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दरअसल : हिंदी फिल्‍मों में आतंकवाद

-अजय ब्रह्मात्‍मज 26/11 से छह दिन पहले रिलीज हुई कुर्बान के लिए इससे बेहतर वक्त नहीं हो सकता था। सभी पत्र-पत्रिकाओं और समाचार चैनलों पर 26/11 के संदर्भ में आतंकवाद पर कवरेज चल रहा है। पाठक और दर्शक उद्वेलित नहीं हैं, लेकिन वे ऐसी खबरों को थोड़े ध्यान और रुचि से देखते हैं। कुर्बान के प्रचार में निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा ने स्पष्ट तौर पर आतंकवाद का जिक्र किया और अपनी फिल्म को सिर्फ प्रेम कहानी तक सीमित नहीं रखा। कुर्बान आतंकवाद पर अभी तक आई फिल्मों से एक कदम आगे बढ़ती है। वह बताती है कि मुसलिम आतंकवाद को आरंभ में अमेरिका ने बढ़ाया और अब अपने लाभ के लिए आतंकवाद समाप्त करने की आड़ में मुसलिम देशों में प्रवेश कर रहा है। मुसलमान अपने साथ हुई ज्यादतियों का बदला लेने के लिए आतंकवाद की राह चुन रहे हैं। हिंदी फिल्मों के लेखक-निर्देशक मनोरंजन के मामले में किसी से पीछे नहीं हैं, लेकिन सामाजिक और राजनीतिक फिल्मों में उनकी विचारशून्यता जाहिर हो जाती है। लेखक-निर्देशकों में एक भ्रम है कि उनका अपना कोई पक्ष नहीं होना चाहिए। उन्हें अपनी राय नहीं रखनी चाहिए, जबकि बेहतर लेखन और निर्देशन की प्राथमिक शर्त