दरअसल : सेट विजिट या ऑन लोकेशन
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-अजय ब्रह्मात्मज कोई भी ठीक-ठीक नहीं बता सकता कि यह मीडिया के विस्तार से स्टार और फिल्ममेकर पर बढ़े दबाव की वजह से हुआ है या हिंदी फिल्म इंडस्ट्री किसी संक्रांति काल से गुजर रही है। एक-डेढ़ दशक पहले तक सेट विजिट या ऑन लोकेशन आम बात थी। निर्माता-निर्देशक और कई बार फिल्म स्टार फिल्म पत्रकारों को प्यार और सम्मान के साथ बुलाते थे। कोई भेद नहीं रहता था। जब जिसे फुर्सत रहती थी। वह पत्रकारों से बातें करता था। सब एक ही होटल पर और कई बार अगल-बगल के कमरों में ठहरते थे। सुबह नाश्ते और लंच-डिनर के समय मुलाकात-बात होती थी। बात्मीय रिश्ते बनते थे और अंतरंग बातें पता चलती थीं। पत्रकार लौट कर विस्तार से शूटिंग रिपोर्ट लिखते थे,जिन्हें पाठक बड़े चाव से पढ़ते थे। पाठकों को फिल्म की पहली जानकारी इन रिपोर्ट से मिलती थी। समय बदला। सैटेलाइट चैनल आए और उनके साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया का उभार आया। अब येट विजिट या ऑन लोकेशन से चलती-फिरती तस्वीरें आने लगीं। पता चला कि दर्शकों को फिलमों की रिलीज से पहले ही फिल्म के विजुअल और फुटेज दिखने लगे। कुछ समय तक तो किसी ने इसके प्रभाव