एहसास:समाज को जरूरत है गांधीगिरी की -महेश भट्ट
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देवताओं के देखने लायक था वह नजसरा। किसी ने उम्मीद नहीं की होगी कि न्यूयार्क में स्थित संयुक्त राष्ट्र की खामोश इमारत तालियों और हंसी से इस कदर गुंजायमान हो उठेगी। संयुक्त राष्ट्र केडैग हैम्सर्क गोल्ड ऑडिटोरियम में राज कुमार हिरानी की लगे रहो मुन्ना भाई देखने के बाद पूरा हॉल खिलखिलाहट और तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा। फिल्म के निर्देशक राज कुमार हिरानी और इस शो के लिए विशेष तौर पर गए फिल्म के स्टार यकीन नहीं कर पा रहे थे कि मुन्ना और सर्किट के कारनामों को देख कर दर्शकों के रूप में मौजूद गंभीर स्वभाव के राजनयिक इस प्रकार दिल खोल कर हंसेंगे और तालियां बजाएंगे। इस फिल्म में संजय दत्त और अरशद वारसी ने मुन्ना और सर्किट के रोल में अपने खास अंदाज में गांधीगिरी की थी। तालियों की गूंज थमने का नाम नहीं ले रही थी। ऐसी प्रतिक्रिया से फिल्म के निर्देशक का खुश होना स्वाभाविक और वाजिब है। इस सिनेमाई कौशल के लिए वाहवाही लूटने का उन्हें पूरा हक है, लेकिन उनके साथ हमारे लिए भी यह सोचना-समझना ज्यादा जरूरी है कि इस फिल्म को कुलीन और आम दर्शकों की ऐसी प्रतिक्रिया क्यों मिली? क्या यह गांधी का प्रभाव है, जिन