ' देख कर लौटे थे. उनकी प्रतिक्रिया और चिंता थी कि सफल और सम्पन्न फिल्मकार उनका हक छीन रहे हैं. उन्हें उनकी ज़मीन से बेदखल कर रहे हैं. हिंदी फिल्मों में यह सिलसिला सालों से चला आ रहा है. युवा और प्रयोगशील फिल्मकार कंटेंट और क्राफ्ट में नए-नए प्रयोग करते रहते हैं. उनकी सफलता-असफलता चलती रहती है. दशकों से हम यह द

सिनेमालोक : धारावी का ‘गली बॉय’

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सिनेमालोक धारावी का ‘गली बॉय’ -अजय ब्रह्मात्मज जोया अख्तर की फिल्म ‘गली बॉय’ की खूब चर्चा हो रही है.जावेद अख्तर और हनी ईरानी की बेटी और फरहान अख्तर की बहन जोया अख्तर अपनी फिल्मों से दर्शकों को लुभाती रही हैं.उनकी फ़िल्में मुख्य रूप से अमीर तबके की दास्तान सुनाती हैं.इस पसंद और प्राथमिकता के लिए उनकी आलोचना भी होती रही है.अभि ‘गली बॉय’ आई तो उनके समर्थकों ने कहना शुरू किया कि जोया ने इस बार आलोचकों का मुंह बंद कर दिया. जोया ने अपनी फिल्म से जवाब दिया कि वह निम्न तबके की कहानी भी कह सकती हैं.’गली बॉय’ देख चुके दर्शक जानते हैं कि यह फिल्म धारावी के मुराद के किरदार को लेकर चलती है.गली के सामान्य छोकरे से उसके रैप स्टार बनने की संगीतमय यात्रा है यह फिल्म. इस फिल्म की खूबसूरती है कि जोया अख्तर मुंबई के स्लम धारावी की गलियों से बहार नहीं निकलतीं.मुंबई के मशहूर और परिचित लोकेशन से वह बसची हैं.इन दिनों मुंबई की पृष्ठभूमि की हर फिल्म(अमीर या गरीब किरदार) में सी लिंक दिखाई पड़ता है.इस फिल्म में सीएसटी रेलवे स्टेशन की एक झलक मात्र आती है.फिल्म के मुख्य किरदार मुराद और सफीना के मिलने की

सिनेमालोक : कामकाजी प्रेमिकाएं

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सिनेमालोक कामकाजी प्रेमिकाएं -अजय ब्रह्मात्मज फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने इश्क और काम के बारे में लिखा था : वो लोग बड़े खुशकिस्मत थे जो इश्क को काम समझते थे या काम से आशिकी करते थे हम जीते जी मशरूफ रहे कुछ इश्क किया कुछ काम किया काम इश्क के आड़े आता रहा और इश्क से काम उलझता रहा आखिर तंग आकर हम ने दोनों को अधूरा छोड़ दिया. आज की बात करें तो कोई भी लड़की इश्क और काम के मामले में फ़ैज़ के तजुर्बे अलग ख्याल रखती मिलेगी.वह काम कर रही है और काम के साथ इश्क भी कर रही है.उसने दोनों को अधूरा नहीं छोड़ा है.इश्क और काम दोनों को पूरा किया है और पूरी शिद्दत से दोनों जिम्मेदारियों को निभाया है.आज की प्रेमिकाएं कामकाजी हैं.वह बराबर की भूमिका निभाती है और सही मायने में हमकदम हो चुकी है.अब वह पिछली सदी की नायिकाओं की तरह पलट कर नायक को नहीं देखती है.उसे ज़रुरत ही नहीं पडती,क्योंकि वह प्रेमी की हमकदम है. गौर करेंगे तो पाएंगे कि हिंदी फिल्मों की नायिकाओं के किरदार में भारी बदलाव आया है.अब वह परदे पर काम करती नज़र आती है.वह प्रोफेशनल हो चुकी है.गए वे दिन जब वह प्रेमी के ख्यालों में डूबी

सिनेमालोक : क्यों मौन हैं महारथी?

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सिनेमाहौल क्यों मौन हैं महारथी? -अजय ब्रह्मात्मज सोशल मीडिया के प्रसार और प्रभाव के इस दौर में किसी भी फिल्म की रिलीज के मौके पर फ़िल्मी महारथियों की हास्यास्पद सक्रियता देखते ही बनती है?हर कोई आ रही फिल्म देखने के लिए मर रहा होता है.यह अंग्रेजी एक्सप्रेशन है...डाईंग तो वाच.हिंदी के पाठक पूछ सकते हैं कि मर ही जाओगे तो फिल्म कैसे देखोगे?बहरहाल,फिल्म के फर्स्ट लुक से लेकर उसके रिलीज होने तक फिल्म बिरादरी के महारथी अपने खेमे की फिल्मों की तारीफ और सराहना में कोई कसार नहीं छोड़ते हैं.प्रचार का यह अप्रत्यक्ष तरीका निश्चित ही आम दर्शकों को प्रभावित करता है.यह सीधा इंडोर्समेंट है,जो सामान्य रूप से गलत नहीं है.लेकिन जब फिल्म रिलीज होती है और दर्शक किसी महारथी की तारीफ के झांसे में आकर थिएटर जाता है और निराश होकर लौटता है तो उसे कोफ़्त   होती है.फिर भी वह अगली फिल्म के समय धोखा खाता है. इसके विपरीत कुछ फिल्मों की रिलीज के समय गहरी ख़ामोशी छा जाती है.महारथी मौन धारण कर लेते हैं.वे नज़रअंदाज करते हैं.महसूस होने के बावजूद स्वीकार नहीं करते कि सामने वाले का भी कोई वजूद है.ऐसा बहार से आई प्र