फिल्म समीक्षा : जल
कच्छ की पृष्ठभूमि में बनी गिरीश मलिक की फिल्म 'जल' रेगिस्तान के बाशिंदों की कहानी है। फिल्म का नायक बक्का को उसके गांव के लोग जल का देवता कहते हैं। वह पारंपरिक यंत्रों और अनुमान से बता सकता है कि धरती के गर्भ में कहां पानी है। जाहिर सी बात है कि वह गांव का प्यारा है। गांव की एक लड़की उससे प्रेम करती है, लेकिन उसका दिल तो पड़ोसी गांव की लड़की केसर पर आ गया है। पानी की वजह से दोनों गांवों के बीच दुश्मनी है। तपते रेगिस्तान में कछ की जिंदगी में तब हलचल आती है जब विदेश से एक टीम अप्रवासी पक्षी फ्लेमिंग के बचाव के लिए जल की मात्रा बढ़ाने के इंतजाम में वहां आती है। विदेशी टीम आरंभिक प्रयासों में विफल रहती है। स्थानीय राकला के सुझाव पर वे बक्का की मदद लेते हैं। उसके बताए स्थान पर खुदाई होती है तो पानी निकल आता है। बक्का के भाव बढ़ जाते हैं। उसे कांट्रैक्ट पर सरकारी नौकरी मिल जाती है। वह जींस-शर्ट पहनने लगता है। बाद में अपने गांव में पानी के लिए कुएं की खुदाई के दरम्यान वह मुश्किलों में फंसता है। उसकी नीयत पर शक किया जाता है। अचानक वह सभी की आंखों में खटकने लगता है। उसे ग...