दरअसल : मल्टीप्लेक्स के महाजाल का शिकंजा
![Image](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiC-TQjWftZwYZyUPD8HLm7xVceUZZXi2NCWzVx3ltrRyCcmWXGzytj1bGZcTd4CwNs5r0RN-Ttpu2IFbFgcjhRAQaWIZf5_OAFqzwYeqReBhM5I8kb9WFA5cpBEBGPAKqL_fgwdM3aUBU/s1600/d1738.png)
- अजय ब्रह्मात्मज देश में मल्टीप्लेक्स संस्कृति के विकास से यकीनन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को फायदा हुआ है। आरंभ से ही उनके लक्षण दिखने लगे थे। खासकर निर्माताओं को लाभ हुआ था। उन्हें कलेक्शन की सही रिपोर्ट मिलने लगी और समय पर उनके पैसे भी खातों में जमा होने लगे। वितरण में एक पारदर्शिता आई। साथ ही मल्टीप्लेक्स की तकनीकी सुविधाओं एवं साफ-सफाई सुरक्षा से दर्शक भी बढ़े। धीरे-धीरे पूरे देश में मल्टीप्लेक्स के चेन विकसित हुए। अभी पीवीआर के सबसे ज्यादा मल्टीप्लेक्स थिएटर और स्क्रीन हैं। इसी प्रकार आइनॉक्स , बिग सिनेमा और फन सिनेमा ने भी अपना विस्तार किया है। इनके अलावा तकरीबन 45-50 मल्टीप्लेक्स हैं , जिनके पास 3 या 3 से ज्यादा स्क्रीन हैं। उसके एक मल्टीप्लेक्स में 7 स्क्रीन तक होते हैं। मल्टीप्लेक्स की इस बढ़त से वितरक और प्रदर्शकों का महाजाल नए रूप में उभरा है। पारंपरिक वितरक और प्रदर्शक भी अब मल्टीप्लेक्स मालिकों और मैनेजरों पर निर्भर करने लगे हैं। इनमें से कुछ मल्टीप्लेक्स स्वंय ही वितरक बन गए हैं। वे फिल्मों के प्रदर्शन और वितरण के लाभ का शेयर भी ले रहे हैं। धीर