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सिनेमा की नई संभावना है भोभर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज राजस्थानी शब्द भोभर का शाब्दिक अर्थ होता है राख में दबी आग। गांव के लोग ऐसी आग से परिचित हैं। यह सुलगती और लौ नहीं फेंकती, लेकिन आग की निरंतरता को बनाए रखती है। जयपुर के गजेन्द्र श्रोत्रिय और रामकुमार सिंह ने भोभर की इस तपिश को अपने साथ लिया। उन्होंने अपनी फिल्म का नाम भोभर रखा और दिखा दिया कि सिनेमा की स्थानीय संभावना बची हुई है। हिंदी सिनेमा अभी इसे बुझा नहीं पाया है। भोभर की आग बड़े यत्न से संभाली जाती है। गजेन्द्र और रामकुमार ने निजी प्रयासों से राजस्थानी भाषा में ऐसी फिल्म बनाने की हिम्मत दिखाई, जो प्रचलित फार्मूले का पालन नहीं करती। स्थानीयता के साथ वह राजस्थानी मिट्टी से जुड़ी हो। सिर्फ नाच-गाने के म्यूजिक वीडियो जैसी पैकेजिंग नहीं हो। इन दिनों राजस्थानी सिनेमा भी भोजपुरी की तरह अश्लीलता और फूहड़ता की चाशनी से निकलता है। गजेन्द्र सिंह फिल्म भोभर के निर्माता-निर्देशक हैं। रामकुमार सिंह इसके लेखक-गीतकार हैं। संगीत दान सिंह ने तैयार किया था। फिल्म की रिलीज के कुछ महीने पहले उनका देहांत हुआ। दान सिंह के परिचय में केवल जिक्र होता है जब कयामत का, तेरे जलवों की बात हो