हैदर : कश्मीर के कैनवास पर हैमलेट - जावेद अनीस
-जावेद अनीस सियासत बेरहम हो सकती है, कभी कभी यह ऐसा जख्म देती है कि वह नासूर बन जाता है, ऐसा नासूर जिसे कई पीढ़ियाँ ढ़ोने को अभिशप्त होती हैं, आगे चलकर यही सियासत इस नासूर पर बार-बार चोट भी करती जाती है ताकि यह भर ना सके और वे इसकी आंच पर अपनी रोटियां सेकते हुए सदियाँ बिता सकें । 1947 के बंटवारे ने इन उपमहादीप को कई ऐसे नासूर दिए हैं जिसने कई सभ्यताओं-संस्कृतियों और पहचानों को बाँट कर अलग कर दिया है जैसे पंजाब, बंगाल और कश्मीर भी । इस दौरान कश्मीर भारत और पाकिस्तान के लिए अपने-अपने राष्ट्रवाद के प्रदर्शन का अखाड़ा सा बन गया है । पार्टिशन से पहले एक रहे यह दोनों पड़ोसी मुल्क कश्मीर को लेकर दो जंग भी लड़ चुके हैं, छिटपुट संघर्ष तो बहुत आम है । आज कश्मीरी फौजी सायों और दहशत के संगिनियों में रहने को मजबूर कर दिए गये हैं । खुनी सियासत के इस खेल में अब तो लहू भी जम चूका है । आखिर “जन्नत” जहन्नम कैसे बन गया, वजह कुछ भी हो कश्मीर के जहन्नम बनने की सबसे ज्यादा कीमत कश्मीरियो ने ही चुकाई है,सभी कश्मीरियों ने । ऐसी कोई फिल्म याद नहीं आती है जो कश्मीर को इतने संवदेनशीलता के साथ प्रस्त