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फिल्‍म समीक्षा : फगली

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  स्वाभाविक है कि 'फगली' देखते समय उन सभी फिल्मों की याद आए, जिनमें प्रमुख किरदार नौजवान हैं। कबीर सदानंद की 'फगली' और अन्य फिल्मों की समानता कुछ आगे भी बढ़ती प्रतीत हो सकती है। दरअसल, इस विधा की फिल्मों के लिए आवश्यक तत्वों का कबीर ने इस्तेमान तो किया है, लेकिन उनका अप्रोच और ट्रीटमेंट अलग रहा है। 'फगली' की यह खूबी है कि फिल्म का कोई भी किरदार नकली और कागजी नहीं लगता। 'फगली' इस देश के कंफ्यूज और जोशीले नौजवानों की कहानी है। देव, देवी, गौरव और आदित्य जैसे किरदार बड़े शहरों में आसानी से देखे जा सकते हैं। ईमानदारी और जुगाड़ के बीच डोलते ये नौजवान समय के साथ बदल चुके हैं। वे बदते समय के अनुसार सरवाइवल के लिए छोटे-मोटे गलत तरीके भी अपना सकते हैं। ऐसी ही एक भूल में वे भ्रष्ट पुलिस अधिकारी आरएस चौटाला की चपेट में आ जाते हैं। यहां से उनकी नई यात्रा आरंभ होती है। मुश्किल परिस्थिति से निकलने और आखिरकार जूझने के उनके तरीके से असहमति हो सकती है, लेकिन उनके जज्बे से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में निराशा से उपजे इस उप

नई पीढ़ी की फिल्‍म है 'फगली'

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-अजय ब्रह्मात्मज     निश्चित ही फिल्म का टायटल थोड़ा अजीब सा है। मेरे एक दोस्त ने स्क्रिप्ट पढऩे के बाद कहा था कि तेरी स्क्रिप्ट ‘फगली’ सी है। फिल्म के नाम को लेकर हम जूझ ही रहे थे। मुझे यही नाम अच्छा लगा। फिल्म के एक गाने में हमने बता दिया है कि हमें क्या-क्या ‘फगली’ लगता है। इस नाम में आए एफ के साथ जो शब्द बना लें और उसके साथ ‘अगली’  जोड़ दें। इस फिल्म को देखने के बाद आप एक इंप्रेसन के साथ सिनेमाघर से निकलेंगे। फिल्म का रफ कट देखने के बाद किसी ने कहा कि ‘रंग दे बसंती’ जहां खत्म होती है, वहां से यह फिल्म शुरू होती है। इस फिल्म में हम सिर्फ मसला ही नहीं बता रहे हैं। हम उसका हल भी बता रहे हैं।     यह चार किरदारों देव, गौरव, आदित्य और डायन की कहानी है। चारों दोस्त हैं। कालेज से निकले हैं। जिंदगी में प्रवेश करने वाले हैं। कालेज निकलते समय हम सभी के पास सपने होते हैं। चारों दोस्त दिल्ली की गंदगी से बचे हुए हैं। अमीर बनने की जल्दबाजी में नहीं हैं वे। ड्रग्स में नहीं है। उन्होंने अपनी सीमा रेखा तय कर ली है। वे महात्मा भी नहीं हैं। पार्टी-पिकनिक भी करते रहते हैं। इनका सामना एक पुलिस इंस्पेक

भाते हैं अपने मिजाज से अलग किरदार-जिम्मी शेरगिल

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-अजय ब्रह्मात्मज     कबीर सदानंद की ‘फगली’ में जिम्मी शेरगिल दिल्ली पुलिस के हरियाणवी पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभा रहे हैं। अपने अंदाज और लहजे में उन्होंने हरियाणवी खूबियां उतार ली हैं। - ‘फगली’ में आप का हरियाणवी अंदाज आ रहा है? 0 दिल्ली पुलिस का एक ऑफिसर है। वह हरियाणवी है। भाषा, लहजा और अंदाज हरियाणा का है। वह थोड़ा सिरफिरा है। पुलिस रूलबुक उसे याद है। गंदी और बुरी स्थितियों में भी फायदा उठाने से नहीं हिचकता। वह इंटरेस्टिंग होने के साथ विचित्र भी है। कोई नहीं बता सकता है कि अगले पल ही वह क्या करेगा? वह अडिय़ल, चालाक और तेज दिमाग है। वह सिस्टम और पब्लिक के बीच का लिंक है। - मतलब सिस्टम की कमजोरियों और सूराखों से परिचित है और उसका फायदा उठाता है? 0 हां,एक हद तक। अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि कुछ पुलिस अधिकारी सारे नियम-कानून जानते हैं। कबीर ने इस किरदार को रोचक तरीके से प्रजेंट किया है। पुलिस के तौर-तरीकों को बारीकी से रखा गया है। - आप के अपने मिजाज से ऐसे किरदार मेल नहीं खाते तो फिर निभाने में दिक्कत होती होगी? 0 मजा आता है। जो आप नहीं होते हैं, उसे पर्दे पर निभाना हो,यह