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फिल्म समीक्षा:ये साली जिंदगी

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-अजय ब्रह्मात्म ज नए प्रकार का हिंदी सिनेमा आकार ले रहा है। इस सिनेमा के पैरोकारों में सुधीर मिश्र का नाम अग्रिम रहा है। इस रात की सुबह नहीं से लेकर हजारों ख्वाहिशों ऐसी तक उन्होंने कथ्य, शिल्प और प्रस्तुति में हिंदी फिल्मों के दर्शकों को झकझोरा है। ये साली जिंदगी में उनकी कुशाग्रता अधिक तीक्ष्ण हो गई है। यह फिल्म सतह पर उलझी और बेतरतीब नजर आती है, लेकिन इसकी अनियंत्रित और अव्यवस्थित सी पटकथा में एक तारत्म्य है। यह फिल्म निश्चित ही दर्शकों से अतिरिक्त ध्यान और एकाग्रता की मांग करती है। दिल्ली के अरुण और कुलदीप छोटे-मोटे क्रिमिनल हैं। अपराध ही उनका पेशा है। सामाजिक जीवन में हम ऐसे किरदारों को ज्यादा करीब से नहीं जानते। उनकी गिरफ्तारी और कारनामों से सिर्फ यही पता चलता है कि वे अपराधी हैं। इन अपराधियों के जीवन में भी कोमल कोने होते हैं, जहां प्यार और एहसास के बीज अंकुरित होते हैं। ये साली जिंदगी में अरुण और कुलदीप अलग-अलग ठिकानों से यात्रा आरंभ करते हैं और अपहरण की एक घटना से जुड़ जाते हैं। उनकी जिंदगी में प्रीति और शांति की बड़ी भूमिका है। अपनी प्रेमिका और बीवी के लिए वे अपराध में धंसते

...और कितने देवदास

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-अजय ब्रह्मात्मज शरत चंद्र चंट्टोपाध्याय की पुस्तक देवदास 1917 में प्रकाशित हुई थी। उनकी यह रचना भले ही बंगला और विश्व साहित्य की सौ महान कृतियों में स्थान नहीं रखती हो, लेकिन फिल्मों में उसके बार-बार के रूपांतर से ऐसा लगता है कि मूल उपन्यास और उसके किरदारों में ऐसे कुछ लोकप्रिय तत्व हैं, जो आम दर्शकों को रोचक लगते हैं। दर्शकों का यह आकर्षण ही निर्देशकों को देवदास को फिर से प्रस्तुत करने की हिम्मत देता है। संजय लीला भंसाली ने 2002 में देवदास का निर्देशन किया था। तब लगा था कि भला अब कौन फिर से इस कृति को छूने का जोखिम उठाएगा? हो गया जो होना था। सन् 2000 के बाद हिंदी सिनेमा और उसके दर्शकों में भारी परिवर्तन आया है। फिल्मों की प्रस्तुति तो बदल ही गई है, अब फिल्मों की देखने की वृति और प्रवृत्ति में भी बदलाव नजर आने लगा है। पिछले आठ सालों में जिस तरह की फिल्में पॉपुलर हो रही हैं, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि दुख, अवसाद और हार की कहानियों पर बनी फिल्मों में दर्शकों को कम आनंद आता है। एक समय था कि ऐसी ट्रेजिक फिल्मों को दर्शक पसंद करते थे और दुख भरे गीत गाकर अपना गुबार निकालते थे। एकाध अपवा