डायरेक्टर डायरी : सत्यजित भटकल (10 अप्रैल)
10 अप्रैल अगला पड़ाव पुणे है। बिग सिनेमा में दर्शील को देखने भारी भीड़ आ गई है। उसे सभी ने घेर लिया है। एक स्टार का पुनर्जन्म हुआ है। मेरे खयाल में प्रेस कांफ्रेंस ठीक ही रहा। ज्यादातर मेरी मातृभाषा मराठी में बोल रहे थे। दर्शील और मंजरी भी मराठी बोलते हैं। मंजरी पुणे से है। खास रिश्ता है। प्रेस कांफ्रेंस में फिल्म से संबंधित सवालों के जवाब देने के अवसर मिलते हैं। बड़ा सवाल है – चिल्ड्रेन फिल्म ही क्यों? ‘ जोकोमोन ’ बच्चों के लिए है, लेकिन केवल बच्चों के लिए नहीं है। आयटम नंबर नहीं होने, हिंसा नहीं होने और द्विअर्थी संवादों के नहीं होने से किसी फिल्म के दर्शक सिर्फ बच्चे नहीं हो सकते। दरअसल, ऐसा होने पर मां-बाप और दादा-दादी या नाना-नानी भी अपने बच्चों के साथ ऐसी फिल्मों का बेझिझक आनंद उठा सकते हैं, जो कि आयटम नंबर आ जाने पर थोड़ा कम हो जाता है। हमने अपनी टेस्ट स्क्रीनिंग में देखा कि बड़े भी बच्चों की तरह फिल्म देख कर खुश हो रहे थे। दूसरा सवाल – कोई वयस्क दर्शक मुख्य भूमिका में बच्चे को क्यों देखना चाहेगा? बच्चे के नायक बनने का मुद्दा इस वजह से...