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फिल्‍म समीक्षा : पोस्‍टर ब्‍वॉयज

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फिल्‍म रिव्‍यू पोस्‍टर ब्‍वॉयज -अजय ब्रह्मात्‍मज देओल बंधु में सनी देओल की फिल्‍में लगातार आ रही हैं। बॉबी देओल लंबे विश्राम के बाद लौटे हैं। श्रेयस तलपड़े स्‍वयं भी इस फिल्‍म के एक किरदार में हैं। स्‍वयंभी इसलिए कि वे ही फिल्‍म के लेखक और निर्देशक हैं। उन्‍होंने लेखन में बंटी राठौड़ और परितोष पेंटर की मदद ली है। 2014 में इसी नाम से इसी भीम पर एक फिल्‍म मराठी में आई थी। थोड़ी फेरबदल और नऐ लतीफों के साथ अब यह हिंदी में आई है। कहते हैं यह फिल्‍म एक सच्‍ची घटना पर आधारित है। परिवार नियोजन के अंतर्गत नसबंदी अभियान में एक बार पोस्‍टर पर तीन ऐसे व्‍यक्तियों की तस्‍वीरें छप गई थीं,जिन्‍होंने वास्‍तव में नसबंदी नहीं करवाई थी। उस सरकारी भूल से उन व्‍यक्तियों की बदनामी के साथ मुसीबतें बढ़ गई थीं। इस फिल्‍म में जगावर चौधरी(सनी देओल),विनय शर्मा(बॉबी देओल) और अर्जुन सिंह(श्रेयस तलपड़े) एक ही गांव में रहते हैं। गांव के मेले में वे अपनी तस्‍वीरें खिंचवाते हैं। उन्‍हें नहीं मालूम कि उन तस्‍वीरों को परिवार नियोजन विभाग के अधिकारी नसबंदी अभियान के एक पोस्‍टर में इस्‍तेमाल कर लेते हैं।

अपने मिजाज का सिनेमा पेश किया - सनी देओल

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-अजय ब्रह्मात्‍मज   हिंदी फिल्‍म जगत में 50 पार खानत्रयी का स्‍टारडम बरकरार है। सनी देओल अगले साल साठ के हो जाएंगे। इसके बावजूद वे अकेले अपने कंधों पर फिल्‍म की सफलता सुनिश्चित करने में सक्षम हैं। ’घायल वंस अगेन’ इसकी नवीनतम मिसाल है। - दर्शकों से मिली प्रतिक्रिया से आप कितने संतुष्ट हैं? इस फिल्म के बाद मेरी खुद की पहचान बनी है। वह पहले भी थी, लेकिन मेरे लिए अभी यह बनाना जरूरी था। कई सालों से मैं सिनेमा में कुछ कर भी नहीं रहा था। जो एक-दो फिल्मों में अच्छा काम किया, वे फिल्में भी अटकी हुई थी। उनका काम शुरू नहीं हो रहा था। इसके अलावा मैं जो भी कर रहा था, हमेशा एक सरदार ही था। कई सालों से लोग मुझे एक ही रूप में देख रहे थे। नॉर्मल रूप किरदार में नहीं देख पा रहे थे। यह सारी चीजें थी, जो मेरे साथ नहीं थी। मेरी इस फिल्म से अलग शुरुआत हुई है। हांलाकि मुझे इतनी बड़ी सफलता नहीं मिली है, पर मेरे लिए इतना काफी है। क्योंकि इस फिल्म से मेरे काम को सराहा जा रहा है। लोग मेरी वापसी को पसंद कर रहे हैं। -आप इस फिल्म के एक्टर सनी देओल की सफलता मानते हैं या डायरेक्टर सनी देओल की?

फिल्‍म समीक्षा : घायल वन्‍स अगेन

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प्रचलित छवि में वापसी -अजय ब्रह्मात्‍मज       हिंदी फिल्‍मों के अन्‍य पॉपुलर स्‍टार की तरह सनी देओल ने ‘ धायल वन्‍स अगेन ’ में वही किया है,जो वे करते रहे हैं। अपने गुस्‍से और मुक्‍के के लिए मशहूर सनी देओल लौटे हैं। इस बार उन्‍होंने अपनी 25 साल पुरानी फिल्‍म ‘ घायल ’ के साथ वापसी की है। नई फिल्‍म में पुरानी फिल्‍म के दृश्‍य और किरदारों को शामिल कर उन्‍होंने पुराने और नए दर्शकों को मूल और सीक्‍वल को जोड़ने की सफल कोशिश की है। नई फिल्‍म देखते समय पुरानी फिल्‍म याद आ जाती है। और उसी के साथ इस फिल्‍म से बनी सनी देओल की प्रचलित छवि आज के सनी देओल में उतर आती है। नयी फिल्‍म में सनी देओल ने बार-बार गुस्‍से और चीख के साथ ढाई किलो के मुक्‍के का असरदार इस्‍तेमाल किया है।     ‘ घायल वन्‍स अगेन ’ में खलनायक बदल गया है। बलवंत राय की जगह बंसल आ चुका है। उसके काम करने का तौर-तरीका बदल गया है। वह टेक्‍नो सैवी है। उसने कारपोरेट जगत में साम्राज्‍य स्‍थापित किया है। अजय मेहरा अब पत्रकार की भूमिका में है। सच सामने लाने की मुहिम में अजय ने सत्‍यकाम संस्‍था खोल ली है। वह सत्‍य उजागर करने

बदलता है सिनेमा समाज के साथ्‍ा - सनी देओल

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सनी देओल -अजय ब्रह्मात्‍मज सनी देओल फिर से डायरेक्‍टर की कुर्सी पर बैठे हैं। इस बार वे 1990 में आई अपनी फिल्‍म ‘ घायल ’ का सिक्‍वल ‘ घायल वंस अगेन ’ निर्देशित कर रहे हैं। इस फिल्‍म के लिए उन्‍हें काफी तारीफ मिली थी। ‘ घायल ’ के सिक्‍वल का इरादा सनी देओल को लंबे समय से मथ रहा था। एक-दो कोशिशों में असफल होने के बाद उन्‍होंने बागडोर अपने हाथों में ली और ‘ दिल्‍लगी ’ (1999) के बाद फिर से निर्देशन की कमान संभाल ली। -16 सालों के बाद फिर से निर्देशन में आने की जरूरत क्‍यों महसूस हुई ? 0 ‘ दिल्‍लगी ’ पूरी नहीं हो पा रही थी,इसलिए मैंने तब जिम्‍मेदारी ली थी। फिल्‍म अधिक सफल नहीं रही। हालंाकि मेरे निर्देशन की सराहना हुई,लेकिन तब बतौर एक्‍टर मुझे फिल्‍में मिल रही थीं। फिलमों में एक्‍टर का काम थोड़ा आसान होता है। ‘ घायल ’ मैं बनान चाह रहा था। बहुत कोशिशें कीं। नहीं हो पाया। फिर लगा कि मुझे ही निर्देशन करना होगा। काम शुरू हुआ तो रायटिंग में भी मजा नहीं आ रहा था। जो मैं सोच रहा था,वह सीन में नहीं उतर रहा था। नतीजा यह हुआ कि लिखना भी पड़ा। - ‘ घायल ’ किस तरह से प्रांसंगिक है

द पावरफुल देओल

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चवन्‍नी के पाब्‍कों के लिए इसे रधुवेन्‍द्र सिंह के ब्‍लॉग अक्‍स से साधिकार लिया गया है। सनी देओल जब पर्दे पर गुस्से से आग बबूले नजर आते हैं, तो दर्शक सीटियां और तालियां बजाते हैं और निर्माता खुशी से फूले नहीं समाते हैं. बॉक्स-ऑफिस के इस चहेते देओल से रघुवेन्द्र सिंह ने की मुलाकात  सनी देओल सालों से सफलता-असफलता की आंख मिचौली का खेल खेलते आ रहे हैं, इसलिए उनकी फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर हो या हिट, उनके चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहती है. उनका जादू दर्शकों पर बरकरार है. इसका ताजा उदाहरण है सिंह साब द ग्रेट. मगर निजी जीवन में वह सीधे-सादे और शर्मीले हैं. उनके अंदर एक बच्चा भी मौजूद है, जो शैतानियां करता रहता है. उन्होंने फिल्मफेयर को जुहू स्थित अपने ऑफिस सनी सुपर साउंड में आमंत्रित किया. जब हम पहुंचे, तो वह बैठकर समोसे और केक खा रहे थे. हमें ताज्जुब नहीं हुआ, क्योंकि देओल्स तो खाने-पीने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अभी-अभी अपने ऑफिस की एक स्टाफ का बर्थडे सेलिब्रेट किया. आज हमें पता चला कि उन्हें चेहरे पर केक लगाने का शौक है. इस तरह के मौके पर वह एक केक खास तौर से

फिल्‍म समीक्षा : सिंह साहब द ग्रेट

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- अजय ब्रह्मात्मज अनिल शर्मा और सनी देओल की जोड़ी ने 'गदर एक प्रेमकथा' जैसी कामयाब फिल्म दी है। दोनों ने फिर 'अपने' में साथ काम किया, इस फिल्म में धर्मेन्द्र और बाबी देओल भी थे। अनिल शर्मा ने एक बार फिर सनी देओल की छवि का उपयोग किया है। सनी का ढाई किलो का मुक्का अब साढ़े तीन किलो का हो चुका है। 'सिंह साहब द ग्रेट' में बार-बार सिख धर्म के गुरुओं और सरदार होने के महत्व का संदर्भ आता है, लेकिन अफसोस की बात है कि इस परिप्रेक्ष्य के बावजूद 'सिंह साहब द ग्रेट' के लिए साहब के वैचारिक महानता पर्दे पर अत्यंत हिंसक रूप में नजर आती है। हालांकि वह 'बदला नहीं बदलाव' से प्रेरित हैं। 'सिंह साहब द ग्रेट' की कहानी भ्रष्टाचार के खिलाफ कटिबद्ध एक कलक्टर की है। कलक्टर भदौरी नामक इलाके में नियुक्त होकर आते हैं। वहां उनकी भिड़ंत स्थानीय सामंत भूदेव से होती है। भूदेव के करोड़ों के अवैध कारोबार को रोकने और रेगुलट करने की मुहिम में वे स्वयं साजिश के शिकार होते हैं। उन्हें जेल भी हो जाती है। सजा कम होने पर जेल से छूटने के बाद वे सीधे भूदेव से बद

फिल्‍म समीक्षा : यमला पगला दीवाना 2

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आदरणीय धरम जी,  अभी-अभी 'यमला पगला दीवाना 2' देख कर लौटा हूं। मैं मर्माहत और दुखी हूं। इस फिल्म की समीक्षा लिखना बड़ी चुनौती है। फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके बारे में कुछ सकारात्मक लिखा जा सके। 'यमला पगला दीवाना 2' इस दशक की एक कमजोर फिल्म है। अफसोस की बात है कि यह देओल परिवार से आई है। इस फिल्म में आप की बहू लिंडा और पोते करण का भी सृजनात्मक योगदान है। इस पारिवारिक उद्यम से अपेक्षाएं बढ़ गई थीं। मुझे उम्मीद थी कि कम से कम 'यमला पगला दीवाना' जैसी दीवानगी और मस्ती तो दिखेगी। इस फिल्म ने निराश किया। इस फिल्म से बेहतरीन कोशिश भी समीर कर्णिक की। दशकों से मेरी तरह करोड़ों दर्शक आप की फिल्में देखते हुए बड़े हुए हैं। याद करने बैठें तो आप की अनगिनत फिल्मों की मनोरंजक खुमारी आज भी तारी है। निश्चित ही हिंदी फिल्मों में आप के योगदान को ढंग से रेखांकित नहीं किया गया है। अभी तक आपका देय आप को नहीं मिला है, लेकिन 'यमला पगला दीवाना 2' जैसी फिल्में आप के मेरे जैसे दर्शकों और प्रशंसकों को आहत करती हैं। चुभती है 'यमला पगला दीवाना 2' जैसी मु

मोहल्‍ला अस्‍सी

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बनारस के अस्‍सी घाट पर सनी देओल का उल्‍लास। यह तस्‍वीर डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की अगली फिल्‍म मोहलला अस्‍सी की है। इस फिल्‍म की शूटिंग पिछले साल ही रिकार्ड समय में पूरी हो गई थी। निर्माता की लापरवाही से यह अनोखी फिल्‍म अभी तक अटकी पड़ी है। काशीनाथ सिंह के उपन्‍यास 'काशी का अस्‍सी' पर आधारित इस फिल्‍म का हिंदी पट्टी में बेसब्री से इंतजार है।

कुछ समय संग सनी के

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-अजय ब्रह्मात्मज सनी देओल ने आठ मार्च को डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म मोहल्ला अस्सी की शूटिंग पूरी कर दी। यह उनकी अभी तक की सबसे कम समय में बनी फीचर फिल्म है। मोहल्ला अस्सी डॉ. काशीनाथ सिंह के उपन्यास पर आधारित है। एक बातचीत में डॉ. द्विवेदी ने बताया था कि एक हवाई यात्रा में उषा गांगुली के नाटक काशीनामा का रिव्यू पढ़ने के बाद उनकी रुचि इस किताब में जगी। उसे पढ़ने के बाद उन्होंने पाया कि इस पर तो अच्छी फिल्म बन सकती है। चंद मुलाकातों में उन्होंने डॉ. काशीनाथ सिंह से अधिकार लिए और स्क्रिप्ट लिखनी शुरू की। आरंभिक दौर में जिसने भी इस किताब पर फिल्म लिखने की बात सुनी, उसका एक ही सवाल था कि इस पर फिल्म कैसे बन सकती है? बहरहाल, फिल्म लिखी गई और उसके किरदारों के लिए ऐक्टर का चयन आरंभ हुआ। फिल्म के प्रमुख किरदार धर्मनाथ पांडे हैं। यह फिल्म उनके अंतद्र्वद्व और उनके निर्णयों पर केंद्रित है। इस किरदार के लिए एनएसडी से निकले मशहूर और अनुभवी अभिनेताओं से बातें चलीं। अलग-अलग कारणों से उनमें से कोई भी फिल्म के लिए राजी नहीं हुआ। डॉ. द्विवेदी और सनी देओल पिछले कुछ सालों से साथ काम करने के लिए इच्छु

मोहल्ला अस्सी में बनारस की धड़कन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले रविवार को डॉ. चद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म 'मोहल्ला अस्सी' की शूटिंग पूरी हो गई। निर्देशक के मुताबिक 'मोहल्ला अस्सी' में दर्शक पहली बार बनारस की गलियों, घाटों और मोहल्लों में रचे-बसे असली किरदारों का साक्षात्कार करेंगे। फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में डॉ. द्विवेदी सनी देओल, रवि किशन, साक्षी तवर, सौरभशुक्ला और अखिलेन्द्र मिश्र सहित पूरी यूनिट के साथ 13 दिनों से बनारस में थे। कुछ दृश्य काशी स्टेशन, रामनगर और अन्य घाटों पर भी फिल्माकित हुए। अपने घूंसे और गुस्से के लिए मशहूर सनी 'मोहल्ला अस्सी' में बनारसी पडे धर्मनाथ पाडे का किरदार निभा रहे हैं। इस फिल्म के लिए उन्होंने नया गेटअप लिया है। धोती और कमीज पहने घाट पर बैठकर श्रद्धालुओं को सकल्प कराते समय वह दूसरे पडों से भिन्न नहीं लग रहे थे। हालाकि मत्रों के उच्चारण में उन्हें थोड़ी कठिनाई हो रही थी, लेकिन उन्होंने कसर नहीं रहने दी। फिल्म इंडस्ट्री में अधिकाश लोग चकित हैं कि सनी के साथ इतने कम दिनों में किसी फिल्म की शूटिंग कैसे पूरी हो सकी? डॉ. द्विवेदी ने खुलासा किया, 'सनी को फिल्म की स्क्रि

गाली तो होगी पर बोली के अंदाज में-सनी देओल

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काशी की तिकड़ी फिल्म का आधार हो तो भला गालियों की काशिका का अंदाज कैसे जुदा हो सकता है। लेखक डॉ. काशीनाथ, चरित्र व पटकथा काशी और फिल्मांकन स्थल भी काशी। ऐसे में भले ही कथा का आधार उपन्यास बनारस का बिंदासपन समेटे हो लेकिन आम दर्शकों के लिए पर्दे पर कहानी का रंग ढंग कैसा होगा। कुछ ऐसे ही सवाल रविवार को मोहल्ला अस्सी फिल्म की यूनिट के सामने थे। फिल्मों में गाली-गुस्सा और मुक्का के लिए मशहूर अभिनेता सन्नी देओल ने पर्दा हटाया। बोले-गालियां इमोशन के हिसाब से होती हैं। इसमें भी है लेकिन गाली की तरह नहीं, बोली की तरह। आठ-दस साल में सिनेमा बदल गया है। सफलता के लिए जरूरी नहीं कि मुक्का या वल्गेरिटी हो। फिल्म यूनिट होटल रमादा में पत्रकारों से रूबरू थी। मुद्दे कि कमान निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने संभाली। कहा कि श्लील व अश्लील परसेप्शन है। रही बात गालियों की तो लोगों की उम्मीद से कम होंगी। हवाला दिया-फिल्म की स्कि्रप्ट बेटी पढ़ना चाहती थी। मैंने उसे रोक दिया। कहा कि तुम फिल्म देखना। लिहाजा फिल्म उपन्यास का इडिटेड वर्जन होगी। इसे सभी लोग घर-परिवार के साथ बैठकर देख सकेंगे। हां, उपन्यास की आत्मा क

बनारसी अंदाज में सनी देओल

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-अजय ब्रह्मात्‍मज धोती-कमीज में चप्पल पहने बनारस की गलियों में टहलते सनी देओल को देख कर आप चौंक सकते हैं। उनका लुक भी बनारस के पडों की तरह है। वास्तव में सनी देओल ने यह लुक डॉ. चद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म 'मोहल्ला अस्सी' के लिए लिया है। क्रासवर्ड एंटरटेनमेंट के बैनर तले बन रही इस फिल्म के निर्माता लखनऊ के विनय तिवारी हैं। हिंदी प्रदेश के विनय तिवारी की यह पहली फिल्म है। उन्होंने काशीनाथ सिह का उपन्यास 'काशी का अस्सी' पढ़ रखा था, इसलिए जब डॉ. चद्रप्रकाश द्विवेदी ने उनके सामने इसी उपन्यास पर फिल्म बनाने का प्रस्ताव रखा, तो वह सहज ही तैयार हो गए। मुंबई की फिल्मसिटी में मदिर के सामने 'मोहल्ला अस्सी' का सेट लगा है। पप्पू के चाय की दुकान के अलावा आसपास की गलियों को हूबहू बनारस की तर्ज पर तैयार किया गया है। किसी बनारसी को मुंबई में अस्सी मोहल्ला देखकर एकबारगी आश्चर्य हो सकता है। पिछले दिनों काशीनाथ सिह स्वय सेट पर पहुंचे, तो सेट देख कर दंग रह गए। स्थान की वास्तविकता ने उन्हें आकर्षित किया। अपने उपन्यास के किरदारों को सजीव देखकर वह काफी खुश हुए थे। फिल्म निर्माण की प्र

अहंकार नहीं है सनी में -संजय चौहान

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फिल्म धूप से मशहूर हुए संजय चौहान ने सनी देओल के लिए कई फिल्में लिखी हैं। सनी के जन्मदिन (19 अक्टूबर) पर संजय बता रहे हैं उनके बारे में॥ सनी देओल से मिलने के पहले उनके बारे में मेरे मन में अनेक बातें थीं। दरअसल, मीडिया और लोगों की बातों से ऐसा लगा था। उनसे मेरी पहली मुलाकात बिग ब्रदर के समय हुई। फिल्म के निर्देशक गुड्डू धनोवा के साथ मैं उनसे मिलने गया था। पुरानी बातों की वजह से सनी केबारे में मैंने धारणाएं बना ली थीं। औरों की तरह मैं भी मानता था कि वे गुस्सैल और तुनकमिजाज होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पहली मुलाकात में ही वे मुझे बहुत मृदु स्वभाव के लगे। यह सच है कि वे बहुत मिलनसार नहीं हैं, क्योंकि वे शर्मीले स्वभाव के हैं। दूसरे, उनके बारे में मशहूर है कि वे सेट पर समय से नहीं आते हैं। मैंने बिग ब्रदर की शूटिंग के दौरान पाया कि वे हर स्थिति में बिल्कुल समय से सेट पर आ जाते थे। फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने पाया कि वे काम के समय ज्यादा लोगों से नहीं मिलते। अपना काम किया, शॉट दिया और अपने स्थान पर चले गए। वैसे, मैंने यह भी कभी नहीं देखा कि उन्होंने सेट पर आए किसी मेहमान को झिड़क दिया हो य