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फिल्म समीक्षा : धर्म संकट में

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 -अजय ब्रहमात्मज  स्टारः 2.5 धर्म पर इधर कई फिल्में आई हैं। 'ओह माय गॉड','पीके' और 'दोजख' के बाद 'धर्म संकट में' भी इसी कैटेगरी की फिल्म है। यहां भी धर्म और धार्मिकता के पहलू को एक अलग नजरिए से उठाया गया है। फिल्म के नायक या मुख्य अभिनेता परेश रावल हैं। वो इसके पहले 'ओह माय गॉड' में दिखे थे। यह फिल्म इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि वे फिलहाल भाजपा के सांसद हैं। 'धर्म संकट में' ब्रिटिश कॉमेडी फिल्म 'द इनफिडेल' से स्पष्ट रूप से प्रेरित है। मूल फिल्म की तरह इस फिल्म में भी धर्म और धार्मिक पहचान के संकट का चित्रण कॉमिकल रखा गया है। ऐसी फिल्मों के लिए परेश रावल उपयुक्त कलाकार हैं। और उन्होंने धर्मपाल के किरदार को अच्छी तरह निभाया है। धर्मपाल त्रिवेदी पारिवारिक व्यक्ति हैं। अपनी बीवी और बेटी-बेटे के साथ वे सुखी और सानंद दिखते हैं। उनके पड़ोस में मुसलमान नवाब महमूद नाजिम अली शाह खान बहादुर रहने चले आए हैं। धर्मपाल मुसलमानों को लेकर हमेशा खफा रहते हैं। खान बहादुर से उनकी बक-झक होती है। वे भला-बुरा सुनाते हैं।

दरअसल : निराश कर रहे हैं नसीर

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-अजय ब्रह्मात्मज     मालूम नहीं यह मजबूरी है या लापरवाही। 2013 में आई नसीरुद्दीन शाह की सभी फिल्मों में उनका काम साधारण रहा। पिछले साल उनकी ‘सोना स्पा’, ‘जॉन डे’ और ‘जैकपॉट’ तीन फिल्में आईं। तीनों फिल्मों में उनकी भूमिकाएं देख कर समझ में नहीं आया कि उन जैसे सिद्ध और अनुभवी कलाकार ने इन फिल्मों के लिए हां क्यों कहा होगा? फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा है कि इन दिनों नसीरुद्दीन शाह फिल्मों में अपना रोल नहीं देखते। उनकी नजर रकम पर रहती है। अगर पैसे सही मिल रहे हों तो वे किसी भी फिल्म के लिए हां कह सकते हैं। एक संवेदनशील, प्रशिक्षित और पुरस्कृत कलाकार का यह विघटन तकलीफदेह है।     इसी हफ्ते उनकी फिल्म ‘डेढ़ इश्किया’ आएगी। विशाल भारद्वाज के प्रोडक्शन की इस फिल्म के निर्देशक उनके सहयोगी अभिषेक चौबे हैं। अभिषेक चौबे की पहली फिल्म ‘इश्किया’ में उनकी और अरशद की जोड़ी जमी थी। ऊपर से विद्या बालन की मादक छौंक ने फिल्म को पॉपुलर कर दिया था। इस बार अभिषेक चौबे ने फिल्म में माधुरी दीक्षित और हुमा कुरेशी को नसीर और अरशद के साथ लिया है। माना जा रहा है और ऐसा लग भी रहा है कि पर्दे पर नसीर और माधुरी के अंतरं

फिल्‍म समीक्षा : जॉन डे

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बेहतरीन परफारमेंस की औसत फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज इस फिल्म के निर्माता अंजुम रिजवी के उल्लेखनीय समर्थन से युवा निर्देशकों के सपने पूरे होते हैं। नीरज पांडे की 'ए वेडनसडे' के मूल निर्माता अंजुम रिजवी ही थे। वे युवा प्रतिभाओं में निवेश करते हैं। उनके समर्थन और सहयोग से बनी कुछ फिल्में चर्चित भी हुई है। 'जॉन डे' उनका नया निवेश है। इस फिल्म के निर्देशक अहिशोर सोलोमन हैं। उन्होंने नसीरुद्दीन शाह और रणदीप हुड्डा के साथ यह कहानी बुनी है। फिल्म के आरंभ में एक लड़की हादसे का शिकार होती है। पता चलता है कि वह एक बैंक कर्मचारी की बेटी है। वे अभी इस गम से उबरते भी नहीं हैं कि बैंक में डकैती के साथ उनकी बीवी पर हमला होता है। एक दस्तावेज जॉन के हाथ लगता है, जो गौतम (रणदीप हुड्डा) के लिए जरूरी है। वे उस दस्तावेज की पड़ताल कर अभियुक्तों तक पहुंचना चाहते हैं। जॉन और गौतम एक-दूसरे की राह नहीं काटते, लेकिन संयोग कुछ ऐसा बनता है कि वे एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े नजर आते हैं। दोनों ही बर्बर चरित्र हैं। अहिशोर सोलोमन ने दो-चार किरदारों को लेकर एक रोमांचक फिल्म बनाने की कोशिश क

फ़िल्म समीक्षा:महारथी

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** 1/2 बेहतरीन अभिनय के दर्शन शिवम नायर की महारथी नसीरुद्दीन शाह और परेश रावल के अभिनय के लिए देखी जानी चाहिए। दोनों के शानदार अभिनय ने इस फिल्म को रोचक बना दिया है। शिवम नायर की दृश्य संरचना और उन्हें कैमरे में कैद करने की शैली भी उल्लेखनीय है। आम तौर पर सीमित बजट की फिल्मों में तकनीकी कौशल नहीं दिखता। इस फिल्म के हर दृश्य में निर्देशक की संलग्नता झलकती है। परेश रावल ने बीस साल पहले एक नाटक का मंचन गुजराती में किया था। उस नाटक के अभी तक सात सौ शो हो चुके हैं। परेश रावल इस नाटक पर फिल्म बनाना चाहते थे और निर्देशन की जिम्मेदारी शिवम नायर को सौंपी। शिवम नायर नाटक पर आधारित इस फिल्म को अलग दृश्यबंध देते हैं और सिनेमा की तकनीक से दृश्यों को प्रभावपूर्ण बना देते हैं। महारथी थ्रिलर है, लेकिन मजा यह है कि हत्या की जानकारी दर्शकों को हैं। पैसों के लोभ में एक आत्महत्या को हत्या बनाने की कोशिश में सभी किरदारों के स्वार्थ और मन के राज एक-एक कर खुलते हैं। फिल्म में सबसे सीधी और सरल किरदार निभा रही तारा शर्मा भी फिल्म के अंत में एक राज बताकर अपनी लालसा जाहिर कर देती है। हां, हम जिस तरह की नियोजित