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Showing posts from August, 2018

फिल्म समीक्षा : स्त्री

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 फिल्म रिव्यू स्त्री -अजय ब्रह्मात्मज अमर कौशिक निर्देशित ‘स्त्री’ संवादो,किरदारों और चंदेरी शहर की फिल्म है. इन तीनों की वजह से यह फिल्म निखरी है. सुमित अरोड़ा, राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी,अपारशक्ति खुराना,अभिषेक बनर्जी और चंदेरी शहर की खूबियों का अमर कौशिक ने रोचक मिश्रण और उपयोग किया है. हिंदी फिल्में घिसी-पिटी लकीर से किसी भी नई पगडंडी पर निकलती है तो नजारा और आनंद अलग होता है. ‘स्त्री’ प्रचार हॉरर कॉमेडी फिल्म के तौर पर किया गया है. यह फिल्म हंसाती और थोड़ा डराती है. साथ-साथ टुकड़ों में ही सही लेकर बदल रहे छोटे शहरों की हलचल,जरूरत और मुश्किलों को भी छूती चलती है. चंदेरी शहर की मध्यवर्गीय बस्ती के विकी .बिट्टू और जना जवान हो चुके हैं. विकी का मन पारिवारिक सिलाई के धंधे में नहीं लगता. बिट्टू रेडीमेड कपड़े की दुकान पर खुश नहीं है. जना पास कोई काम नहीं है. छोटे शहरों के ये जवान  बड़े शहरों के बयान से बदल रहे हैं. बातचीत में अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल कर धौंस जमाते हैं.विकी तो ‘चंदेरी के मनीष मल्होत्रा’ के नाम से मशहूर है. उनकी ठहरी और सुस्त जिंदगी में तब भूचाल आता है,

सिनेमालोक : हिंदी फिल्मों के दर्शक

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सिनेमालोक हिंदी फिल्मों के दर्शक -अजय ब्रह्मात्मज पिछले 6 सालों में दिल्ली और हिंदी प्रदेशों मैं हिंदी फिल्मों के दर्शकों की संख्या बढ़ी है. इस बढ़त के बावजूद अभी तक हिंदी फिल्मों की कमाई  में मुंबई की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा होती है. ताजा आंकड़ों के अनुसार इस साल मुंबई की हिस्सेदारी 31.37 प्रतिशत रही है.2012 में मुंबई की हिस्सेदारी 36.28 प्रतिशत थी. लगभग 5 प्रतिशत  की कमी शिफ्ट होकर दिल्ली और दूसरी टेरिटरी में चली गई है. कारोबार के हिसाब सेभारत में 13 टेरिटरी की गणना होती है. दशकों से ऐसा ही चला रहा है. इनके नए नामकरण और क्षेत्रों के विभाजन पर कभी सोचा नहीं गया.  मसलन अभी भी सीपी, ईस्ट पंजाब और निजाम जैसी टेरिटरी चलती हैं. राज्यों के पुनर्गठन के बाद इनमें से कई टेरिटरी एक से अधिक राज्यों में फैली है. पारंपरिक रूप से दिल्ली और यूपी एक ही टेरिटरी मानी जाती है. हिंदी प्रदेशों के हिंदी भाषी दर्शक इस भ्रमित गर्व में रहते हैं हिंदी फिल्में उनकी वजह से ही चलती हैं. सच्चाई यह है राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों को मिलाने के बावजूद फ

सिनेमालोक : निक और प्रियंका : प्रशंसकों की आशंका

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सिनेमालोक   निक और प्रियंका : प्रशंसकों की आशंका - अजय ब्रह्मात्मज   अमेरिका के गायक निक जोनस और अमेरिका में नाम कमा रही भारतीय अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा का अभी ‘ रोका ’ हुआ है. शादी अभी दूर है. दोनों में से किसी नेअभी तक इसका संकेत नहीं दिया है. ’ रोका ’( मंगनी) हुआ है तो देर-सवेर शादी भी होगी. दोनों सेलिब्रिटी हैं. उनके सामने उनका भविष्य और कैरियर हैं. जाहिर सी बात है कि फुरसत पर सुविधा होने पर दोनों परिणय सूत्र में बंध जाएंगे. अभी कहना मुश्किल है कि शादी के बाद उनका आशियाना भारत में होगा या अमेरिका में ? किसी भी देश को वे अपना स्थायी ठिकाना बनाएं. इतना तय है कि दोनों में से कोई भी कैरियर से संन्यास नहीं लेगा.दोनों एक-दूसरे की जरूरतों का ध्यान रखते हुए परस्पर मदद ही करेंगे. निक जोनस और प्रियंका चोपड़ा के साथ होने से दोनों के परिजन और प्रशंसक खुश हैं. परिजनों को तो मालूम रहा होगा लेकिन प्रशंसकों के लिए इतनी जल्दबाजी में सब कुछ हो जाना हैरानी की बात है. अमूमन सेलिब्रिटी शादी जैसे बड़े फैसले में वक्त लगाते हैं. ज्यादा उन्हें अपने कैरियर का ख्याल रहता है. भारत में खुद

फिल्म समीक्षा : सत्यमेव जयते

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फिल्म समीक्षा : सत्यमेव जयते  सत्य की जीत  -अजय ब्रह्मात्मज शब्दों को ढंग से संवाद में पिरोया जाये तो उनसे निकली ध्वनि सिनेमाघर में ताली बन जाती है.मिलाप मिलन जावेरी की फिल्म 'सत्यमेव जयते' देखते समय यह एहसास होता है कि लेखक की मंशा संवादों से तालियाँ बटोरने की है.मिलाप को 10 में से 5 मौकों पर सफलता मिलती है. पिछले दिनों एक निर्देशक बता रहे थे कि हिंदी फिल्मों के संवादों से हिंदीपन गायब हो गया है.लेखकों से मांग रहती  है कि वे संवादों में आम बोलचाल की भाषा लिखें.कुछ फिल्मों के लिए यह मांग उचित हो सकती है,लेकिन फिल्में इक किस्म का ड्रामा हैं.उनके किरदार अगर अडोस-पड़ोस के नहीं हैं तो संवादों में नाटकीयता रखने में क्या हर्ज है. 'सत्यमेव जयते' संवादों के साथ ही चरित्र चित्रण और प्रस्तुति में भी नौवें दशक की याद दिलाती है. यह वह समय था,जब खानत्रयी का हिंदी सिनेमा के परदे पर उदय नहीं हुआ था और हिंदी सिनेमा घिसी-पिटी एकरसता से गर्त में जा रही थी. इस फिल्म के प्रीव्यू शो से निकलती एक फिल्म पत्रकार की टिपण्णी थी - बचपन याद आ गया. 'सत्यमेव जयते' हिंदी

फिल्म समीक्षा : गोल्ड

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फिल्म समीक्षा : गोल्ड  एक और जीत  -अजय ब्रह्मात्मज  इस फिल्म में अक्षय कुमार हैं और इसके पोस्टर पर भी वे ही हैं. उनकी चर्चा बाद में. 'गोल्ड' के बारे में प्रचार किया गया है कि यह 1948 में लंदन में आयोजित ओलिंपिक में आजाद भारत की पहली जीत की कहानी है.तपन दास के निजी प्रयास और उदार वाडिया के सहयोग से यह संभव हो सका था.तपन दस 1936 के उस विख्यात मैच के साक्षी थे,जब बर्लिन में बिटिश इंडिया ने गोल्ड जीता था.तभी इम्तियाज़ और तपन दास ने सोचा था कि किसी दिन जीत के बाद भारत का तिरंगा लहराएगा.आखिरकार 22 सालों के बाद यह सपना साकार हुआ,लेकिन तब इम्तियाज़ पाकिस्तानी टीम के कप्तान थे और तपन दास भारतीय टीम के मैनेजर.तपन दास भारत के पार्टीशन की पृष्ठभूमि में मुश्किलों और अपमान के बावजूद टीम तैयार करते हैं और गोल्ड लाकर 200 सालों कि अंग्रेजों कि ग़ुलामी का बदला लेते हैं. 'गोल्ड' जैसी खेल फ़िल्में एक उम्मीद से शुरू होती है. बीच में निराशा,कलह,मारपीट और अनेक रोचक मोड़ों से होते हुए फतह की ओर बढती है.सभी खेल फ़िल्में या खिलाडियों के जीवन पर आधारित फिल्मों का मूल मंत्र हिंदी फ

सिनेमालोक : इस 15 अगस्त को

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सिनेमालोक   इस  15 अगस्त को  - अजय ब्रह्मात्मज कल 15 अगस्त है. दिन बुधवार... बुधवार होने के बावजूद दो फिल्में रिलीज हो रही हैं. अमूमन हिंदी फिल्में शुक्रवार को रिलीज होती हैं , लेकिन इस बार दोनों फिल्मों के निर्माताओं ने जिद किया कि वे दो दिन पहले ही अपनी फिल्में लेकर आएंगे. रिलीज की तारीख को लेकर वे टस से मस ना हुए. दोनों 15 अगस्त की छुट्टी का लाभ उठाना चाहते हैं. इस तरह उन्हें पांच दिनों का वीकेंड मिल जाएगा. इन दिनों शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्मों के बारे में रविवार इन दिनों में पता चल जाता है एक ऐसा व्यवसाय करेगी ?   इस बार परीक्षा के लिए दोनों फिल्मों को पांच दिनों का समय मिल जाएगा.देखना रोचक होगा इन दोनों फिल्मों को दर्शक क्या प्रतिसाद देते हैं ? रीमा कागटी की ‘ गोल्ड ’ और मिलाप मिलन झावेरी की फिल्म ‘ सत्यमेव जयते ’ आमने-सामने होंगी. पहली फिल्म ‘ गोल्ड ’ की पृष्ठभूमि में हॉकी है. हॉकी खिलाड़ी तपन दास के नेतृत्व में 1948 में भारत ने पहला गोल्ड जीता था. पिछले रविवार को इस उपलब्धि के 70 साल होने पर देश के सात स्थापत्यों और जगहों को सुनहरी रोशनी से आलोकित किया गया

दरअसल करण जौहर की ‘तख़्त' में मुग़ल सल्तनत

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दरअसल करण जौहर की ‘ तख़्त ' में मुग़ल सल्तनत - अजय ब्रह्मात्मज करण जौहर ने आज अपनी नई फिल्म ‘ तख़्त ' की घोषणा की है. अभी केवल यह बताया गया है कि यह फिल्म 2020 में आएगी. इस फिल्म में रणवीर सिंह , करीना कपूर खान , आलिया भट्ट , विकी कौशल , भूमि पेडणेकर , जान्हवी कपूर और अनिल कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं. धर्मा प्रोडक्शन की यह सबसे महत्वाकांक्षी फिल्म है. इस फिल्म से करण जौहर की एक नई निर्देशकीय यात्रा शुरू होगी. वह इतिहास के किरदारों को भव्य भंगिमा के साथ पर्दे पर ले आयेंगे. इस फिल्म की कहानी सुमित राय ने लिखी है   घोषणा के अनुसार   इसके संवाद   हुसैन हैदरी   और सुमित राय लिखेंगे. घोषणा में तो नहीं लेकिन करण जौहर ने एक ट्विट में सोमेन मिश्र का उल्लेख   किया है. दरअसल , इस फिल्म के पीछे सोमेन मिश्रा का बड़ा योगदान है.उन्होंने ही इस फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार करवाई है. ‘ तख्त ’ मुग़ल सल्तनत के के बादशाह शाहजहां के अंतिम दिनों की कहानी होगी. बादशाह बीमार हो गए थे और उनके बेटों के बीच तख़्त पर काबिज होने की लड़ाई चालू हो गई थी. हम सभी जानते हैं कि शाहजहां के बाद औरंगजेब

सिनेमालोक : फैशन पत्रिका के कवर पर सुहाना

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सिनेमालोक   फैशन पत्रिका के कवर पर सुहाना - अजय ब्रह्मात्मज महंगी फैशन पत्रिका ‘ वोग ' के कवर पर सुहाना खान का आना अस्वाभाविक नहीं है.वह शह रुख खान की बेटी हैं.फिल्मों में काम करने को उत्सुक हैं.उनकी इस उत्सुकता के बारे में शाह रुख खान अपने इंटरव्यू में बता चुके हैं.किसी समय वे सुहाना के लिए अभिनय के टिप्स कलमबद्ध कर रहे थे.सुहाना आगे की पढाई के लिए फ़िलहाल अमेरिका जा रही है. यह तय है कि देर-सवेर वह फिल्मों में ज़रूर काम करेंगी , बिना शक उन्हें अच्छी लॉन्चिंग मिलेगी. फिल्मों के आने के पहले से वह सेलिब्रिटी का दर्जा रखती हैं.फिल्म की घोषणा के साथ उनका स्टारडम भी निश्चित है. आगे सब कुछ   उनकी प्रतिभा पर निर्भर करेगा. फिल्म बिरादरी के बच्चों को मौके आसानी से मिल जाते हैं और बार-बार मिलते हैं , लेकिन दर्शक ही उनका भविष्य तय करते हैं. चर्चा गर्म है कि क्या सुहाना खान अपनी योग्यता से फैशन पत्रिका के कवर पर आई हैं ? बिलकुल....फ़िलहाल शाह रुख खान की बेटी होना ही उनकी योग्यता है. इस योग्यता को नज़रन्दाज नहीं किया जा सकता. भारत उपमहाद्वीप में जीवन के सभी क्षेत्रों में माता-