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Showing posts from January, 2014

फिल्‍म समीक्षा : वन बाय टू

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  अभिनेता से निर्माता बने अभय देओल की पहली फिल्म है 'वन बाय टू'। हिंदी सिनेमा में अभय देओल ने बतौर अभिनेता हमेशा कुछ अलग फिल्में की हैं। निर्माता के तौर पर भी उनकी भिन्नता नजर आती है। हालांकि 'वन बाय टू' हिंदी सिनेमा के फॉर्मूले से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाती, लेकिन प्रस्तुति, चरित्र चित्रण, निर्वाह और निष्कर्ष में कुछ नया करने की कोशिश है। उन्होंने लेखन और निर्देशन की जिम्मेदारी देविका भगत को सौंपी है। 'वन बाय टू' दो किरदारों पर बनी एक फिल्म है। दोनों फिल्म के सफर में कई बार एक-दूसरे के पास से गुजरते हैं। निर्देशक ने दोनों को अलग-अलग फ्रेम में एक साथ स्क्रीन पर पेश कर यह जता दिया है कि अलग होने के बावजूद उनकी जिंदगी में कुछ समानताएं हैं। यह संकेत भी मिल जाता है कि उनकी राहें मिलेंगी। अमित को उसकी प्रेमिका राधिका ने छोड़ दिया है। वह उसे फिर से पाने की युक्ति में लगा असफल युवक दिखता है। दूसरी तरफ समारा अपनी परित्यक्ता मां को संभालने के साथ करियर भी बुनती रहती है। दोनों मुख्य किरदारों के मां-पिता आज के समाज के पूर्णत: भिन्

तो ऐसे बना ऐ मेरे वतन के लोगों

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पहली बार यह गाना 27 जनवरी 1963 को लता मंगेशकर ने भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने गाया था. लेकिन क्या आपको पता है कि ये गाना बना कैसे ? बीबीसी को बताया एक ख़ास बातचीत में इस गाने को लिखने वाले कवि प्रदीप ने . कवि प्रदीप से ख़ास बातचीत की बीबीसी के नरेश कौशिक ने.हम ने चवन्‍नी के पाठकों के लिए इंटरव्‍यू को शब्‍दों में उतार दिया है। http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/ 2014/01/140124 _kavi_pradeep_audio.shtml कवि प्रदीप आप से मिलिए कार्यक्रम में नरेश कौशिक का नमस्‍कार। इस कार्यक्रम में हम हिंदी कवि और गीतकार प्रदीप के करा रहे हैं। जी हां। वही गीतकार प्रदीप जिन्‍होंने भारत-चीन युद्ध के बाद प्रसिद्ध गीत लिखा था ‘ ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी ’ । लेकिन प्रदीप ने हिंदी फिल्‍मों के लिए भी अनेक देशभक्ति गीत लिखें जो लोकप्रियता की पृष्टि से अमर है। कवि प्रदीप से मैंने ये भेंटवार्ता कुछ महीने पहले मुंबई में की थी। सबसे पहले मैंने प्रदीप जी से पूछा था- उनके - कवि जीवन का आरंभ कैसे हुआ? 0 मैं असली में अध्‍यापक होने वाल

बॉक्‍स ऑफिस : जनवरी 2014

इस साल से बॉक्‍स ऑफिस का यह कॉलम अब हर महीने के अंत में प्रकाशित होगा। ताकि सनद रहे और वक्‍त जरूरत काम आए।  बॉक्‍स ऑफिस -अजय ब्रह्मात्‍मज 2 जनवरी 2014 स्वागत 2014 2013 हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए उल्लेखनीय कलेक्शन और मुनाफे का साल रहा। पिछले साल आठ फिल्में 100 करोड़ क्लब में पहुंची। 2012 की तुलना में संख्या में भले ही एक की कमी आ गई, लेकिन कुल कलेक्शन में 2013 आगे रहा। न भूलें कि पिछले साल दो फिल्मों ने 200 करोड़ से अधिक का कलेक्शन किया। ‘धूम 3’ ने कलेक्शन के चौतरफा नए रिकार्ड स्थापित किए। फिल्म के प्रति दर्शकों के उत्साह से लग रहा है कि ‘धूम 3’ 300 करोड़ का आंकड़ा छूने वाली पहली हिंदी फिल्म हो सकती है। जिस रफ्तार से फिल्मों का बिजनेस बढ़ रहा है उससे 2014 की उम्मीदें बढ़ गई हैं। इधर हिंदी प्रदेशों में नए सिनेमाघर आए हैं। टिकटों के दर में भी बढ़ोत्तरी हुई है। कुछ सालों में फिल्मों के बिजनेस में उत्तर भारत की उल्लेखनीय हिस्सेदारी होगी। तब फिल्मों के कंटेंट में भी उत्तर भारत की तरफ अधिक झुकाव होगा। इसके लक्षण दिखने लगे हैं। 2014 में भी फिल्मों के बिजनेस और कलेक्शन में तीनों खान की भू

दरअसल : फिल्म निर्माण में आ रही अभिनेत्रियां

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-अजय ब्रह्मात्मज     पहले  भी अभिनेत्रियां (हीरोइनें) प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से निर्माता बनती रही हैं। नरगिस, मीना कुमारी आदि से लेकर प्रीति जिंटा तक अनेक नाम लिए जा सकते हैं। निर्माता बनने की उनकी कोशिश परिवार और रिश्तेदारों की भलाई के लिए होती थी। या फिर करिअर के उतार पर आमदनी और कमाई के लिए वे पुराने रसूख और लोकप्रियता का इस्तेमाल कर निर्माता बन जाती थीं। इनमें से किसी को भी उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली। ऐसा लगता है कि वे जिस संयोग से फिल्म निर्माण में आती थीं, लगभग वैसे ही संयोग से फिल्म निर्माण से दूर भी चली जाती थीं। इधर एक नया ट्रेंड बनता दिख रहा है। अभी अभिनेत्रियां अपने करिअर के उठान पर ही निर्माता बनने से लेकर फिल्म निर्माण में हिस्सेदारी तक कर रही हैं।     इन दिनों अनुष्का शर्मा दिल्ली के आसपास ‘एनएच 10’ की शूटिंग कर रही हैं। वह फैंटम के साथ मिल कर इस फिल्म का निर्माण कर रही हैं। उन्हें डायरेक्टर नवदीप सिंह की स्क्रिप्ट इतनी पसंद आई कि उन्होंने खुद ही निर्माता बनने का फैसला कर लिया। अनुष्का शर्मा एक तरफ राज कुमार हिरानी की फिल्म ‘पीके’ में आमिर खान की नायिका हैं तो दूसरी

कमल स्‍वरूप-7

कमल स्‍वरूप की बातचीत की यह आखिरी किस्‍त है। ऐसा लगता है कि और भी बातें होनी चाहिए।फिल्‍म की रिलीज के बाद के अनुभवों पर उनसे बातें करूंगा। आप उनसे कुछ पूछना चाहें तो अपने सवाल यहां पोस्‍ट करें। अगली मुलाकात में उन सवालों पर बातचीत हो जाएगी। जेएनयू में मेरी फिल्‍म का शो किया गया। गीता कपूर आई थी मेरा इंटरव्‍यू लेने। गीता ने मुझसे सवाल किया कि आपकी महिलाएं क्‍यों एकआयामी होती हैं? मैंने उन्‍हें समझाया कि आर्ट सिनेमा में औरतों को सिंबल सही तरीके से नहीं आता। ऐसी फिल्‍मों में कोई औरत घड़ा लेकर चलती है तो आप उसे गर्भ का बिंब कहते हो। उसके आगे आप सोच ही नहीं पाते हो। यह कह कर मैं सो गया। दो घंटे के बाद उठा तो खाना-वाना खत्‍म हो गया था। सब मुझे घूर रहे थे कि यह है कौन? उसके बाद उन लोगों ने मुझे प्रोमोट करना बंद कर दिया। वीएचएस की कॉपी दर कॉपी हो रही थी। हर फिल्‍म स्‍कूल और फिल्‍म मंडली में ‘ ओम दर-ब-दर ’ देखी जा रही थी। वीएचएस की कॉपी घिसती चली गई। बाद में तो केवल आवाज रह गई थी। चित्र ढंग से आते ही नहीं थे। नई पीढ़ी के बीच ‘ ओम दर-ब-दर ’ पासवर्ड बन गई थी। सभी एक-दूसरे से पूछते थे

ॐ ....ओम....ओम दर-ब-दर

जो कोई कमल स्‍वरूप की फिल्‍म 'ओम दर-ब-दर नहीं समझ पा रहे हैं। उनके लिए बाबा नागार्जुन की यह कविता कुंजी या मंत्र का काम कर सकती है। इस कविता का सुंदर उपयोग संजय झा मस्‍तान ने अपनी फिल्‍म 'स्ट्रिंग' में किया था। वे भी 'ओम दर-ब-दर' को समझने की एक कड़ी हो सकते हैं।  मंत्र कविता/ बाबा नागार्जन ॐ श ‌ ब्द ही ब्रह्म है .. ॐ श ‌ ब्द् , और श ‌ ब्द , और श ‌ ब्द , और श ‌ ब्द ॐ प्रण ‌ व ‌, ॐ नाद , ॐ मुद्रायें ॐ व ‌ क्तव्य ‌, ॐ उद ‌ गार् , ॐ घोष ‌ णाएं ॐ भाष ‌ ण ‌... ॐ प्रव ‌ च ‌ न ‌... ॐ हुंकार , ॐ फ ‌ टकार् , ॐ शीत्कार ॐ फुस ‌ फुस ‌, ॐ फुत्कार , ॐ चीत्कार ॐ आस्फाल ‌ न ‌, ॐ इंगित , ॐ इशारे ॐ नारे , और नारे , और नारे , और नारे ॐ स ‌ ब कुछ , स ‌ ब कुछ , स ‌ ब कुछ ॐ कुछ न ‌ हीं , कुछ न ‌ हीं , कुछ न ‌ हीं ॐ प ‌ त्थ ‌ र प ‌ र की दूब , ख ‌ रगोश के सींग ॐ न ‌ म ‌ क - तेल - ह ‌ ल्दी - जीरा - हींग ॐ मूस की लेड़ी , क ‌ नेर के पात ॐ डाय ‌ न की चीख ‌, औघ ‌ ड़ की अट ‌ प ‌ ट बात ॐ कोय ‌ ला - इस्

कमल स्‍वरूप-6

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कमल स्‍वरूप की बातें आप सभी को पसंद आ रही हैं। मैं इसे जस का तस परोस रहा हूं। कोई एडीटिंग नहीं। हां,अपने सवाल हटा दिए हैं। इस बातचीत में वे गुम भी तो हो गए हैं। अगर आप ने 'ओम दर-ब-दर' देख ली है और कुछ लिखना चाहते हैं तो पता है chavannichap@gmail.com फिल्‍म के न रिलीज होने का मुझ पर बहुत असर पड़ा। मैंने इस फिल्‍म के लिए आठ लाख रुपए लोन लिए थे। दूसरे शेड्यूल में कैमरे की प्रॉब्‍लम आ गई थी। कैमरे का शटर खराब हो गया था। लौट कर रसेज देखे तो उसमें वीडियो इफेक्‍ट दिखा। वह दौर फिल्‍मों से वीडियो में ट्रांजिशन का दौर था। मुझे एक साल रुकना पड़ा। एक साल के बाद पुष्‍कर का मेला लगा तो फिर से गया। बीच में लोग बोलने लगे थे कि इसके साथ यही होना था। यह तो लापरवाह आदमी है। लोग मजे ले रहे थे। मेरा मजाक बन रहा था। फिल्‍म किसी तरह मैंने पूरी कर ली। इसे फिल्‍मफेयर अवार्ड मिला। फिल्‍म बर्लिन भी गई। मणि कौल आदि को मेरी जरूरत थी। वे मुझे पसंद करते थे। इकबाल मसूद वगैरह ने साफ कहा कि अगर तुम्‍हें एक्‍सेप्‍ट कर लेंगे तो बाकी का क्‍या होगा? श्‍याम बेनेगल आदि के बारे में क्‍या लिखेंगे। तू तो ए

कमल स्‍वरूप-5

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कमल स्‍वरूप बी बातें आप सभी को पसंद आ रही हैं। मैं इसे जस का तस परोस रहा हूं। कोई एडीटिंग नहीं। हां,अपने सवाल हटा दिए हैं। इस बातचीत में वे गुम भी तो हो गए हैं। अगर आप ने 'ओम दर-ब-दर' देख ली है और कुछ लिखना चाहते हैं तो पता है chavannichap@gmail.com मेरे ज्‍यादातर कलाकार नोन-एक्‍टर थे। एक्‍टर को भी दिक्‍कत हो रही थी। वे मेरी स्क्रिप्‍ट समझ ही नहीं पा रहे थे। वे अपना कैरेक्‍टर नहीं समझ पा रहे थे और संवादों के अर्थ नहीं निकाल पा रहे थे। मैंने किसी एक्‍टर का ऑडिशन नहीं लिया था। उन्‍हें कुछ पूछने का मौका भी नहीं दिया था मैंने। मैं मान कर चल रहा था कि मेरे सोचे हुए संसार को अजमेर खुद में समाहित करेगा और अजमेर का असर मेरे संसार पर होगा। तोड़ फोड़ और निर्माण एक साथ चलेगा। इस प्रक्रिया को मैं रिकॉर्ड कर रहा था। क्रिएटिव द्वंद्व को डॉक्‍यूमेंट कर रहा था। कृत्रिम और प्रा‍कृतिक का यह द्वंद्व अद्भुत था। ‘ ओम दर-ब-दर ’ में मैंने किसी कहानी का चित्रण नहीं किया है। मजेदार है कि ‘ ओम दर-ब-दर ’ की कहानी आप सुना नहीं सकते। राजकमल चौधरी और मुक्तिबोध के लेखन का मेरे ऊपर असर रहा। राजक

कमल स्‍वरूप-4

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कमल स्‍वरूप से हुई बातचीत अभी जारी है। उनके प्रशंसकों,पाठकों और दर्शकों के लिए उन्‍हें पढ़ना रोचक है। सिनेमा के छात्र और अध्‍यापक...फिल्‍मकार भी इस बातचीत से लाभान्वित हो सकते हैं। अबर आप कमल स्‍वरूप की फिल्‍म या उन पर कुछ लिखना चाहें तो स्‍वागत है। chavannichap@gmail.com पते पर भेज दें।   अभी के फिल्‍मकारों में मुझे विशाल भारद्वाज में संस्‍कार दिखता है। वे मेरठ के हैं। उन्‍होंने पल्‍प साहित्‍य भी पढ़ा है। गुलजार साहब की संगत भी की है। उन्‍हें संगीत का भी ज्ञान है। फिल्‍मों की मेलोडी, आरोह-अवरोह और सम सब कुछ मालूम है उन्‍हें। विशाल संगीत के सहारे अपनी फिल्‍म में समय पैदा करते हैं। किसी भी फिल्‍मकार की यह खूबी होती है कि दो घंटे की अवधि में वह कितने समय का एहसास देता है। अगर समय की अमरता का एहसास मिल जाए तो फिल्‍म बड़ी और महान हो जाती है। काल का अनुभव देने के बाद ही फिल्‍में कालातीत होती हैं। अफसोस है नए फिल्‍मकारों के फिल्‍मों में काल का अनुभव नहीं है। मुझे लगता है फिल्‍मकारों को काल का भाष ही नहीं है। राजनीतिक फिल्‍मों को लेकर भी समस्‍या है। दर्शक और फिल्‍मकार तक यह मा

जय हो के गीत

जय हो 1 Jai Ho Title Song Lyrics Jai jai jai jai jai jai jai jai jai jai ho, jai ho.. Jai jai jai jai jai jai jai jai jai jai ho, jai ho.. Jai Ho.. Jai Ho.. Ek zindagi.. Sabko mili.. Insaaniyat ki raah pe chalo.. Na bhed-bhaav koi rahe.. Sabke liye jagah dil mein ho.. Open your heart And spread your love Through the world.. Cause they all are the same.. Let there be peace Let there be faith.. Ab mere sang kaho.. Jai Ho.. Jai jai jai jai jai jai jai jai jai jai ho, jai ho.. Jai jai jai jai jai jai jai jai jai jai ho, jai ho.. Jai ho, jai ho, jai jai.. Jai ho, jai ho, jai ho.. Vidya dadati vinyam (Jai ho..) Vinyaa dadaati matrtam (Jai ho..) Maatrtam dhanam apno ki.. Jay ho, jai ho, jai ho.. Jai ho , Jai ho, Jai ho.. Jay jai jai jai jai jai, jai ho.. Jai Ho.. Lyrics: Jai Ho – Title Song Music Director: Amal Malik Lyrics: Shabbir Ahmed Singer: Wajid Ali, Arma