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संग-संग : दीया मिर्जा-साहिल संघा

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दीया मिर्जा और साहिल संघा ने अपने प्रेम,विाह और स्‍त्री-पुरुष संबंधों पर खुल कर बातें कीं। यह सीरिज प्रेम के परतें खोलती है।21 वीं सदी में रिश्‍ते के बदलते मायनों के बीच भी प्रेम  स्‍पंदित होता है। - अजय ब्रह्मात्मज साहिल- सच की यह समस्या है कि एक बार बोल दो तो बताने के लिए कुछ नहीं रह जाता है। मैं दिया को एक कहानी सुनाने आया था। उस वक्त उन्हें वह कहानी पसंद आई थी। गलती से मैं भी पसंद आ गया था। तभी दीया ने अपनी कहानी सुनाई थी। उस कहानी पर भी मैं काम कर रहा था। स्क्रिप्ट लिखने के समय स्वाभाविक तौर पर हमारा समय साथ में बीत रहा था और हमारे कुछ समझने के पहले ही जैसा कि कहा जाता है कि ‘ होना था प्यार , हो गया ’ । दीया:- वह एक लव स्टोरी थी। बहुत ही संवेदनशील किरदार थे उस कहानी के। इनके लिखने में जिस प्रकार की सोच प्रकट हो रही थी , वह सुनते और पढ़ते हुए मेरा दिल इन पर आ गया। फिल्म इंडस्ट्री में इतना समय बिताने के बाद हम यह जानते हैं कि लोग कैसे सोचते हैं और क्या बोलते हैं ? किस मकसद से कहानियां लिखी जाती हैं ? ऐसे में कोई एक अनोखा इंसान ऐसी कहानी और खूबसूरत सोच लेकर आ जाता है।

संग-संग : तिग्‍मांशु घूलिया-तूलिका धूलिया

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-अजय ब्रह्मात्मज तिग्‍मांशु और तूलिका की यह कहानी अत्‍यंत रोचक और रोमैंटिक है। इलाहाबाद शहर की पृष्‍ठभूमि में पनपे उनके संग-संग चलने का यह सफर प्रेरक भी है। साथ ही विवाह की संस्‍था की प्रांसिगकता भी जाहिर होती है।  तूलिका - पहली मुलाकात की याद नहीं। तब तो हमलोग बहुत छोटे थे। छोटे शहरों में लड़कियों को बाहर के लडक़ों से बात नहीं करने दिया जाता है। कोई कर ले तो बड़ी बात हो जाती है। मुद्दा बन जाता है। हम दोनों की इधर-उधर मुलाकातें होती रहती थीं। कोई ऐसी बड़ी रुकावट कभी नहीं रही। उस समय तो सबकुछ एडवेंचर लगता था। एडवेंचर में ही सफर पूरा होता चला गया। पलटकर देखूं तो कोई अफसोस नहीं है। मुझे सब कुछ मिला है। कभी कुछ प्लान नहीं किया था तो सब कुछ सरप्राइज की तरह मिलता गया। हमारा संबंध धीरे-धीरे बढ़ा। पता ही नहीं चला। हमलोग बाद में मुंबई आकर रम गए। हमारे थोड़े-बहुत दोस्त थे। उन सभी के साथ आगे बढ़ते रहे। मां-बाप की यही सलाह थी कि पहले कुछ कर लो। हर मां-बाप यही सलाह देते होंगे। अब हम भी ऐसे ही सोचते हैं। परिवार वालों को सीधी पढ़ाई और सीधी नौकरी समझ में आती है। तिग्माुशु की पढ़ाई और करिअर का

संग-संग : सुशांत सिंह और मोलिना

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-अजय ब्रह्मात्मज - घर का मालिक कौन है? मोलिना - कभी सोचा नहीं। कभी कोई निर्णय लेना होता है तो इकटृठे ही सोचते हैं। सलाह-मशवरा तो होता ही है। अगर सहमति नहीं बन रही हो तो एक-दूसरे को समझाने की कोशिश करते हैं। जो अच्छी तरह से समझा लेता है उसकी बात चलती है। उस दिन वह मालिक हो जाता है। ऐसा कुछ नहीं है कि जो मैं  बोलूं वही सही है या जो ये बोलें वही सही है। सुशांत - हमने तो मालिक होने के बारे में सोचा ही नहीं। कहां उम्मीद थी कि कोई घर होगा। इन दिनों तो वैसे भी मैं ज्यादा बाहर ही रहता हूं। घर पर क्या और कैसे चल रहा है? यह सब मोलिना देखती हैं। कभी-कभी मेरे पास सलाह-मशविरे का भी टाइम नहीं होता है। आज कल यही मालकिन हैं। वैसे जब जो ज्यादा गुस्से में रहे, वह मालिक हो जाता है। उसकी चलती है। मोलिना - मतलब यही कि जो समझा ले जाए। चाहे वह जैसे भी समझाए। प्यार से या गुस्से से। सुशांत - मेरी पैदाइश बिजनौर की है। मैं पिता जी के साथ घूमता रहा हूं। बिजनौर तो केवल छुट्टियों में जाते थे। नैनीताल में पढ़ाई की। कॉलेज के लिए दिल्ली आ गया। किरोड़ीमल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। स्कूल से ही नाटकों का शौक था। एक म

संग-संग : सुभाष कपूर-डिंपल खरबंदा

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हमसफर -अजय ब्रह्मात्मज जॉली एलएलबी के निर्देशक सुभाष कपूर ने पत्रकारिता से करिअर आरंभ किया। उन्हीं दिनों डिंपल से उनेी मुलाकात हुई। दोनों पहले दोस्त,फिर प्रेमी और आखिरकार पति-पत्नी बन गए। उनके सुखी दांपत्य का सीधा रहस्य है परस्पर विश्वास और एक-दूसरे की क्षमताओं को बढ़ावा देना। दोनों दिल्ली से मुंबई आ गए हैं। मुलाकात और परिचय सुभाष कपूर - पहली मुलाकात हमारी होम टीवी में हुई। जहां ये पहले से काम कर रही थीं। मुझे तारीख तक याद है। 2 जनवरी 1995 को हम मिले थे। करण थापर के साथ ऑफिस में मेरा पहला दिन था। पहले दिन जिन चार-पांच लोगों से मिला उनमें से एक डिंपल भी थीं। मुझे एक चीज बहुत स्ट्राइकिंग लगी थी। इनके टेबल पर जेम्स बांड की फिल्म ‘टुमोरो नेवर डाइज’ का दीवार से उखाड़ा पोस्टर लगा हुआ था। इन्होंने जिंस और जैकेट-टी शर्ट वगैरह पहन रखा था। गोरी-चिट्टी छोटे बालों की सुंदर लडक़ी को देख कर मैं दंग रह गया था। मैं तो हिंदी मीडियम से पढ़ कर आया था। ऐसी लड़कियां कहां देखता? डिंपल - मैं करनाल की हूं। मेरा परिवार पहले वहीं था। बाद में हमलोग दिल्ली चले आए। तकरीबन 14 साल की उम्र में दिल्

संग-संग : अनुराग बसु और तानी बसु

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-अजय ब्रह्मात्मज   बर्फी से फिलहाल चर्चित अनुराग बसु की पत्‍नी और हमसफर हैं तानी। दोनों की प्रेमकहानी और शादी किसी फिल्‍म की तरह ही रोचक है। संग-संग में इस बार अनुराग और तानी के संग...  मुलाकात और एहसास प्रेम का तानी - तब मैं दिल्ली के एक गैरसरकारी संगठन में काम करती थी। डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का थोड़ा-बहुत काम देखती थी। मैं उस संगठन में कम्युनिकेशन कंसलटेंट थी। उन्होंने असम के ऊपर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने का फैसला किया। उस समय मैंने उसकी स्क्रिप्ट लिखी और यह सोचा कि मैं ही डॉक्यूमेंट्री बनाऊंगी। संगठन के प्रमुख आलोक मुखोपाध्याय डायरेक्टर रमण कुमार को जानते थे। दोनों दोस्त थे। उन्होंने रमण जी को यह काम सौंप दिया। मुझे थोड़ा बुरा भी लगा। थोड़ी निराशा जरूर हुई, लेकिन शूटिंग के लिए मैं दिल्ली से असम गई। रमण कुमार जी मुंबई से अपनी टीम लेकर असम पहुंचे। वहां पता चला कि रमण जी तो शूट नहीं कर रहे हैं। रमण जी का एक जवान सा असिस्टेंट ही उछल-कूद कर सारे काम कर रहा है। हालांकि मैंने फिल्म इंस्ट्रीटयूट से पढ़ाई की है, लेकिन उस जवान लडक़े की शॉट टेकिंग से मैं चकित थी। मैं बहुत प्रभावित हुई। बाद मे